सुषमा और उसकी सास ऊषा जी मिलजुलकर प्रेम से रहती थी। सुषमा एक संस्कारी सुशील लड़की थी। सुषमा की शादी हुए दो साल हो गए थे। उसे परिवार में सबका स्नेह, प्यार, और सम्मान मिल रहा था। उसे ससुराल में अपनापन मिल रहा था, और वह भी सबकी सुख सुविधा का ध्यान रखती थी। सास ससुर का सम्मान करती, सबकी पसन्द नापसन्द का ध्यान रखती।
देवर को भैया करके सम्बोधित करती और उनके भी सारे काम मनोयोग से करती। एक बड़ी ननन्द थी, उनकी शादी हो गई थी, वो जब मायके आती तो सुषमा उनके साथ भी प्रेम से रहती, उनकी पसन्द का भोजन बनाती। अपनी नई -नई साड़ियां उन्हें मनुहार करके पहनाती। वह घर में सबकी चहेती थी। सब उसकी तारीफ करते नहीं थकते थे।
पूरे मुहल्ले में उसके व्यवहार की तारीफ होती थी। यह बात उनके पड़ोस में रहने वाली सुजाता आण्टी को रास नहीं आ रही थी, वे मौका ढूँढ रही थी कि कब उन्हें अवसर मिले और वे सास बहू के रिश्ते के बीच दरार डाले।
उनकी अपनी बहू से बिलकुल नहीं बनती थी, दिन भर खटर- पटर चलती रहती थी।एक दिन उनके पति राजेश बाबू ने भी उलाहना दियाकि ‘तुम्हें अपने पड़ोसी से कुछ सीखना चाहिए, उनके घर में कितनी शांति है,और एक तुम दोनों ने घर को अखाड़ा बना दिया है।’ सुजाता जी को उनकी बात चुभ गई,
मगर उन्होंने अपनी आदत सुधारने के बजाय, ऊषा जी के घर में फूट डालने का सोचा। एक दिन सुषमा के ससुर जी और देवर किसी काम से दूसरे गॉंव गए थे। और ऊषा जी बाजार में कुछ सामान लेने गई थी। मौका देखकर सुजाता जी उनके घर आई, उस समय सुषमा बरतन मांज रही थी।
उसने सुजाता जी के पॉंव पड़े, तो उन्होंने उसके दोनों हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहा -‘ ओ..हो..राम राम तेरे हाथ कितने कड़क हो गए हैं, तू कितना काम करती है। पर बेटा मेरी एक बात ध्यान रखना “बहू चाहे कितना भी कर ले वह बेटी नहीं बन सकती।” सुषमा ने कहा- ‘आण्टीजी बहू, बेटी भले ही न बन सके मगर वह घर की लक्ष्मी होती है।
ससुर जी बहू के पैर पूजकर उसको आदर देते हैं और सासुजी आरती करके, कंकू के पगल्ये भरवाकर घर में प्रवेश करवाती है।घर में उसे गृहलक्ष्मी का दर्जा दिया जाता है, ये पद बेटी के पद से कम तो नहीं है। मुझे सास ससुर ने वह दर्जा दिया है। मुझे परिवार में मेरी अहमियत और फर्ज दोनों का ध्यान है।
कृपया आगे से आप इस तरह की फूट डलवाने की बात मत करिऐगा।’ सुजाता जी उसका जवाब सुनकर दंग रह गई, उनके मन्सूबे पर पानी फिर गया था,वे उनके घर चली गई। सुषमा को उसकी माँ ने यह शिक्षा दी थी कि ‘बेटा अपने ससुराल को अपना समझना, किसी के बहकावे में आकर अपना घर मत बिगाड़ना।
ऊषा जी पैसे का पर्स घर पर भूल गई थी, अत: वापस घर लौट आई थी, उन्होंने सुषमा और सुजाता जी की बातचीत सुनी तो उन्हें अपनी बहू पर गर्व हुआ। उन्होंने आकर बहू को अपने गले से लगा लिया और कहा ‘तू मेरे लिए मेरी बेटी से भी बढ़कर है।’सुषमा ने कहा माँ अपना आशीर्वाद हमेशा बनाए रखना।
प्रेषक-
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित