शरद ने जैसे ही अपने पड़ोसी अनिल के मकान के गेट को खटखटाया, अनिल गेट खोलकर तुरंत बाहर आ गया। वह आश्चर्यचकित होकर अनिल और उसके साथ आये कुत्ते को देखता रह गया। कुत्ते के गले से बंधी जंँजीर को शरद अपने हाथ में पकड़े हुए था। कुछ क्षण के बाद उसने बेरूखी से कहा, “क्या बात है?”
“साहब!.. ये रहा आपका कुत्ता!”
“वह तो मर गया था..”
“मरा नहीं था, मरनासन्न अवस्था में पहुंँच गया था।”
अनिल ऊंँचे ओहदे पर कार्यरत पदाधिकारी था। उसके पास एक अच्छी नस्ल का एक कुत्ता था, जिसको घर के लोग उसको राॅकी के नाम से पुकारते थे। वह दिन-रात उसके घर की रखवाली करता था। कोई भी उसके गेट के पास ठहर जाता चाहे आदमी हो या जानवर,
वह भौंकने लगता था। उसके मकान के गार्डेन में कोई जानवर किसी तरह से दाखिल भी हो जाता तो वह बेचैन हो उठता था, वह भौंकने लगता था, उसको खदेड़ने लगता था, और अंत में उसको भगाकर ही दम लेता था। अपनी सतर्कता और कड़ी निगरानी की बदौलत उसने घर में एक-दो बार चोरी भी नहीं होने दी थी।
कुत्ता अनिल के लिए हर तरह से ठीक था, लेकिन उसके एक आचरण से वह क्षुब्ध था। उसकी ऐसी आदत थी जिसके कारण अनिल और उसके परिवार के सदस्यों की नजरों में वह खटकता रहता था। राॅकी अपने मालिक के घर की निगरानी के साथ-साथ उसके बगल के पड़ोसी शरद के घर की भी हिफाजत करता था। उसके इस आदत के कारण उसे कइ बार डंडों से पिटाई का दर्द भी सहना पड़ा था किन्तु उसकी आदत में सुधार नहीं हुआ।
किसी की लापरवाही के कारण गेट खुला रह जाने पर वह धनुष से छूटे हुए तीर की तरह अपने मालिक के घर से निकलकर शरद के घर में दाखिल हो जाता था। शरद के छोटे-छोटे दोनों पुत्रों, विवेक और हर्ष के साथ खेलने लगता था। वह दुम हिलाकर खुशी प्रकट करता था। उसके बच्चे रोटी या अन्य उपलब्ध खाद्य सामग्री उसको खिलाकर उसका स्वागत करते थे।
राॅकी की ऐसी ही आदतें शरद और अनिल के मध्य विवाद का कारण बना। अनिल हर तरह से समृद्ध था जबकि शरद छोटे पद पर काम करने वाला गरीब मुलाजिम था।
एक दिन इसी मुद्दे पर दोनों पड़ोसियों के बीच कहा-सुनी हो गई। इस बाबत शरद ने दलील देते हुए कहा था कि वह क्या कर सकता है इसमें, राॅकी गाहे-बगाहे उसके घर में प्रवेश कर बच्चों के साथ खेलने लगता है। वह राॅकी पर ऐसा नियंत्रण रखे कि वह उसके घर में दाखिल ही नहीं हो।
उसके उचित और तर्कसंगत बातों का उसके पास कोई जवाब नहीं था। वह निरूत्तर होकर अपने मकान के अन्दर चला गया।
एक पदाधिकारी का अदना सा आदमी के साथ विवाद में उलझना फिर निरूत्तर हो जाना, उसको अखर रहा था। वह अपने को पराजित और अपमानित सा महसूस कर रहा था।
पल-भर बाद ही जब राॅकी दुम हिलाता उसके पास आया तो उसका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंँच गया। उसने अपना सारा गुस्सा उस बेजुबान जानवर पर उतार दिया। उसने डंडे से उसकी इतनी पिटाई की, कि वह दर्द से चीखता रहा, चिल्लाता रहा अपनी भाषा में, लेकिन उसके दिल में जरा भी दया नहीं आई। वह घायल होकर जमीन पर गिर पड़ा।
उसने न तो उसका इलाज करवाया और न उपचार। राॅकी की हालत समय बीतने के साथ-साथ बिगड़ती गई।
उसने शरद पर आरोप भी लगाया कि न जाने इसके घर में लोगों ने क्या खिला दिया, जिसके कारण उसके कुत्ते की जान खतरे में पड़ गई है।
किन्तु शरद ने राॅकी की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए चुप ही रहना बेहतर समझा।
उस दिन जब वह ड्यूटी से लौट रहा था तो उसने देखा कि अपने ही मोहल्ले के एक गढ्ढे में राॅकी पड़ा है।
शरद के मुआयना करने पर पता चला कि वह अंतिम अवस्था में पहुंँच गया है किन्तु जान उसमें बाकी है। उसने अपने पुत्रों की सहायता से उसे उठाकर अपने घर ले आया। पशु-चिकित्सक से इलाज करवाया। बाप-बेटों ने मिलकर उसका उपचार किया। इस तरह उसकी जान बच गई। चिकित्सक के अनुसार अगर कुछ घंटों के बाद उसका इलाज शुरू होता तो शायद उसको बचाना असंभव था।
कुछ मिनट तक सन्नाटा छाया रहा, जिसको भंग करते हुए अनिल ने कहा,
“क्या चाहते हैं?”
“राॅकी को मैं आपके सुपुर्द करने आया हूँ.. मैं आपको आश्वासन देता हूँ कि राॅकी अब मेरे घर में कभी नहीं आएगा, ऐसी व्यवस्था मैंने अपने घर में की है” कहते हुए उसने राॅकी के गले से बंँधी हुई जंँजीर को उसके हाथों में पकड़ा दिया।
जैसे ही शरद अपने घर जाने के लिए मुड़ा, उसका हृदय द्रवित हो गया, उसकी आँखें भर आई।
स्वरचित
मुकुन्द लाल
हजारीबाग (झारखंड)