Moral stories in hindi : सरोजनी जी वेदिका के पास खड़ी होती हुई बोलीं “मुझे कोई भी बात नहीं जाननी है। पति-पत्नी के बीच की बात आपस में ही रहनी चाहिए।
मैं अगर जानती हूँ तो बस इतना कि मैंने किसी को भी मेरे घर की लक्ष्मी का अपमान करने का अधिकार नहीं दिया है।
कोई भी बात, कोई भी समस्या चाहे कितनी ही गंभीर हो, चाहे एक की बात दूसरे को कितनी भी गलत लगे, फिर भी उसे सुलझाने का, गलतफहमियों को दूर करने का एक सही तरीका होता है।
साथ बैठकर शांति से बात करो, दूसरे के मन में क्या है उसे जानने का प्रयास करो, समझो। ये क्या कि तुरंत हाथ उठा दिया, नासमझों की तरह एक-दूसरे को अपशब्द कहने लगे।
ये मत भूलो कि जिसका हाथ पकड़कर तुम उसे इस घर में लाये हो उसके सम्मान की रक्षा करना तुम्हारा कर्तव्य है, ना कि इस तरह उसका अपमान करना तुम्हारा अधिकार।”
अब तक चुपचाप खड़ी वेदिका सरोजनी जी की ये बात सुनकर उनके गले से लगते हुए बोली “माँ आप कितनी अच्छी हैं। मैं तो सोच रही थी कि सभी माँओं की तरह आप भी बिना कुछ समझे-जाने अपने बेटे का ही पक्ष लेंगी।”
“मैं किसी का पक्ष नहीं ले रही हूँ बेटी। मैं बस सही के पक्ष में हूँ। अगर तुम मेरे सामने गलत करोगी तो मैं तुम्हें भी डाँटूंगी।
मुझे नारिवाद की बड़ी-बड़ी बातें करना नहीं आता है। मैं बस इतना ही जानती हूँ कि अगर स्वयं एक स्त्री होकर भी मैं दूसरी स्त्री के सम्मान को अपने सामने कुचले जाते हुए देखती रहूँ तो लानत है मेरे अस्तित्व पर, फिर चाहे उस सम्मान को कुचलने वाला मेरा अपना बेटा ही क्यों ना हो।” सरोजनी जी ने वेदिका के सर पर हाथ रखते हुए कहा।
अपनी माँ की बातें सुनकर विवान को अब अपनी हरकत पर ग्लानि महसूस हो रही थी।
वो सोचने लगा आखिर वेदिका की गलती ही क्या थी।
उसने बस इतना ही तो कहा था कि कल से एक हफ़्ते तक उसके दफ़्तर में ज्यादा काम है तो उसे सुबह जल्दी निकलना पड़ेगा। इसलिए वो अपने दफ़्तर जाते वक्त उसके लिए भी घर से खाने का डिब्बा लेता आये।
और इतनी सी बात को उसने अपने अहं पर चोट बना लिया कि भला वेदिका उसे आदेश कैसे दे सकती है?
जबकि वो भूल गया था कि महँगाई और बढ़ते खर्चों का हवाला देकर उसने ही तो वेदिका को ये नौकरी करने के लिए कहा था।
वो ये भी भूल गया कि उसके पापा हमेशा ही किस तरह घर से लेकर बाहर के कामों में भी बेहिचक उसकी माँ का हाथ बँटाते हैं और उन्होंने हमेशा उसे भी यही सिखाया है।
विवान को अहसास हो रहा था कि उसने सचमुच अपने माता-पिता की परवरिश को शर्मिंदा किया था।
गलती का अहसास होते ही विवान ने बिना किसी देरी के वेदिका से माफ़ी माँगते हुए कहा “वेदिका हो सके तो मुझे माफ़ कर देना। आगे से मैं ऐसी बेवकूफी वाली हरकत कभी नहीं करूँगा। बस आज आखिरी बार मुझे माफ़ कर दो।”
अपनी बात कहते-कहते विवान की आँखों से आँसूओं की धार बह चली।
उसके आँसू पोंछते हुए वेदिका बोली “मुझे भी माफ़ कर दो। मैंने भी गुस्से में तुमसे ना जाने क्या कुछ कह दिया।”
अपने बेटे-बहू के बीच में सब कुछ ठीक देखकर सरोजनी जी अपने कमरे की तरफ जा ही रही थी कि वेदिका ने उनका हाथ थाम लिया “माँ, आप जैसी सास और माँ हो तो कभी किसी बहू-बेटी के साथ कुछ गलत नहीं हो सकता है।
आज मुझे अहसास हुआ कि सास से ही ससुराल का असली सुख है।”
सरोजनी जी कुछ कहने ही वाली थी कि उनके पति नवीन जी जो ना जाने कब से आकर चुपचाप इन तीनों की बातें सुन रहे थे, बोले “अच्छा बहू, बस सास से ससुराल है ना, तो फिर मैं जो तुम्हारे लिए ये तुम्हारे पसंदीदा समोसे लाया था इसे मैं और विवान खा लेते हैं। तुम्हारे लिए तो तुम्हारी सासु माँ हैं ही।”
उनकी बात सुनकर सभी हँस पड़े।
वेदिका उनके हाथ से समोसे का पैकेट लेते हुए बोली “नहीं-नहीं पापा, मैं अपनी गलती सही कर लेती हूँ। आप दोनों जैसे सास और ससुर से ही ससुराल का असली सुख है।”
नवीन जी ने हँसते हुए वेदिका के सिर पर हाथ रखा और विवान कि तरफ देखते हुए बोले “बेटे आज तुम्हारी माँ यहाँ थी तो उसने बात सँभाल ली। देखना कहीं भविष्य में ऐसा ना हो कि जब हम दोनों ना रहें तब तुम फिर ऐसी कोई हरकत करो कि हम अपनी बहू से नज़रें ना मिला सकें।”
उनके गले लगते हुए विवान ने कहा “नहीं-नहीं पापा मैं भरोसा दिलाता हूँ अब ऐसा कभी नहीं होगा।
हम सचमुच बहुत भाग्यशाली हैं कि हमारे पास आप दोनों जैसे माता-पिता हैं।”
“अच्छा अब बस करो। अब बीती बातों को भूल जाओ सब लोग और चलो गर्मागर्म समोसों का आनंद लो।” सरोजनी जी सबको बाहर आने का संकेत करते हुए बोलीं तो सब हँसते-मुस्कुराते हुए उनके साथ चल पड़े।
बड़ों के सही मार्गदर्शन के कारण खाने की मेज पर एक बार फिर से गर्म समोसों के साथ प्रेम और स्नेह की ठंडी बयार बह चली थी।
©शिखा श्रीवास्तव
But in real life it’s totally different as Children don’t want any interference from parents side specially inlaws.
Correct me if I am wrong.
Best ideal story.
I disagree as I have seen if proper trust is built the children listen to what you say though they might not always follow your advice