किरण अभी ग्रेएज्यूशन के अन्तिम वर्ष की छात्रा थी हँसी-खुशी मौज मस्ती में दिन गुजर रहे थे। मम्मी-पापा की स्नेहिल छत्र छाया ये दोंनों बहन भाई पल रहे थे। पढना लिखना आपस में नोंक-झोंक घूमना-फिरना सिवा पढ़ाई के और किसी काम की कोई चिन्ता नहीं थी। अब उसके मम्मी-पापा ने उसकी शादी की तैयारी
शुरु कर लडका देखना शुरू कर दिया। वे एक ऐसे परिवार की तलाश में थे जो शिक्षीत होने के साथ-साथ थोडा खुले विचारों का हो जो बहू को भी इंसान समझ उसे सही तरीके से जीने का मौका दे। तलाशते तलशाते उन्हें अपनी रिश्तेदारी में ही एक परिवार मिल गया। छोटा परिवार वे भी एक भाई बहन ही थे। लडका इंजीनीयर, एम बी ए करके मल्टीनेशनल कम्पनी में लगा हुआ था। जब वे उस परिवार से मिलने गए तो घर-वर दोनों ही उन्हें जंच गये, और वे लड़के वालों को घर आकर लड़की देखने का निमंत्रण दे आये।
इस बीच जब किरण की सहेलियाँ जो शादी शुदा थीं उनके अपने अनुभव, सास के कटु व्यवहार के किस्से सुन सुन कर किरण डर गई। सोचती ऐसी कट्टर सास मिलेगी तो कैसे जी पाँउंगी। वहां तो मम्मी-पापा भी नहीं होंगें किससे मैं अपना दर्द बांट पाऊंगी। कौन मेरा साथ देगा। सोच-सोच कर अब वह चिन्तित रहने लगी।
मम्मी ने उसका उदास चेहरा देख एक दिन पूछा किरण बेटा तुम किस उधेड बुन में खोई रहती हो। क्या परेशानी है तुम्हें । मम्मी में शादी नहीं करना चाहती।
क्यों बेटा शादी लायक तुम्हारी उम्र हो गई है पढाई भी पूरी हो गई अब क्या परेशानी है।
मम्मी सास बहुत दुख देती है मैं कैसे झेल
पाऊँगी। आपने तो मुझे कभी कुछ नहीं कहा मैं इतनी कड़वी बातें कैसे सुन पाऊँगी।
किसने कहा बेटा की सास परेशान करती है ।
मेरी सहेलियां जिनकी शादी हो गई है वे सब ऐसी बातें बताती हैं कि मैं डर गई हूं कैसे निभा पाऊंगी। वहां तो आप और पापा भी नहीं होंगें मैं अपनी परेशानी किसे बताऊंगी।
नहीं बेटा ऐसा नहीं है कि सभी सास बुरी ही हों। एक हाथ से ताली नहीं बजती कुछ तुम सहयोग करोगी कुछ वे करेंगी और रिश्ता आपस में प्रेम का भी स्थापित हो सकता है।
और यदि मम्मी उन्होंने ऐसा नहीं किया और मुझे परेशान किया तब क्या करूंगी । इससे तो अच्छा है कि शादी ही न की जाए , और मैं ऐसे ही आपके पास भली।
नहीं बेटा मन में पहले से ही पूर्वाग्रह नहीं
पालते ऐसा करने से तुम्हें एडजस्ट होने में कठिनाई आयगी ।तुम्हारा ये पूर्वग्रह तुम्हें तुम्हारी सास के साथ मिलने ही नहीं देगा। मन साफ रखो फिर देखो कैसे प्रेमपूर्वक रिश्ता निभता है। क्या तुमने मुझे और दादी को नहीं देखा। हमारे बीच कितना प्रेम का रिश्ता था ।सदैव वे मुझे बेटी की तरह प्यार देतीं थीं और में उन्हें मां का सम्मान। यदि वे कुछ कहतीं हैं, सिखाती हैं तो बडे की सीख समझकर सुनो, मैं भी तो तुम्हें तुम्हारी गल्ती के लिए डॉट देती हूँ तो यदि कभी वह कुछ कह भी दें तो अपने अहम को बीच में मत आने दो फिर देखो कैसा प्यारा रिश्ता कायम हो जाता है । और फिर अभी तो जो है ही नहीं उसकी कल्पना करके ही क्या भयभीत होना। सकारात्मक सोच रखो सब ठीक होगा।
