सास तो हो मगर गरीब मायके की बेटी की – स्वाति जैन : Moral Stories in Hindi

 मम्मी जी मैं अपने मायके से भर भर के सोना लाई हूं समझी मुझे कुछ बोलने से पहले सोच लीजिएगा।  अब इस घर की मालकिन मैं हूं आप नहीं, रीमा अपनी सांस गीता जी से बोली, गीता जी बोली, “भगवान से डरो बहू रोज सुबह से शाम तक सुनाती रहती हो जरा तो मेरी इज्जत का ख्याल करो पड़ोस तक आवाजें जाती होंगी तुम्हारी

” रीमा बोली, “पड़ोस में आवाजें जाए तो जाए वैसे भी पड़ोस वाली सरिता ताई जी सुन भी लेंगी तो क्या फर्क पड़ जाएगा उन्हें भी तो पता चले कि मेरे मायके वालों ने मुझे कितना दहेज दिया है फिर भी आपको मेरी कद्र नहीं एक सरिता ताई जी है जिनकी बहू फटीचर मायके से आई है फिर भी कितनी

 इज्जत देती है वह अपनी बहू को और एक आप हैं जिनकी बहू भर भर के सोना कपड़े जेवरात लाई है मगर आपको अपनी बहू से ठीक से बात करना तक नहीं आता”

 गीता जी बोली, “बहू अब चुप भी हो जाओ पूरा मोहल्ला जान चुका है कि तुम दहेज तो लाई हो मगर घर की सुख शांति भंग कर चुकी हो”

 पड़ोस वाली सरिता जी यह आवाजें सुन अपने कमरे से बाहर आकर अपनी बहू काव्या से बोली, “अरे बहू सुबह सुबह टीवी क्यों चला दिया है तुमने कितनी आवाज आ रही है” काव्या बोली, “मम्मी जी यह आवाज टीवी की नहीं है यह आवाज तो हमारे पड़ोस के घर से आ रही है लगता है आज फिर गीता चाची और उनकी बहू रीमा में लड़ाई हो गई है”

 सरिता जी बोली हां बहू इन दोनों का तो यह रोज का काम है सरिता जी अपने कमरे में वापस आकर बैठ गई उतने में काव्या चाय लेकर आई और बोली मम्मी जी यह लीजिए चाय नाश्ते में क्या बनाना है यह भी बता दीजिए जो तुम्हारी मर्जी हो वह बना लो बहू इतना बोलकर सरिता जी सोचने लगी हे भगवान तेरा लाख-लाख शुक्रिया जो तूने मुझे इतनी अच्छी बहू दी है वरना आजकल हर घर में सास बहू के बढ़ते झगड़ों को देखकर लगता है जैसे हर घर घर कम और युद्ध का मैदान ज्यादा हो यहां महले में सबके घर में सास बहू की अलग ही महाभारत चल रही है अच्छा है भगवान तूने मुझे अच्छी बहू दी वरना मेरा घर भी आज

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 अखाड़ा बन गया होता शाम को पड़ोस वाली गीता जी सरिता जी के घर आई गीता को देख सरिता जी अपनी बहू काव्या से बोली जा बहू तू चाय पकोड़े बना ला गीता हमारे घर रोज-रोज कहां आती है गीता जी काव्या को देख सोचने लगी हे भगवान काश मेरी बहू भी ऐसी होती मगर मेरी किस्मत में तो रीमा जैसी बहू पल्ले पड़ी है गीता को अपने कमरे में लाकर सरिता जी बोली गीता मैं तुझसे मिलने आने ही वाली थी अच्छा हुआ तू ही चली आई तुम दोनों सास बहू रोज-रोज झगड़ती हो आखिर ऐसा भी क्या हो गया है गीता बोली सरिता रहने दो तू नहीं समझेगी सरिता बोली भला मैं क्यों नहीं समझूंगी मैं भी तेरी

