सास से प्यार भरा रिश्ता – शिव कुमारी शुक्ला : Moral Stories in Hindi

अरे माला तू यहां कैसे माल में घूमते हुए जैसे ही रूपा की नजर माला पर पड़ी वह चहक कर बोली और दोनों गले लग गईं ।माला बोली अभी अभी छः माह पहले ही मेरे पति का स्थानांतरण यहां हुआ है।

चल आज मैं जल्दी में हूं फोन नंबर दे और मैं अपना भेजतीं हूं।कल तुझे मेरे घर आना है बैठकर जीभर बचपन को जिएंगे कुछ अपनी कहेंगे कुछ सुनेंगे। चलती हूं।आना जरूर है कह रूपा चली गई।

माला सोचती रही यह कितनी खुश है लग ही नहीं रहा इसकी शादी हो गई है कितने अधिकार से घर बुला लिया। क्या मैं जा पाऊंगी या उसे बुला पाऊंगी। 

असल में माला के पति जयेश एवं सास अनुराधा को ज्यादा किसी से घुलना-मिलना पंसद नहीं था। वे न किसी के घर जाना पंसद करते और न ही किसी का आना। हरेक में उन्हें कुछ न  कुछ बुराई या कमी दिखती थी और वे सोचते थे कि ज्यादा व्यबहार नहीं रखना चाहिए।जयेश के अपने भी कोई ज्यादा दोस्त नहीं थे।

फिर वह माला को कैसे जाने देता। जबकि इनके विपरीत माला बहुत ही खुशमिजाज, मेलजोल रखने वाली लड़की थी। जयेश एवं अनुराधा जी ने शादी के बाद उसके मायके के सारे संबन्धों पर भी रोक लगा दी थी। केवल घर में कोई कार्य हो तो जाने देते अन्यथा नहीं। इसीलिए वह पशोपेश में थी कि रूपा से मिलने जाने भी देंगे या नहीं।

उसने पहले जयेश से कहा आज मुझे माल  में मेरी बचपन की सहेली मिली थी।हम सोलह सत्रह वर्षों बाद मिले वह यहीं रहती है कल उसने मुझे घर पर बुलाया है मैं चली जाऊं।

जयेश क्या करती है तुम्हारी सहेली।

नहीं पता कभी बात ही नहीं हुई। यहां वह अपने परिवार के साथ रहती है।

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परिवार में कौन-कौन हैं।

उसके सास-ससुर , पति, बच्चे सब यहीं एक साथ रहते हैं। ठीक है चली जाना पर मेरे आने से पहले समय पर लौट आना।

ठीक है।

वह ऑफिस चला गया।अब उसने डरते-डरते सासु मां से पूछा वे बिफर पड़ीं

काम से बाहर जाना ठीक है पर ये क्या सहेली से मिलने जाना।

मम्मी जी वह बहुत बुला रही है हम सालों बाद मिले हैं, मिलने की इच्छा हो रही है मेरी भी।

जयेश से पूछ लिया।

हां मम्मी जी।

ठीक है चली जाना दोपहर को काम निपटा कर और शाम को समय पर आ जाना।

तभी रूपा का फिर फोन आया। आ ना  जल्दी मुझसे और इंतज़ार नहीं हो रहा।

बस निकल ही रही हूं। उसने टैक्सी की और चली गई।

वहां पहुंचते ही रूपा उसके गले लग गईं । रूपा ने अपने सास-ससुर को बता दिया था कि उसकी बचपन की सहेली आज उससे मिलने आयेगी।आज वह बहुत खुश है। अपने पति सचिन से भी बोली यदि संभव हो सके तो कुछ जल्दी आ जाना तुम्हें भी माला से मिलवाऊंगी।

माला को देखते ही रूपा खुशी से उछल रही थी।उसे ड्राइंग रूम में बिठा जोर से बोली मम्मी जी पापा जी माला आ गई।

ठीक है बेटा तुम बैठो बातें करो हम अभी आते हैं ।

थोड़ी देर बाद राधा जी एवं अनुपम जी आते हैं। माला द्वारा उनके पैर छूने पर उसे ढेरों आशीर्वाद दे प्यार से बातें करते हैं। परिवार के बारे में पूछते हैं,तब तक रूपा पानी लेकर आई। थोड़ी देर बाद वे यह कहकर कि अब  तुम अपनी बातें करो , एक दूसरे का साथ इंज्वॉय करो चले गए।

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चलते चलते मम्मी जी बोली रूपा तू आराम से बैठ और कोई चिंता मत करना।

दोनों अपने बचपन की बातों में खो गईं। पुरानी यादें, स्कूल कॉलेज के दिन न जाने कितनी बातें जो धूमिल हो गईं थीं आज फिर याद आ गईं । वे बातों में इतनी खो गईं थीं कि उन्हें समय का पता ही नहीं चला।

वो तो मम्मी जी चाय नाश्ता ले कमरे में आईं तो रूपा कुछ  संकुचित हुई़ मम्मी जी आप क्यों इतना परेशान हुईं मैं बना लेती।

बेटा तू तो रोज ही बनाती है यदि आज मैंने बना ली तो क्या हो गया।आज वर्षों बाद तुझे अपनी सहेली मिली है आराम से बैठ बातें कर।

नाश्ते में बहुत सी चीजें थीं, कुछ गर्म बनी हुईं।ये क्या मम्मी जी आपने इतना कुछ क्यों बनाया।घर में रखा था न इतना सब वही बहुत था।

रूपा सुन आज तू बहुत खुश हैं और तेरी इस खुशी में हमें भी तो शामिल कर। सालों से बिछुडे तुम लोग मिले हो तो कुछ अच्छा तो बनता है ना।

