सहायिका – दिक्षा बागदरे : Moral Stories in Hindi

सीमा जी अपने पति राघव जी के साथ दिल्ली में रहती थी। उनका एक पुश्तैनी घर उज्जैन में भी था।

साल भर में एक-दो बार घर की देखभाल और स्थान परिवर्तन के मद्देनजर नजर वे लोग उज्जैन आया करते थे।

बहुत दिनों से घर बंद होने के कारण घर में गंदगी बहुत हो जाती थी। साफ-सफाई के लिए मदद की आवश्यकता पड़ती थी।

 शुरुआती सालों में कुछ काम वे स्वयं भी कर लेती थी। अब उम्र का तकाजा उनसे भी इतना काम हो नहीं पाता था। उनके बहू-बेटे तो अपने निजी कारणों से हर समय उनके साथ नहीं आ पाते थे।

 राघव जी को अपने घर से बहुत लगाव था, साल में कम से कम दो बार तो उज्जैन आया ही करते थे। रिटायरमेंट के बाद तो उनका मन दिल्ली में लगता ही नहीं था। वे तो यहीं बस जाना चाहते थे।

 पोते-पोतियों एवं परिवार से लगाव के चलते, वे उन्हें  छोड़कर भी यहां नहीं आना चाहते थे। बेटे-बहू की नौकरी और बच्चों की पढ़ाई के चलते उन लोगों का भी उज्जैन शिफ्ट होना संभव नहीं था। इसीलिए वे दिल्ली नहीं छोड़ रहे थे।

आज सुबह ही वे उज्जैन आए। सामने वाली गीता आंटी से सीमा जी का अच्छा परिचय था। सालों से यहां आने जाने के कारण उन दोनों में काफी अच्छी मित्रता हो गई थी। सीमा जी दिल्ली में भी रहे तो फोन पर उनकी बातचीत गीता जी से होती रहती थी। 

सीमा जी ने दो-तीन दिन पहले ही गीता जी को अपने आने की खबर दे दी थी। इमरजेंसी के लिए सीमा जी के घर की एक चाबी गीता जी के पास ही हुआ करती थी। सीमा जी अक्सर आने से पहले उन्हें कहकर हाउस हेल्प से घर की साफ सफाई वगैराह करवा लेती थी। 

किंतु इस बार जब वे आईं तो घर की साफ सफाई नहीं हो पाई थी। उन्होंने गीता जी से पूछा कि क्या सहायिका नहीं आई थी। गीता जी ने कहा क्या बताऊं सीमा जी आजकल तो सभी गला काटने बैठे हैं। दो-तीन दिनों से आसपास की सभी सहायिकाओं से में साफ सफाई करने को कह चुकी हूं। पर हर कोई कुछ ना कुछ बहाना कर टाल रही हैं। दो-तीन तो यह कहने लगी कि साल में एक-दो बार दो-चार दिन के लिए हम काम नहीं करेंगे। हम तो साल भर का बंधा काम ही करते हैं।

आज एक और को बुलाया है आती ही होगी। थोड़ी ही देर में दुर्गा नाम की एक 30-32 वर्ष की महिला आई। उसने कहा आप सीमा जी हैं मुझे गीता जी ने भेजा है। सीमा जी ने कहा हां आओ। 

सीमा जी ने दुर्गा को बताया कि 10 दिनों के लिए झाड़ू पोछा, बर्तन, कपड़े धोना और दोनों टाइम खाना बनाना है। कितना लोगी और कितने बजे आओगी? 

दुर्गा ने कुछ सोचकर जवाब दिया ₹10000 लूंगी मेम साहब। सीमा जी यह सुनकर सकते में आ गईं। दो लोगों के काम के₹500 रोज से तो फिर भी उन्होंने सोचा था। मगर हजार रुपए रोज तो बहुत ही हो जाता है। 

उन्होंने उससे कहा यह तो बहुत ज्यादा है कुछ हिसाब से बताओ। दो लोगों का ही काम है और घर भी कोई बहुत बड़ा नहीं है। गीता में उत्तर दिया देख लीजिए आपको जमे तो ठीक है नहीं तो कोई बात नहीं इससे कम में तो मैं काम नहीं करूंगी।

सीमा जी सोच ही रही थी कि क्या जवाब दूं। तभी राघव जी ने सीमा जी से कहा, सीमा आज तो काम करवा कर देख लो अब हमें रहना तो 10 दिन ही है और तुमसे भी होता नहीं है। मैं भी तुम्हारी ज्यादा मदद नहीं कर पाता। 

मरता क्या ना करता सीमा जी ने उससे कहा ठीक है तुम आज काम करो। मैं देख लेती हूं मुझे जम गया तो कंटीन्यू करेंगे नहीं तो नहीं।

सफाई का कुछ जरूरी सामान राघव जी आज सुबह आते ही पास के बाजार से ले आए थे। कुछ सब्जी,फल, मसाले वगैरह किराने का सामान भी उन्होंने ऑनलाइन मंगवा लिया था।

दुर्गा ने काम करना शुरू किया। सबसे पहले झाड़ू- पोछा, साफ- सफाई की, फिर खाना बनाया।  अंत में कपड़े धोए। फिर कहा आप लोग खाना खा लीजिए, बर्तन में शाम को खाना बनाने आऊंगी तब साफ कर दूंगी और अभी मुझे डेढ़ हजार रुपए दे दीजिए। बाकी दिनों का तो मैं हजार रुपए से लूंगी रोज का। पर आज तो साफ- सफाई और अन्य कामों में बहुत समय लग गया इसलिए आज का मैं डेढ़ हजार लूंगी।

सीमा जी कुछ कहने ही वाली थी की राघव जी बोल पड़े ठीक है। उन्होंने उसे डेढ़ हजार रुपए दे दिए। 

सीमा जी ने उसके जाने के बाद राघव जी से कहा यह तो गला काटने पर ही उतारू है और आपने उसे पैसे दे भी दिए और मुझे कुछ कहने भी नहीं दिया। ऐसा तो दिल्ली में हमारी सहायिकाएं भी नहीं करती हैं। हम 30 सालों से दिल्ली में रह रहे हैं।

राघव जी बोले सीमा इस समय आवश्यकता हमारी है और 10 ही दिनों की बात है। बड़ी मुश्किल से यह सहायिका मिली है, दूसरी मिले ना मिले। 

उसके खाने में भी कोई विशेष स्वाद नहीं था। काम भी उसने जल्दी-जल्दी बस करा ही था। सीमा जी बहुत ही दुखी हुईं। वृद्धावस्था मैं मनुष्य कितना मजबूर हो जाता है। इस अवस्था में सहायता के लिए भी लोगों की इतनी मान मनुहार करनी होगी और मुंह मांगा पैसा देकर भी काम भी अच्छे से नहीं हो रहा । लोग गला काट रहे हैं।

शाम को सीमा जी इंतजार ही करती रह गई और दुर्गा नहीं आई। उन्होंने उसका मोबाइल नंबर भी नहीं लिया था। गीता जी से पूछा तो उन्होंने कहा भाभी नंबर तो मैंने भी नहीं लिया सोचा बात करके आप ले लोगे। शाम का खाना तो जैसे तैसे सीमा जी ने स्वयं ही बनाया। अगले दिन भी सुबह से दुर्गा की राह तकते-तकते 12:00 बज गई, पर वह नहीं आई।

फिर शुरू हुई एक नई सहायिका की खोज……..

स्वरचित 

दिक्षा बागदरे 

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