  तरह एक सास हूं गीता बोली हां सरिता दीदी आप सास तो हो मगर गरीब मायके की बेटी की सास हो और मैं ठहरी अमीर मायके की बेटी की सास अच्छा खासा दहेज जो लाई है मेरी बहू रीमा इसलिए अब हर बात पर ताने देती रहती है सरिता बोली इस मामले में मैं बहुत भाग्यशाली हूं मेरी बहू  काव्या तो बहुत समझदार और सुलझी हुई है झगड़ा करना तो दूर कभी ऊंची आवाज में बात तक नहीं करती  काव्या, गीता सरिता की बातें सुन जल भुन गई उसे लगा जैसे किसी ने उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया हो

आवेश में गीता बोली सरिता दीदी अभी आपकी बहू को आए समय ही कितना हुआ है दो महीनों में आपकी बहू थोड़े ही अपना असली रंग दिखाएगी अभी महीने साल गुजरने दो फिर देखना यह बहुएं कैसे अपना असली रंग दिखाती है मेरी वाली भले स्वभाव की तेज है मगर कम से कम आपकी वाली की तरह अच्छा होने का ढोंग तो नहीं करती जो है मुंह पर बोलती है आपकी और मेरी बहू तो एक ही शहर से हैं और मेरी बहू रीमा बता रही थी कि काव्या इतनी सीधी भी नहीं है जितना तुम लोग उसे समझते हो

और इसके परिवार ने तुम लोगों को जानबूझकर दहेज नहीं दिया वरना आज की तारीख में भला कोई बाप अपनी बेटी को ऐसे खाली हाथ विदा करता है क्या?  सरिता दीदी आप सीधी जो हो इसलिए आपको हल्के में ले लिया आपकी बहू के मायके वालों ने वरना अपनी बेटी को ऐसे खाली हाथ विदा करने की हिम्मत नहीं करते और अब आपकी बहू आपको झांसे में लेकर आपके घर पर राज करेगी तभी तो वह कितनी चिकनी चुपड़ी बातें करती है और घर का सारा काम भी बिना शिकायत करती है मैं तो कहती हूं

आप अपनी बहू को इतना सिर पर मत चढ़ाओ हो सके तो उससे ढंग से बात भी मत करो फिर देखना कैसे उसकी और उसके मां-बाप की अकल ठिकाने आएगी उतने में काव्या चाय पकौड़े लेकर आ जाती है गीता जी काव्या को देख अपनी बात बदल कर बोली अरे काव्या इतना सब करने की क्या जरूरत थी आ  बैठ हमारे साथ काव्या बोली गीता चाची आप चाय लीजिए मैं रसोई के सारे काम निपटा कर अभी थोड़ी देर में आती हूं काव्या के जाते ही गीता बोली देखा सरिता दीदी तुम्हारी बहू तो मीठी छुरी है तुमको मीठा बन बन के काटेगी

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अरे मैं तो कहती हूं इसे गरीब मायके के ताने दिया करो दीदी फिर देखना कैसे इसके मायके से पैसे भी आने लगेंगे और आपकी बहू भी आपकी मुट्ठी में रहेगी इतना कहकर गीता चाय पकोड़े का आनंद लेने लगी गीता के जाने के बाद सरिता जी का हाल बेहाल हो हो गया उन्होंने सोच लिया था कि अब वो अपनी बहू से ढंग से बात नहीं करेंगी आखिर वह भी एक सास है भला बहू के सामने क्यों झुकेगी मेरे सीधेपन का

  फायदा उठा गए इसके मायके वाले तभी तो दहेज में एक फूटी कौड़ी नहीं दी मुझे इन लोगों ने गीता सही ही तो कह रही थी उसकी बहू अमीर घर की बेटी है और कितना दहेज भी तो लाई है और मेरे पल्ले पड़ गई यह गरीब मायकी की बेटी काश मेरी बहू भी रीमा जैसी होती जो साथ इतना सारा दहेज लाती कि घर में क्लेश हो भी जाए तो क्या पैसा हर जख्म का मर्ज होता है बहू अपने मायके से भर भर के दहेज लाए तो अच्छे से अच्छी सास भी झुक जाती है और एक मैं हूं जो गरीब घर की बेटी के साथ इतना प्यार से पेश आती हूं गीता तो अपना काम करके जा चुकी थी शक का बीज सरिता

