साहब की मेमसाहब – सोनिया कुशवाहा

छोटे से शहर में बड़े ओहदे पर तैनात सरकारी अफसर बिरज की पत्नी कुमुद। आसपास के लोग मेम साब कहते थे। ये उसका स्वयं अर्जित सम्मान नहीं था, बस साहब की पत्नी है तो मेम साहब हो गई। कुमुद की खूबसूरती की पूरी कॉलोनी में चर्चा होती थी| आसपास की महिलाओं को उसकी किस्मत पर रश्क होता। ठाट-बाट वाली ज़िन्दगी, गाड़ी, सरकारी बंगला, प्यार लुटाते पति और क्या चाहिये। कुमुद जितनी खूबसूरत थी उससे कहीं ज्यादा लायक थी। हमेशा अच्छे अंको से उत्तीर्ण होती। वाद-विवाद, गायन, नृत्य हर प्रतियोगिता में हिस्सा लेती| अच्छा स्थान प्राप्त करती, माता पिता के लिए बहुत सम्मान था उसकी नज़र में। पापा की किसी बात पर तो पलट कर सवाल किया ही नहीं था कभी।

 जो भी कुमुद को देखता, बरबस ही कह उठता, “आपकी बेटी के लिए रिश्ता ख़ुद चल कर आएगा| इसकी खूबसूरती ख़ुद ही मोहित कर लेगी देखना किसी राजकुमार को!” आमतौर पर लड़कियां ऐसे जुमलों से फूली नहीं समाती, लेकिन कुमुद को यह बात अखर जाती। क्या सिर्फ मेरी सूरत ही सब कुछ है? मेरी योग्यता कोई मायने नहीं रखती? ख़ुद को साबित करने के लिए कुमुद जी जान से मेहनत कर रही थी। उसकी सफलता से माता-पिता का सिर गर्व से उठा रहता। कुमुद बहुत मन से सिविल सर्विस की तैयारी में जुटी थी| उधर पापा उसके लिए लड़के तलाश कर रहे थे।

 पहले प्रयास में कुछ अंकों की कमी के कारण चयन नहीं हो सका था। कुमुद फिर से प्रयास करना चाहती थी। लेकिन नियति को कुछ और मंजूर था। बिरज के पिताजी ने कुमुद को एक शादी में देखा था और तभी से उसके लिए प्रयास कर रहे थे। बिरज के परिवार ने तो कुमुद को देखते ही हाँ कर दी थी। कुमुद थी ही इतनी खूबसूरत, देखने वालों की नज़र ठहर जाए। बिरज भी जो खोज रहे थे, कुमुद में उन्हे मिल गया था। बिरज ने कुमुद से उसकी पसंद-नापसंद तक जानने की कोशिश नहीं की थी। सूरत देख कर ही विवाह की सहमति दे दी थी।

शादी के बाद से बिरज का सरकारी बंगला अब कुमुद की दुनिया थी। कहीं अकेले जाने की सख्त मनाही थी और बिरज के पास साथ देने के लिए समय नहीं था। प्यार जताने का एक मात्र तरीका आता बिरज को। महंगे तोहफे लाओ और बिस्तर पर सुकून के पल बिताओ। कुमुद इस बेरंग जीवन से उकता गई थी। शादी के दो साल बाद ही उसके चेहरे की चमक फीकी पड़ने लगी थी। 

कभी अपना हाल ए दिल बताना भी चाहती तो बिरज बस हाँ हूँ करते रहते, लेकिन ध्यान अपने लैपटाप में लगा रहता। कुमुद मानो सोने के पिंजरे में बंद हो गई थी। उसे लगता जैसे उसने फेरे एक आदमी से नहीं घर की चार दीवारी से लिए हों। माँ, बहन, भाभी जिससे भी बात करती सब बिरज और उसकी किस्मत की दाद देते। उसको एहसास दिलाते कि कितनी भाग्यशाली है वो जो इतने बड़े अफसर की अर्धांगिनी बनी। कुमुद की आवाज घुट कर रह जाती। 

इस कहानी को भी पढ़ें: 

