एक शहर मे ,शर्मा परिवार एक संयुक्त परिवार था, जहां तीन पीढ़ियाँ एक ही छत के नीचे हंसी-खुशी रहती थीं। और परिवार का दिल, आंगन में था, जहां हर सुबह की चाय से लेकर रात के खाने तक सब कुछ साझा होता था। पूरा परिवार बैठ के सुख दुख साझा करते थे।
उसी परिवार में शादी शादी की तैयारी चल रही थी. तब सें आंगन की रौनक बढ़ गई जब परिवार की नई बहू, साक्षी, घर में आई।
साक्षी का स्वागत बड़े धूमधाम से हुआ। साक्षी को आंगन में सजाने-संवारने का बहुत शौक था। उसने आंगन में तरह-तरह के फूलों के गमले लगाए, रंग-बिरंगी लाइटें सजाईं और आंगन को एक छोटे से बगीचे में बदल दिया। घर के हर सदस्य को आंगन में वक्त बिताना अच्छा लगने लगा। बच्चे वहां खेलते, बड़ों की बैठकों का ठिकाना वहीं था और महिलाओं की गपशप का भी अड्डा वही बना। साक्षी के आते ही आंगन की रौनक मानो दुगुनी हो गई थी।
परिवार की बड़ी बुजुर्ग साक्षी की सास, कमला देवी, घर की रीढ़ थीं। उनका स्नेह और अनुभव हर किसी को मार्गदर्शन देता था। परंतु, अचानक एक दिन कमला देवी की तबियत खराब हो गई और उन्हें अस्पताल में भर्ती करना पड़ा। घर में सन्नाटा पसर गया। साक्षी ने घर की जिम्मेदारियाँ बखूबी संभाल लीं, लेकिन सास के बिना उसका मन भी उदास था।
उसको समझ में आ रहा था. इतना बड़ा परिवार सासू मां ने कैसे संभाला होगा?
कमला देवी के बिना घर की स्थिति फीकी पड़ गई थी। उनका हंसी-मजाक, तीज-त्योहार की तैयारियाँ, सब कुछ जैसे ठहर गया था। परिवार का हर सदस्य उनकी कमी महसूस करने लगा। आंगन तो सजा-संवरा था, लेकिन उसमें जान नहीं थी। साक्षी ने अपनी सास की हर छोटी-बड़ी आदतों को ध्यान में रखते हुए, घर के कामों को उसी तरीके से करने की कोशिश की, परंतु सास का वह अपनापन और प्यार हर किसी को याद आता रहा।
कुछ हफ्तों बाद, जब कमला देवी घर लौटीं, तो सभी की आँखों में खुशी और आंसू थे। आंगन में एक बार फिर से रौनक लौट आई थी। साक्षी ने अपनी सास का स्वागत दिल से किया और उन्हें देखते ही आंगन में सभी फूल खिल उठे।
कमला देवी ने साक्षी को गले लगाते हुए कहा, “घर का आंगन बहू से सजता है, पर ससुराल सास के बिना फीका होता है। तुमने मेरी गैरमौजूदगी में घर को बहुत अच्छे से संभाला, इसके लिए मैं तुम्हारी आभारी हूँ।”
साक्षी ने भी सास को प्यार भरी नज़र से देखते हुए कहा, “आपके बिना यह घर अधूरा है, माँ। आपने हमें जो सिखाया है, वही सब हम सबने मिलकर किया है।”
इस तरह, घर का आंगन सास और बहू के रिश्ते की मिठास से फिर से गुलजार हो उठा। हर सदस्य ने महसूस किया कि परिवार की असली खूबसूरती एक-दूसरे के साथ और स्नेह में निहित है।दोनों बगैर घर अधूरा हैं. और सास और बहू का रिश्ता एक दूसरे के बगैर अधूरा है.
जब घर का आंगन बहू से सजता है, तो ससुराल भी सास के बिना फीका होता है। इसका अर्थ है कि सास की समझ, समर्थन और संरक्षा के बिना ससुराल का समृद्ध विकास नहीं हो सकता।
तृप्ति देव
भिलाई छत्तीसगढ़
#घर का आंगन बहू से सजता है तो ससुराल भी तो सास के बिना फीका होता है
nice story
धन्यवाद
Enough is enough
Absolutely