 जी के मन में उग चुका था सरिता जी को रात भर नींद नहीं आई और उन्हें अपनी बहू काव्या की मीठी जबान पर शक होने लगा उन्हें लगने लगा कि काव्या सिर्फ अच्छे होने का ढंग  करती और जानबूझकर मीठा बोलती है ताकि मेरे घर मेरी जायदाद पर कब्जा करने में उसे आसानी हो और मैं तो इतनी बड़ी मूर्ख निकली कि मैंने इसके दिखावे को सच मानकर इसे बेटी जैसा प्यार दिया मगर बस अब और नहीं आखिर में एक सास हूं इसे और इसके मायके वालों को सबक सिखा करर ही दम लूंगी दूसरे दिन सरिता जी मंदिर से आई

तो काव्या बोली मम्मी जी मैं कब से आपको ढूंढ रही हूं आप मंदिर गई थी और आज बताकर भी नहीं सरिता जी बोली मैं क्या तुम्हारी गुलाम हूं जो तुम्हें हर बार बता कर जाऊंगी काव्या बोली मम्मी जी मैं आपका चाय के लिए इंतजार कर रही थी बस इसलिए पूछ बैठी और आपने अब तक दवाई भी नहीं ली इतना बोलकर काव्या अपने और सरिता जी के लिए चाय बिस्किट ले आई सरिता जी बोली हां मेरा काम मैं कर लूंगी तुझे ज्यादा चाशनी भरे लफ्जों में बात करने की जरूरत नहीं और यह काजू बादाम वाले बिस्किट ले तो आई हो मगर मगर तुम्हारे मायके में तो तुमने कभी ऐसे बिस्किट खाए भी ना होंगे

यहां आकर तो तुम्हारे मजे हो गए हैं काव्या धीरे से बोली मम्मी जी आपको चाय के साथ यह बिस्किट पसंद है इसलिए ले आई आइंदा से ध्यान रखूंगी थोड़ी देर बाद काव्या ने सभी के लिए खाना लगा दिया जैसे ही काव्या सभी के साथ खाना खाने बैठी सरिता जी बोली काव्या अगर तुम हम सबके साथ खाना खाने बैठ जाओगी तो सबको खाना कौन परोसेगा।   काव्या के ससुर मुकेश जी बोले रोज तो काव्या हमारे साथ बैठकर ही खाती थी फिर आज क्या हो गया

काव्या का पति रोहन बोला हां मम्मी आप ऐसे क्यों बोल रही है काव्या रोज हमारे साथ ही तो खाना खाती है सरिता जी बोली तब काव्या नई नई शादी करके आई थी इसलिए मगर अब इसे यहां के रीति रिवाज सीखने होंगे पति मुकेश जी की ओर देखकर सरिता जी बोली आपको क्या याद नहीं आपकी मां भी मुझे सबसे अंत में खाना खाने को कहा करती थी सभी के लिए हमारे घर में यही परंपरा चली आ रही है भला मैं इस परंपरा को कैसे तोड़ सकती हूं और बहू का तो फर्ज होता है सभी के खाना खाने के बाद ही स्वयं खाए सब लोग खाना खाकर चले जाते हैं

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और बेचारी काव्या अंत में अकेले खाना खाने बैठती है आज उसके गले से निवाला उतरने को तैयार ना था और उसे रोना आ गया काव्या ने आज तक अकेले बैठकर खाना नहीं खाया था सासू मां का रूखा स्वभाव कहीं ना कहीं उसके दिल को ठेस पहुंचा रहा था काव्या तो अब तक यही नहीं समझ पा रही थी

