सही राह – अर्चना सिंह : Moral Stories in Hindi

मनीषा के पापा रविप्रताप जी बैंक में क्लर्क और मम्मी सुगंधा जी गृहणी थीं । रविप्रताप जी के तीन बेटियाँ तृप्ति ,  और ज्योति, मनीषा थीं व एक बेटा सुबोध जो मनीषा से बड़ा था।  सब एक ही शहर के आस – पास रहते थे । मनीषा ने पुष्कर नाम के लड़के से अंतर्जातीय विवाह किया था । पुष्कर ने पहले घरवालों को मनाने की पूरी कोशिश की पर मम्मी पापा ने ये कहकर मना कर दिया कि जॉब करके स्थिर हो जाओ तब शादी कर देंगे । वरना फिर जिम्मेदारी कैसे उठाओगे ?

पहले बहन की शादी तो होने दो तब तक रुक जाओ । कुछ दिन बाद पुष्कर ने खबर अपने घर पहुंचाया की उसने शादी कर लिया । घरवालों ने फोन करने की कोशिश की तो कभी फोन नहीं उठाता, कभी बंद कर देता । तैश में उसने शादी तो कर लिया पर अब रहने की समस्या आ रही थी, खुद के पास पैसे भी नहीं थे । लेकिन उसके दोस्त उदय ने सहारा दिया और लगभग छः महीने वो उसके घर रहा । फिर बहुत कोशिश के बाद उसने जॉब भी पा लिया और कुछ दिन बाद पता चला वो पापा बनने वाला है ।

इस खौफ से की घरवाले शादी न तोड़वा दें वो मिलने ही नहीं गया ।  इधर मनीषा ने अपने घर बताया तो भी सबने थोड़ी नाराजगी दिखाई फिर स्वीकार करके दोनों को अपने घर मे जगह दिया ।बहुत मुश्किल से पुष्कर के दोस्त उदय से बात हुई तो उसके सहारे पुष्कर की मम्मी और बहन दोनो मिलने गए पर बड़ा रूखा व्यवहार किया पुष्कर ने उनके साथ । फिर अलग घर लेकर पुष्कर और मनीषा रहने लगे ।

चार महीने बाद मनीषा की डिलीवरी हुई, उसने बेटी को जन्म दिया । पालन – पोषण मायके में ही अच्छे से हुआ पर स्कूल एडमिशन के लिए पुष्कर अपने घर पर रहने लगा था ।

देखते देखते पाँच साल बीत गए । मनीषा के भाई सुबोध की शादी की तैयारियाँ चल रही थीं । लेकिन घर का माहौल  मनीषा के तबियत खराब होने की वजह से सुस्त थी । मनीषा के पेट मे हल्का – फुल्का दर्द रहता था । पहले तो उसने किसी से जिक्र नहीं किया अपने पति के साथ रहते हुए । बस दर्द कभी ज्यादा उठता तो दर्द निवारक गोलियाँ लेकर ठीक कर लेती थी । राहत तो तुरंत हो जाता था लेकिन दर्द ठीक होने के बाद भी अंदर टीस सी रहती थी । समझ नहीं पा रही थी वो क्या करे । एक दिन उसके पति पुष्कर ऑफिस के लिए निकल रहे थे

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तो अचानक उसे खूब ज़ोर का दर्द उठा ।पुष्कर ने कहा…”दर्द तुम्हें हो जा रहा बीच – ,,,बीच मे । चलकर दिखा लो, लापरवाही करने की जरूरत नहीं । मनीषा  को पता नहीं अस्पताल जाने से क्या एलर्जी थी । उसने फिर से टाल दिया ये कहकर की नारियल पानी ला दो उससे पेट ठीक हो जाएगा । सुबोध भैया की शादी होने देती हूँ फिर फुर्सत से आकर जाँच कराउंगी । पुष्कर ने बहुत ज़िद किया लेकिन मनीषा के आगे उसकी एक नहीं चली ।

शादी का दिन आ गया । एक भी रस्म में मनीषा के अंदर न उत्साह न हिम्मत दिखी । रस्मों के दौरान भी वह पेट दर्द और तकलीफ से जूझती रही । मनीषा की बेटी निधि ने कहा…”मम्मी ! आप भी हमारे साथ मजे करिए न ! मौसी दीदी और मामा सब एक साथ कितने खुश हो रहे हैं ।