लड़के वाले आये और उन्हें भी यह परिवार व लडकी पंसद आ गयी दोनों परिवारों की रजामंदी से रिश्ता तय हो गया और शादी की तैयारियाँ शुरू हो गई।
किन्तु किरण का मन अशान्त रहता । सोचती केसे नये घर में रहेगी। कौन उसकी बात सुनेगा। फिर अन्त में उसने एक निर्णय लिया कि वह सास से दूरी बना कर रहेगी। कभी उनके साथ नहीं रहेगी फिर कैसे परेशान करेंगीं।
यही सब सोचते शादी का दिन भी आ गया और वह विदा होकर ससुराल चली गई ।वह हर समय शकिंत रहती कि अब उसे परेशान किया जायेगा। सास का प्रेम पूर्ण व्यवहार उसे दिखावा लगता सोचती दो-चार दिन प्रेम दिखाकर फिर परेशान करना शुरु कर देगीं।
दिन में पिता-पुत्र के काम पर जाने के बाद, बेटी भी कालेज चली जाती । सास-बहू अकेली रह जातीं वह अपने कमरे से बाहर ही नहीं निकलती। सुमन जी सास जितना उससे घुलने – मिलने की कोशिश करतीं वह उनसे उतना ही दूर भागती। सुमनजी एक सहज ,सरल स्वभाव की महिला थीं ।उन्होंने उसे समझाया भी बेटा अब ये घर भी तुम्हारा है
आराम से हिल मिल कर रहो । तनु तुम्हारी छोटी बहन की तरह है उससे दोस्ती करो।
करण उसके पति ने भी उसे समझाया कि यहां तुम्हें कोई परेशानी नहीं होगी आराम से घर समझ कर रहो। पर उसका पूर्वाग्रह उसे सहज नहीं होने दे रहा था। साल भर बीतते ही वह करण से बोली मैं अलग रहना चाह रही हूं।
करण ने बहुत समझाया पर वह नहींं मानी।
मम्मी-पापा ने बच्चों के सुखद भविष्य को देखते हुए उन्हें अलग रहने की अनुमति दे दी और उसी शहर में अलग मकान लेकर रहने लगे।
घर गृहस्थी का अनुभव न होने से वह परेशान रहने लगी पर सोचती अच्छा है सास से तो दूर है। अब वह गर्भवती हुई तो उसकी तबीयत खराब रहने लगी। चौथा माह निकलते कुछ काम्पलीकेशन की वजह से डाक्टर ने उसे बैड रेस्ट की की सलाह दी। अब क्या करें। करण के उसे समझाया की घर चलो मम्मी सब सम्हाल लेंगीं। किन्तु उस का मन उसे रोकता। तभी सुमनजीऔर उनके पति दिनेश जी उनसे मिलने आये और उसकी हालत देखकर अपने साथ ले गये। सुमन जी ने डिलीवरी तक जिस तरह उसे सम्हाला उसे देख कर वह नत मस्तक हो गई । बेटा होने के बाद मां और बेटे को उन्होंने खुशी खुशी जिस लरह सम्हाला कि बह आत्म ग्लानि से भर उठी।
आज उसने सोच लिया कि मैं अपने गलत व्यवहार के लिए मम्मी जी से माफी माँगूंगी, और वह आँखों में आंसू भर अपनी सास के पांव पर झुक गई।मम्मी जी मुझे माफ कर दो मेरी आपके बारे में कितनी गलत सोच थी अब मेरी सारी गलतफहमी दूर हो गई। सुमन जी ने उसे कंधे से पकड अपने गले लगा लिया कोई बात नहीं बेटा सुबह का भूला शाम घर आ जाये तब भी भूला न कहलाए ।आज सच में तू मेरी बहू बन पाई है। सुमन जी उसे प्यार कर रहीं थी और उसकी आँखों से आंसू झर रहे थे।
शिव कुमारी शुक्ला
4-8-24
स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित
वाक्य++++बहु आंखों में आंसू भर अपनी सास के पांव पर झुक गई