सिंदूर – वीणा सिंह : Moral Stories in Hindi




अकेलापन कुमुद को काटने को दौड़ता। करने को घर में कोई खास काम भी नहीं था| नौकरों की फौज सब काम अपने जिम्मे लिए रहती। कुमुद अवसाद से घिरने लगी थी। अक्सर बिखरी सी रहती। ना अच्छे कपड़े, ना साज शृंगार। एक दिन किसी साथी अफसर के साथ अचानक घर आए बिरज ने जब कुमुद को ऐसा देखा तो बरस पड़े। ये क्या है कुमुद! अपना हुलिया देखो! एक सीनियर अधिकारी की पत्नी हो तुम! और काम ही क्या है तुम्हें, खुद को  मेंटेन करने के अलावा! वो भी नहीं होता तुमसे। 

मैं नहीं रह सकती दीवारों के लिए सज धज कर। कौन देखता है मुझे यहाँ? है ही कौन मेरे अलावा यहाँ पर। बहुत हुआ बिरज, मैं ऐसी ज़िन्दगी नहीं जी सकती। मेरे कुछ सपने थे, अरमान थे जिनका मैंने गला घोंट दिया| आपके साथ घर बसाने के लिए सोचा था, आपके साथ नई दुनिया बसाउंगी। अपनी पसंद-नापसंद के हिसाब से अपनी नई दुनिया को सजाउंगी। आपके कंधे पर सिर रख कर सुकून के दो पल बिताउंगी। हम हाथों में हाथ डालकर बैठेंगे, कहीं समुंदर किनारे, डूबते सूरज को देखेंगे।

 एक दूसरे की आँखों में समा जाएंगे, ऐसे कि हम दोनों की खामोशियां भी बातें करेंगी। कुछ गलत सोचा था क्या मैंने? हर नव विवाहिता ऐसे ही तो सपने देखती है, लेकिन आपने तो कभी मुझे समझने की कोशिश तक नहीं की। मैं बस एक सुंदर गुड़िया बन गई हूँ, जिससे आप दो पल को खेल कर शो केस में सजा देते हो। अब मैं कुछ करना चाहती हूँ, अपनी पढ़ाई फिर से शुरू करना चाहती हूँ। सिविल सेवा परीक्षा देना चाहती हूँ। 

 



कुमुद तुम चाहती क्या हो? नौकरी छोड़कर मजनूगिरी करूँ तुम्हारे साथ? देखो मेरे पद के अनुसार ज़िम्मेदारियाँ भी निभानी होती हैं, तुम नहीं समझोगी। और सिविल सेवा का मतलब भी समझती हो तुम? तुम से नहीं हो पाएगा। ये सब शौक शादी से पहले पूरे करने थे, अब घर गृहस्थी देखो। मुझे एक घरेलू लड़की ही चाहिये। बिरज ने आंखें तरेरते हुए कहा। लेकिन मैंने सोच लिया है, मैं अपनी पढ़ाई जारी रखूंगी। कुमुद ने दृढ़ता से कहा। 

इस कहानी को भी पढ़ें: 

*खरा विश्वास* – बालेश्वर गुप्ता : Moral Stories in Hindi

किसी भी चीज़ की कमी है तुम्हें । कपड़े, गहने जो चाहिए मुझसे कहो। तुम तो जानती ही हो तुम्हारे बिना ये घर नहीं चल सकता। मैं चाहता हूं घर आऊँ तो तुम मेरा मुस्कुराकर स्वागत करो। तुम ये सब तैयारी परीक्षा नहीं करोगी। बिरज ने अगला पासा फेंका।

भौतिक सुख ही सब कुछ नहीं होता, मानसिक सुख और शांति सबसे बड़ी बात है और मुझे अब मानसिक रूप से शांति चाहिए। मैं मेमसाहब अपनी खुद की मेहनत से बनना चाहती हूँ। अगर आप को मेरी सफलता मंजूर है तो ठीक, नहीं तो मैं चलती हूँ। 

एक बार और सोच लो कुमुद या तो मैं या तुम्हारी ये सनक। एक बार तुम ये चौखट लांघ गई तो मेरी ज़िंदगी में वापिस नहीं आ सकोगी। वैसे भी एक साल में ही ये भूत उतर जाएगा तुम्हारा। तब क्या करोगी सोच लेना। 

सोच लिया। अब तो ये सनक ही मेरा मकसद है। आत्म विश्वास से दमकते चेहरे पर खो चुकी रंगत वापिस आ गई थी। 

जीवन में कोई भी परिस्थिति हो, अपने आत्मविश्वास को बनाए रखें, अपने हुनर और काबिलियत से अपनी पहचान बनाइए। साहब की मेमसाहब बनने से ज्यादा गौरव शाली महसूस होगा। 

 

आपकी सखी 

सोनिया कुशवाहा 

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!