साँवली – पुष्पासंजय नेमा : Moral Stories in Hindi

  रोज की तरह  आज  फिर सब ऑगन  मे बैठ कर  सुबह  की गुनगुनी  धूप  का आनन्द  ले रहे थे

इतने मे बाबूजी की कड़कदार आवाज  से साँवली  के हाथ  से गरम चाय  की पतीली छूट  गई  उसने झटपट  दूसरी चाय  बनाई और लेकर  गई  बाबूजी लीजिए  चाय  माफ कीजिए  आज  थोड़ी देर  हो गई  बाबूजी कुछ  बोल  पाते इसके पहले की मांजी  ने झाड़ू सी मारती हुई

कहा शर्मा जी का नाश्ता हो गया और  हमे चाय  नसीब  हो रही है उन्होने जरूर  कोई पुण्य कर्म  किए  होगे इसलिए  शीलासुशीला सी बहू मिली है जो सबको हाथो पर लिए  है और  हमारे तो कर्म  ही फूटे है   साहबजादे  को पसंद  भी आई तो यह कलूटी 

   अब  खड़ी  क्यो  है नाशता कब बनाएगी

साँवली  की ऑखो से ऑसू बह निकले आखिर  क्यो  जब से इस घर  मे आई हूँ  अपमान  और  निरादर

ये  काला रंगरूप  अपराध  है क्या आखिर कब तक 

दादी ने शादी के वक्त  पापा को समझाया भी था बेटा पूरा खानदान  रूई के जैसा सफेद  धरा है कही बाद  मे कोई  परेशानी न बन बैठे लेकिन  पापा तो पापा इन  लोगो की चिकनी चुपड़ी बातो मे आ गए 

पहले तो सोहन पक्ष लेते थे और  मां  से लड़ जाते थे रंगरूप  पर कोई  टिप्पणी नही करते थे पर अब तो वे भी जब कलूटी कहते है तो  अन्तर्मन तार तार  हो जाता है

पापा ने बड़े  प्यार  से साँवली  नाम  रखा था

कहते थे साँवली  है तो क्या  लाखो मे एक है मेरी बेटी तीरकमान  सी भौंहे  तीखेनाकनकश धुंधराले बाल और  क्या  चाहिए  सुंदरता के लिए  

साँवली  ने एक  लंबी सांस  ली पापा आपकी

 वही साँवली  ससुराल  मे कलूटी नाम सुन-सुनकर तंग  आ गई  है 

हे भगवान  रंगरूप  के नाम  पर कब तक  अपना निरादर  सहती रहूंगी शब्द  शब्द मे कितना अंतर है और  तो और जेठानीजी  का चार बरस का निकेत भी कहता है कलूटी चाची दूध  दे दो न

वह तो अबोध  है

पुष्पासंजय नेमा

 जबलपुर मध्यप्रदेश

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