तभी पापा जी अंदर आते बोले जब हमारे मित्र आते हैं तो तू रोज दौड़ -दौड कर कितना सम्मान और सत्कार करती है तो आज हमनें कर दिया तो इतना संकोच क्यों कर रही हो बेटा। आराम से चाय नाश्ता करो ।यह सब सुन माला का तो बोल ही नहीं फूट रहा था क्या कहे बमुश्किल बस इतना ही बोली मम्मी जी आप बहुत परेशान हुईंं हम दोनों मिलकर बना लेती वहीं बातें भी करते जाते।

नहीं बेटा तुम लोगों को भी अधिकार है कभी कभी आराम से बैठने का चलो चाय नाश्ता इंज्वॉय करो।

सब चाय पी ही रहे थे कि रूपा के पति सचिन भी पहुंच गए बुके  एवं मिठाई के साथ, और बोले रूपा अपनी मित्र को पीले गुलाब देकर मुंह मीठा करवाओ। फिर सब मिलकर बातें करते रहे। घड़ी पर नजर जाते ही माला एक दम उठ खड़ी हुई रूपा अब मैं चलती हूं जयेश के भी आने का समय हो गया।

अरे ऐसे कैसे जायगी आज तो खाना खिला कर ही भेजूंगी ।

नहीं रुपा फिर कभी।

तभी सचिन बोले मैं फोन करके जयेश को भी यहीं बुला लेता हूं फिर खाना खा कर साथ ही चली जाना।

नहीं  जीजू आज रहने दें फिर कभी जरूर आयेंगे। उसकी घबराहट देख सबको अजीब सा लग रहा था। 

रूपा बोली कहां टैक्सी में जाएगी सचिन छोड़ देंगे।

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नहीं नहीं मैं चली जाऊंगी। ।

उसने टैक्सी की और चल दी। बार-बार उसकी नजर घड़ी पर जाती कहीं देर न हो जाए। कहीं जयेश घर  न पंहुच जाएं ।

उसके घर पहुंचते ही दस मिनट बाद ही जयेश भी पहुंच गया। उसके चेहरे की खुशी बता रही थी कि आज वह बहुत खुश हैं। जयेश ने मजाक किया सहेली से मिलकर बहुत खुश हो।

 हां जयेश हम पूरे  सत्रह साल बाद मिले। मायके में हमारे घर पास-पास ही हैं बचपन से लेकर कॉलेज तक का साथ रहा 

फिर शादी के बाद मिलना ही नहीं हुआ।

वह मायके आती तो मैं नहीं जा पाती और मैं जाती तो वह नहीं आ पाती। आखिर आज मिल ही गये। जयेश ने उसके परिवार के बारे में पूछा। उसने बताया कि वह और उसके सास-ससुर तो आने ही नहीं दे रहे थे कि खाना खा कर जाओ। वे तुम्हें भी फोन करने वाले थे कि तुम भी वहीं आ जाओ फिर एक साथ चले जाना।

यह सुन वह बोला मैं ऐसे किसी के यहां नहीं जाता। तुम्हारी सहेली है तुम्हीं मिलो।

नहीं जयेश रूपा ने फोन कर अपने पति को भी बुला लिया वे भी आपसे मिलना चाह रहे थे।

मैं क्यूं मिलूंगा मुझे क्या मतलब है।

माला चुप हो गई वह बात बढ़ाना नहीं चाहती थी।

रात को बिस्तर पर लेटे-लेटे आज उसकी आंखों से नींद कोसों दूर थी। उसने देखा बगल में लेटा जयेश गहरी नींद सो रहा था।उसे किसी के जज्बात से कोई मतलब नहीं था।वह अतीत के गलियारे में घूमने लगी ।कैसी स्वच्छंद जिंदगी मायके में जी रही थी। कैसे लोग उसे मिले कैद कर दिया घर में।शुरू  में कितना तड़फड़ाती थी

बाहर घूमने फिरने के लिए। आस-पड़ोस की महिलाओं से दोस्ती करने के लिए पर कैसे उस पर सास और पति ने शिकंजा कस दिया।अब तो उसका भी मन मर गया। औरत को ही क्यों समझौता करना पड़ता है। मायके जाने पर रोक, यदा-कदा जाओ। अन्य मायके के सम्बन्धीयों से नहीं मिलना न कोई आएगा न जाओगी।

जिस घर में बाइस साल गुजारे  जिन दादा-दादी, चाचा ताऊ, मौसी,मामा, नाना नानी की गोद में खेली, उनसे ही संबध नहीं रख सकती सिर्फ इसलिए कि इन लोगों को पसंद नहीं है। ये कैसा अत्याचार है।एक रुपा को देखो शादी के बाद भी कितनी खुश है। पूरा परिवार खुश मिजाज है।सास को देखो बहू की सहेली के लिए चाय नाश्ता बनाकर लाई

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कितनी खुशी  से प्यार से खिला रहीं थीं। इसमें उन्होंने अपना अपमान महसूस नहीं किया।कितने प्यार से मिलीं। रूपा का अपनी सास से कितना प्यार भरा रिश्ता है कैसे खुलकर बात कर रहीं थीं मानो उसकी मां हो। पूरा परिवार कितना खुश था।

काश ऐसे समझने वाली सास हर घर में हो तो किसी लड़की के जीवन में दुख ही न हो 

उसे लगे ही नहीं कि वह ससुराल में है पर सोचने से क्या किस्मत वालों को ही ऐसी समझदार सास मिलती है, हरेक के भाग्य में कहां।

शिव कुमारी शुक्ला 

22-12-24

स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित 

वाक्य प्रतियोगिता***काश ऐसी समझने वाली सास हर घर में हो

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