 कि जो सासू मां पहले इतनी अच्छी थी वह अचानक इतनी बदल कैसे गई अब तो काव्या को सासुमा के इस बर्ताव की आदत हो चुकी थी मगर वह अपनी जबान से कभी अपशब्द नहीं निकालती बारिश का मौसम शुरू हो गया था काव्या बोली मम्मी जी मैं सोच रही थी कमरे में हीटर लगवा दो ठंड भी बहुत लगती है और कपड़े भी नहीं सूखते हैं हीटर लग जाने से कपड़े भी जल्दी सूखने लगेंगे सरिता जी बोली हीटर और उसको लगवाने के पैसे क्या तुम्हारे मायके वाले देंगे अपने मायके में तो दो कमरों के घर में बड़ी हुई हो मगर यहां आकर तो तुम्हारे ठाठी ही अलग हो गए हैं

यहां आकर तो रजवाड़ों वाली जिंदगी जीने को मिल रही है तुम्हें हर चीज में ऐशो आराम चाहिए हां मैं तो भूल ही गई थी जिन लड़कियों ने अपने मायके में कुछ देखा ना हो वे ससुराल आकर कुछ ज्यादा ही खर्चा करने लगती है एक काम कर अपने माइके से हीटर मंगवा ले कम से कम मैं भी चार लोगों में बोल तो पाऊंगी कि मेरी बहू के मायके वालों ने उसे हीटर दिया है मगर मेरी ऐसी किस्मत कहां वे लोग तो तुझे कुछ देते ही नहीं काव्या फिर से आंसुओं के घूंट पीकर रह गई और उसने सासुमा की किसी बात का जवाब नहीं दिया दिन महीने बीतने लगे मगर सरिता जी के तानों की बौछार बढ़ती गई पड़ोसन के भड़का में आकर सरिता जी आए दिन घर में

 क्लेश करती एक दिन अचानक सरिता जी को चक्कर आए और और वो नीचे गिर पड़ी और दीवार में ठोकर लगने से उनके सिर में चोट भी बहुत आई काव्या घर में अकेली थी वो तुरंत सरिता जी को लेकर जैसे-तैसे हॉस्पिटल पहुंची सरिता जी का बहुत खून बह चुका था इत्तेफाक से सरिता जी और काव्या का ब्लड ग्रुप एक ही निकला काव्या ने अपना खून देकर अपनी सास की जान बचा ली थी रोहन और मुकेश जी भी आनंद फानन में हॉस्पिटल पहुंचे जब सरिता जी को पता चला कि उनकी बहू ने अपना खून देकर उनकी जान बचाई है वे फूट फूट कर रो पड़ी और बोली बहू मुझे माफ कर दो मैंने तुम्हारे साथ जो भी व्यवहार

  किया वह भड़कावे  में आकर किया काव्या को जब पता चला कि पड़ोस की गीता चाची ने सरिता जी को भड़काया था वह बोली मम्मी जी जिन लोगों के खुद के घर में सुख शांति का माहौल नहीं रहता वे लोग दूसरों के घर में भी उलझने डालते हैं ताकि दूसरों के घर की भी सुख शांति भंग हो हमें ऐसे लोगों से सावधान रहना चाहिए सरिता जी ने अपनी बहू को गले लगा लिया और बोली बहू अब मैं किसी की बातों में नहीं आऊंगी ना जाने मैंने भड़का में आकर अपने घर में ही कितने क्लेश कर लिए मैं मूर्ख इतना ना समझ पाई कि आजकल दूसरों के घर में सुख शांति देखकर लोग जलते हैं और उनके घर

 में भी आग लगा जाते हैं जिस आग की चिंगारी इतनी भयानक होती है कि अच्छे से अच्छा घर उसमें खाक हो सकता है दोस्तों अक्सर लोगों को दूसरों के घर की सुख शांति भंग करने में आनंद आता है इसीलिए हो सके तो दूसरों के भड़कावे में कभी ना आए क्योंकि आजकल लोग किसी का सुख बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं इस स्टोरी को लेकर आपकी क्या राय है नीचे कमेंट करके जरूर बताइएगा और ऐसी ही और भी बेहतरीन कहानी  के लिए हमारा पेज जरूर फॉलो करें धन्यवाद

लेखिका : स्वाति जैन 

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