अपनी बेटी की बात सुनकर मनीषा ने थोड़ी हिम्मत जुटाई और सबके बीच शामिल हुई लेकिन उसका शरीर नहीं साथ दे रहा था । सुगंधा जी ने उसकी मायूस स्थिति देखते हुए कहा…”क्यों नहीं दिखा रही हो तबियत बेटा ? आलस्य से कहीं कोई अनहोनी न हो जाए । महीने भर से थोड़ा थोड़ा दर्द हो रहा है जाँच कराना चाहिए। आजकल समय ठीक नहीं चल रहा । गम्भीरता से स्वास्थ्य के लिए सोचना चाहिए ।

पुष्कर ने भी नाराजगी दिखाते हुए कहा…”अब इसे ज़बरदस्ती घसीट के ले जाना होगा मम्मी जी ! बहुत जिद्दी है । कितनी बार बोला लेकिन दवा से काम चला ले रही थी । 

“क्या पुष्कर ! अब आप भी शुरू हो गए ? बोला न यहाँ से निश्चिंत हो जाऊं एक बार फिर दिखा लूँगी । रवि प्रताप जी ने भी चिंता दिखाते हुए कहा,….बेटा ! ज़िन्दगी की कीमत समझो, लापरवाही से कोई काम नहीं चलता ।  “आप तो जानते हैं न मेरी कमजोरी ! डर लगता है जाँच कराने मे कहीं कोई बीमारी न निकल जाए”। मैं घर जाकर जरूर चेक कराऊंगी ।

बेटा ! बीमारी निकलेगी तो इलाज भी हो तो होगा, घबरा मत ,! शादी सम्पन्न हुई , अब मनीषा के जाने की तैयारी थी ।

उस दिन थोड़ा दर्द बर्दाश्त से कभी कभी बाहर हो जा रहा था तो मनीषा ने सोच लिया था घर पहुँचकर डॉक्टर के पास जाऊँगी और अगर एडमिट होने भी बोलेगा तो देर नहीं करूँगी । 

अगले दिन मनीषा सही समय पर  अपने घर पहुंच गई । और नहा धोकर खाना खाने के बाद डॉक्टर के पास गई । तबियत बताने के बाद डॉक्टर ने ढेर सारी जाँच लिखी जो कराते – कराते उसे दोपहर से शाम हो गयी । दो दिन बाद जो रिपोर्ट मिली उसे सुनकर पुष्कर के होश उड़े हुए थे । उसका शरीर खुद इतना शिथिल पड़ रहा था 

डॉक्टर ने पुष्कर को मनीषा से अलग हटकर बताया मनीषा के अंदर कैंसर के ऊतक पाए गए हैं । अभी शुरुआती चरण है । हमे इसका इलाज करना होगा ।  पहले भी उसे महसूस हुआ होगा लेकिन हर बार दर्द निवारक गोली लेने की वजह से ये परिणाम इतना दुःखद हो गया है । पुष्कर का गला सूखने लगा, धड़कन बढ़ने लगी और चेहरा जैसे गर्म सा हो गया । मनीषा के साथ बिताए पल उसके आगे चलचित्र की भाँति घूम गए ।

अस्पताल से निकलते वक्त उसके कदम बहुत मुश्किल से आगे बढ़ रहे थे । वो सोच रहा था …”मनीषा की गलती है जिसने इलाज कराने में देरी की या स्वयं उसका दोष है जो उसे ज़िद से नहीं ला पाया । मनीषा ने धीरे से पूछा…”डॉक्टर अंदर ले गए थे आपको, कुछ गम्भीर समस्या है क्या ? पुष्कर ने कहा…”क..क…कुछ नहीं ! ठीक हो जाओगी तुम्हारा इलाज चलेगा कल से । अंदर अंदर मनीषा को एहसास हो रहा था । उसने बोला…”मुझे पता है पुष्कर ! आप घबरा रहे हैं । हनारा साथ शायद यहीं तक था । कितने अरमान संजोए थे अपनी बेटी के लिए, आपके लिए । मैंने आपकी और डॉक्टर की बात सुन लिया है । खुद जिम्मेदार हूँ अपने इस हालात की । अगर मैं इतनी लापरवाही और जिद नहीं करती तो ये नौबत नहीं आती ।

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माहौल बहुत गमगीन हो रहा था । दोनों ने एक दूसरे के आँसू पोछे और पुष्कर ने कहा…”तुम ठीक हो जाओगी मनीषा, ईश्वर पर भरोसा रखो । डॉक्टर ने खुद कहा है अभी ज्यादा देर नहीं हुई । थोड़ी देर में दोनो घर पहुंच गए । मनीषा अपने ही घर मे अजनबी सा महसूस कर रही थी । घर घुसते ही उसने चारदीवारी देखी और खो गयी…”कितनी मुश्किल से एक एक सामान को जुटाकर भविष्य के लिए सँवारा था , इस मकान को घर बनाया था, मेरी एक छोटी लापरवाही जानलेवा बन गयी । 

