सजा किसी भी रूप में हो सकती है – हेमलता गुप्ता : Moral Stories in Hindi

मम्मी पापा…. आप क्या करेंगे मेरे साथ चलकर मैं कोई पहली बार बाहर थोड़ी जा रहा हूं माना कि मेरी पहली नियुक्ति है और वह भी इतने बड़े शहर में  किंतु में इतने सालों से बाहर शहर में ही तो रह रहा हूं मेरी सारी पढ़ाई बाहर शहर में ही हुई है तो मैं सब मैनेज कर लूंगा आपको साथ चलने की कोई जरूरत नहीं है और फिर वैसे भी मैं अपना ध्यान रखूंगा या आपका ध्यान रखता फिरूंगा,

आपको तो बस कहीं भी जाना हो… हम साथ चलेंगे हम साथ चलेंगे की रट लगा देते हो, मैं अब कोई छोटा बच्चा तो रहा नहीं जो हर जगह आपकी उंगली पड़कर चलूंगा और आपको पता है आपके साथ आने से मेरे हर कार्य में कितना व्यवधान आता है अब तो  बड़े-बड़े लोगों के साथ मेरा मिलना जुलना उठना बैठना होगा

वहां उनके सामने आपको कैसे लेकर जाऊं और ऐसा बोलकर निशांत बेंगलुरु चला गया जहां एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में उसे बहुत  ऊंचा पद मिला था! निशांत की बातें सुनकर माता-पिता का मन बहुत दुखी हो गया जिस बच्चे को पाल पोस कर उन्होंने इतना बड़ा किया हर समय उसके साथ रहे इस दिन के लिए अनगिनत सपने देखे थे

जब आज पहली नियुक्ति पर जा रहा है उनकी इच्छा थी कि वह भी उसके साथ जाएं अपने बेटे को तरक्की करते देखकर किस मां-बाप को खुशी नहीं मिलती पर आजकल के बच्चे समझते ही नहीं है इनको तो माता-पिता के साथ होने में भी शर्म आती है, माता-पिता का दिल दुखाने में इन्हें जरा भी हिचक महसूस नहीं होती,

उसे लगता है हम ग्रामीण परिवेश से हैं तो हमें साथ ले जाने में इसको हीनता महसूस होगी और इस प्रकार दोनों पति-पत्नी ने एक दूसरे को समझा कर अपने दुखों को शांत कर लिया! उधर निशांत बड़े गर्व के साथ जैसे ही कंपनी में पहुंचा वहां उसके साथ उसके दो अन्य सहकर्मी भी थे

जिनकी भी आज नई-नई नियुक्ति हुई थी किंतु वह दोनों ही अपने माता-पिता को साथ लेकर आए थे तब निशांत ने उनसे पूछा… आप लोग नियुक्ति के समय भी अपने माता-पिता को साथ लेकर आए हो आप  छोटे बच्चे हो क्या? आगे तुम भविष्य में इतने बड़े-बड़े फैसले लोग तो क्या हर जगह अपने माता-पिता से पूछ कर ही करोगे?

निशांत की बात सुनकर उसके सहयोगीयों ने कहा ….जी बिल्कुल.. हम तो ऐसा ही करते हैं और करेंगे, हमारे माता-पिता ने हमको लेकर बचपन से यह सपना देखा था कि उनका बेटाकिसी बड़े पद पर आसीन हो और वह उसमें गर्व की अनुभूति करें आज जब यह पल आया है तो हम उन्हें इससे वंचित नहीं रख सकते हैं,

जिस बच्चे के सिर पर माता-पिता का हाथ हो और माता-पिता के लिए बेटा उनका सब कुछ हो वह  थोड़ी बहुत कठिनाई है तो ऐसे ही झेल जाते हैं, माता-पिता की बदौलत ही तो आज हम यहां तक पहुंचे हैं तो उनको यहां तक लाने में कैसी शर्म? वह जैसे भी हैं कम पढ़े लिखे हैं लेकिन हमें यहां तक पहुंचाने में सिर्फ उनका ही योगदान है

और हम यह बात मरते दम तक  नहीं भूल सकते, हम इतने एहसान फरामोश नहीं है कि अपने माता-पिता का ही दिल दुखाए! उनकी बात सुनकर निशांत को अपने ऊपर बेहद शर्म आ रही थी और वह सोच रहा था काश यह जमीन फट जाए और मैं इसमें समा जाऊं, मेरी इतनी नीची सोच कैसे हो गई मैं तो आज तक अपने माता-पिता का न जाने कितनी बार दिल दुखाता आया हूं,

यह मुझे सजा ही तो मिल रही है कि आज मेरी पहली नियुक्ति के दिन ही मुझे सबके सामने शर्मिंदा होना पड़ रहा है!यह जरूरी तो नहीं की सजा शारीरिक रूप से ही मिले किसी भी प्रकार का मानसिक कष्ट होना भी तो एक सजा ही है! सही है जो अपने माता-पिता का दिल दुखाते हैं भगवान उन्हें जरूर सजा देते हैं हां मैं इसी लायक हूं और उसके बाद निशांत अपने गांव चला गया अपने मां बाप से  माफी मांगने और उन्हें अपने साथ लेने! 

    हेमलता गुप्ता स्वरचित 

    #जो अपने मां- बाप का दिल दुखाते हैं भगवान उन्हें जरूर सजा देते हैं””

     “ सजा किसी भी रूप में हो सकती है”

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