अब निधि आकर मनीषा के कंधे पर सिर टिका ली । मनीषा ने उसे बाहों में समेट लिया और पकड़कर जी भर के रोयी । निधि ने कहा..”मैं यहीं हूँ मम्मी ! क्या हुआ आपको ? पुष्कर ने कहा..”मम्मी को आराम करने दो बेटा ! थोड़ी तबियत खराब है  । उसने मम्मी को ध्यान से देखा और माथा चूमकर खेलने चली गयी ।

अब पुष्कर के नम्बर पर ये तीसरी बार मनीषा के घर से फोन आ रहा था । इस बार तृप्ति दीदी का फोन था । उन्होंने पूछा क्या हुआ पुष्कर जी..? पुष्कर बड़ी हिम्मत से सब बता दिया और ये भी कहा कि उसकी हिम्मत नहीं है किसी और से कहने की घर मे भी सबको बता दिया जाए

।   तृप्ति सुनकर बिल्कुल खामोश हो गयी और उसकी आँखों से अथाह आँसू बहने लगे । थोड़ी देर के लिए लगा जैसे आँखों के आगे अंधेरा छा गया, उसने फोन काट दिया, उसके मुँह से आवाज़ नहीं निकल रही थी । मुँह पर पानी के छींटे मारकर वह कुछ देर घर के मंदिर के सामने बैठकर प्रार्थना करने लगी । दो दिन तक वह किसी से कोई बात नहीं कर रही थी फिर दो दिन बाद फोन करके पुष्कर को तृप्ति ने पूछा…”अपने घरवालों को आपने फोन किया ?

 “नहीं दीदी ! आप तो सबकुछ अच्छे से जानती हैं कि मेरे घर से किसी को कोई मतलब नहीं है , फिर क्यों फोन करूँ ?

अब तृप्ति ने समझाते हुए कहा..”कैसी बात कर रहे हैं पुष्कर जी ? आपने जो गलती किया उससे लोग आपसे दुःखी हैं । उन बातों के आधार पर नहीं, अभी जो घर का माहौल है उस आधार पर फैसला लीजिए । तब आपकी गलती थी जो आपने इंतज़ार नहीं किया बिना नौकरी किये घरवालों को बगैर बताए अंतर्जातीय विवाह कर लिया ।

आप बेशक मेरे घर के दामाद हैं लेकिन जो आपने किया है वो गलत तो है ही । और दूसरी गलती ये थी कि आपने अपनी छोटी बहन की शादी के बारे में भी नहीं सोचा क्या बातें बनेंगी , कितने सवाल उठते हैं जब हम समाज को लेकर चलते हैं । उनलोगों ने एक – दो बार नाराजगी दिखाई आपने घर ही छोड़ दिया । परिवार को मेल – मिलाप कर के चलाने से आगे बढ़ता है, जब मम्मी पापा को आप नहीं प्यार से मना सकते हो तो जीवन मे कैसे आगे बढोगे ?

“नहीं दीदी ! आप नहीं समझ रही हैं बात को, ये दूरी जो मेरे शादी करने से हुई रिश्तों में # नफरत की दीवार बन गयी । इसको मिटाना बहुत मुश्किल है । 

पुष्कर ने बात काटते हुए अपनी बात रखा तो फिर तृप्ति ने कहा..मुश्किल हो सकता है पुष्कर जी, असम्भव नहीं। निधि के जन्म पर भी आपने निमंत्रण नहीं भेजा, आपकी बहन और मम्मी आईं भी तो उनलोगों के प्रति आपलोग का व्यवहार देखकर मुझे अच्छा नहीं लग रहा था । जब सामने वाला मेरे लिए एक कदम बढ़ाएगा तो दूसरा कदम तो हमे बढ़ाना होगा न साथ चलने के लिए । ज्यादा कुछ तो नहीं कह पाऊंगी पर एक बार बस एक बार प्लीज अपने घर मे भी फोन करिए । फिर भी पुष्कर की हिम्मत नहीं हुई ।

धीरे धीरे कुछ दिनों में घर मे सबको बात पता चल गई । मनीषा के घर सब एक जगह जुटे । बहुत रोयी मनीषा । फिर सुबोध ने कहा.. “हिम्मत रखना होगा हम सबको, अच्छे से अच्छे डॉक्टर देखकर इलाज कराएंगे ठीक हो जाएगी मनीषा  । सब मिलकर साथ मे प्रार्थना करेंगे । पर रोकर कोई घर का माहौल खराब नहीं करेगा । अभी भी ठीक हो सकता है , कोई नहीं रोएगा । फिर मनीषा ने थोड़ी फीकी मुस्कान बिखेर दी ।

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आज बड़े दिनों बाद सब एक जगह इकट्ठे हो रहे थे , उत्सव सा लग रहा था माहौल पर उसमें कमी दिख रही थी । वैसे तो जब भी सब एक साथ मिलने का कार्यक्रम बनाते तो किसी को ऑफिस किसी का स्कूल, किसी का दूसरा काम ऐसे ही लगा रहता, पर आज इस घड़ी में सब साथ थे । 

दरवाजे की घण्टी बजी । रविप्रताप जी ने दरवाजा खोला । सामने पुष्कर के मम्मी – पापा, भाई भाभी और बहन को देखकर दंग रह गए । उनके मुँह से अंदर आने के लिए भी कहने की आवाज़ नहीं निकली । ज्योति ने पूछा..”कौन है पापा ? रविप्रताप जी हाथ जोड़ते हुए अंदर आने के लिए आग्रह करने लगे । पुष्कर की मम्मी गार्गी जी सबके साथ अंदर आईं । रविप्रताप जी का मौन सुनकर सब ड्राइंग रूम में आए तो स्तब्ध रह गए । पुष्कर नहा रहा था   । गार्गी जी तेज कदमों से मनीषा के पास गईं ।

साथ मे उनकी बड़ी बहू बेटा , पति और बेटी भी थे । मनीषा ने खूब ज़ोर से गार्गी जी को पकड़ लिया और लिपट कर रोने लगी । सब साथ मे रोने लगे । बाथरूम का पानी बंद हुआ तो पुष्कर को आभास हुआ जैसे कोई आया है, सब रो रहे हैं । झटके से उसने महसूस किया कि मम्मी की आवाज़ है फिर उसे लगा नहीं आ सकती है मम्मी । उसने दरवाजा खोलकर देखा तो पाया वहाँ सब मौजूद थे जिसकी उसने कल्पना की थी । मनीषा ने गार्गी जी में लिपटते ही कहा..”मम्मी जी ! आपने कितनी  देर लगा दी ।

मुझे पता होता आप इस वक़्त मुझसे मिलने आएंगी तो ये हालात पहले ही हो जाते । मनीषा की जेठानी ने सजल आँखों से मनीषा के मुँह पर हाथ रखकर उसे चुप करा दिया । फिर गार्गी जी ने कहा..”ऐसा मत बोलो बहू ! हम सब मिलकर आगे बढ़े पर कदम तुमलोगों ने ही  हटाया था तो हमने सोच लिया हमसे दूर भी हो तो खुश रहो तुमलोग । ऐसा तो सपने में भी नहीं सोचा था  । आरोप प्रत्यारोप लगाने का समय नहीं है अब, हमें मिलकर तुम्हें वापस वैसे ही खुश देखना है । अभी भी समय है, ठीक हो जाओगी तुम ।

पुष्कर भी सबके बीच में आकर सबसे लिपट कर खुद को हल्का कर लिया । उसने मम्मी – पापा के कदमों में बैठकर कहा. .”माफ कर दीजिए मम्मी- पापा ! रविप्रताप जी ने उसे उठाकर अपने हृदय से लगाते हुए कहा..”माफी मांगने का अब समय नहीं बेटा, आगे सोचने का समय है । तुम्हारी बेटी देख रही है उसे बुरा लगेगा । माँ – बाप हमेशा औलाद को माफ कर देते हैं । 

अब माहौल में थोड़ी स्थिरता आयी तो गार्गी जी ने मनीषा के मम्मी पापा के सामने हाथ जोड़ते हुए कहा…”बहन जी ! अपनी बहू बेटे और पोती को हम साथ ले जाना चाहते हैं । आपने बहुत ध्यान रखा अब हमारी बारी है । “हाँ बहन जी ! आपका अधिकार है, खाना बन गया है, सब इकट्ठे खा लेते हैं तब  आप ले जाइए ।

 फिर तृप्ति का मुँह देखते हुए कहा..”मेरा बेटा भटक गया था बेटा ! तुम्हारा भी धन्यवाद उसे सही राह दिखाने के लिए । तृप्ति ने चरण छुए और गार्गी जी के गले लग गयी । अब मनीषा और पुष्कर समझ चुके थे कि तृप्ति दीदी ने ही वापस उनकी गृहस्थी की गाड़ी को पटरी पर लाया है ।

 

मौलिक, स्वरचित

अर्चना सिंह

 

#नफरत की दीवार

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