रिश्तों में बढ़ती दूरियाँ – डाॅ संजु झा: Moral Stories in Hindi

कथानायिका विमला की कहानी  करीब पचास-साठ वर्ष  पूर्व की है।उस समय समाज में नारी की स्थिति अत्यधिक दयनीय  थी।उसे अपनी इच्छा और भावनाओं को व्यक्त करने का कोई अधिकार नहीं था। परिवार  के लिए बस वह एक कठपुतली  मात्र थी।विमला अपने सभी भाई-बहनों में छोटी थी,इस कारण घर में सबकी लाडली थी।विमला देखने में अत्यधिक खुबसूरत थी।जैसे-जैसे विमला बड़ी हो रही थी,उसका रुप-सौन्दर्य निखरता जा रहा था।उस समय बेटियों की पढ़ाई का कोई महत्त्व नहीं था।पन्द्रह  वर्षीया विमला के लिए उसके पिता ने रूपवान और गुणवान निखिल को चुना,जो इंजिनियरिंग के प्रथम वर्ष में था।उस समय इंजीनियर दामाद लाना परिवार ही नहीं समाज के लिए भी गर्व का विषय था।पन्द्रह वर्षीया विमला का विवाह अट्ठारह वर्षीय निखिल के साथ धूमधाम से हो गया।गौना(लड़की विदाई)का कार्यक्रम पाँच साल बाद  रखा गया था।तबतक विमला भी बालिग हो जाती और निखिल की पढ़ाई भी पूरी।निखिल गरीब घर का मेधावान पुत्र था।

पाँच वर्ष पश्चात् किशोरावस्था से जवानी में पहुँचकर विमला का रुप-सौन्दर्य पूर्णतया निखर चुका था।लम्बा कद,सुतवा नाक,दूधिया गोरा रंग,गुलाबी अनार से अधर विमला की सुन्दरता में चार चाँद लगा रहे थे।निखिल भी खुबसूरत  लम्बा नौजवान बन चुका था।उसके प्रशस्त ललाट, घुँघराले काले केश,गोरा रंग,संयमित स्मित मुस्कान देखकर कोई भी आकर्षित हो सकता था।

निखिल की पढ़ाई  पूरी होने पर विमला लाल सुर्ख जोड़े में सजी,मन में पिया- मिलन के सपने संजोए ससुराल आ गई। ससुराल में सास-ससुर, देवर-ननद से भरा-पूरा परिवार था।निखिल  विमला को पत्नी के रूप में पाकर काफी खुश था।विमला भी निखिल जैसा पति पाकर खुद को भाग्यशाली महसूस कर रही थी।  मिलन की रात में दोनों पति-पत्नी एक-दूसरे की बाँहों में खोकर सुनहरे भविष्य का ख्वाब देखा करते।देखते-देखते निखिल की छुट्टियाँ खत्म हो गईं और वह नौकरी पर कलकत्ता चला गया।नवविवाहिता विमला के मन में निखिल के जल्द ही लौटने की आस थी।निखिल की खुबसूरत यादों के सहारे परिवार के साथ उसका दिन बीतने लगा।

कुछ माह पश्चात् निखिल छुट्टियों में घर वापस  आया।उसे देखकर परिवार के लोग काफी खुश थे।विमला के मन में तो पिया-मिलन के लड्डू फूट रहे थे। इस बार  निखिल ने परिवार को खुशखबरी  सुनाते हुए जोर से कहा- “सभी ध्यान से सुन लो।कंपनी मुझे कुछ दिनों के लिए अमेरिका भेज रही है!”

अमेरिका जाना उस समय बहुत  बड़ी बात मानी जाती थी,इस कारण परिवार के लोग खुशी से झूम उठे,परन्तु अमेरिका जाने की बात सुनकर  विमला के सुखद दाम्पत्य-जीवन के सपने धड़ाम से जमीन पर गिरकर धराशायी हो गए। 

निखिल के अमेरिका जाने का जश्न समाज और परिवार के लोगों ने धूम-धाम से मनाया।निखिल भी अमेरिका जाने के उन्माद में था।विमला के हृदय के सूनेपन की चिन्ता किसी को नहीं थी।उस समय ग्रामीण इलाकों में शिक्षा,यातायात, दूरसंचार की  पहुँच बहुत कम थी।अमेरिका लोगों के लिए अबूझ पहेली बना हुआ था,इस कारण गाँव के लोगों को बस इतना ही ज्ञान था कि समाज का बेटा अमेरिका अपने इलाके का नाम रोशन करने जा रहा है।

जश्न खत्म होने के बाद निखिल रात में कमरे में आया,तो विमला उससे लिपटकर फूट-फूटकर रो पड़ी।निखिल ने प्यार से समझाते हुए कहा -“विमला!तुम्हें तो गर्व होना चाहिए कि तुम्हारा पति अमेरिका जा रहा है और तुम खुश होने की बजाय  रो रही हो?

विमला -“आप कुछ भी कह लो।मैं रिश्तों में दूरियाँ सहन नहीं कर पाऊँगी।मैं आपके बिना नहीं रह पाऊँगी।”

निखिल की आँखों में अमेरिका के सुनहरे सपने और सुखद भविष्य का सपना था,जिसे वह पत्नी के अश्रुकणों के समक्ष कमजोर नहीं पड़ने देना चाहता था।उसने एक बार फिर से समझाते हुए कहा -” विमला!मैं दूर अवश्य जा रहा हूँ,परन्तु हमारे रिश्तों में दूरियाँ नहीं आऐंगी।मैं जल्द ही आकर तुम्हें अपने साथ ले जाऊँगा।”

विमला के लिए पति-वियोग असहनीय था।पति का हाथ पकड़कर रोते-रोते उसने कहा -“मैं आपके बिना कैसे जाऊँगी?अभी तो हमारे दाम्पत्य-जीवन के पुष्प खिले भी नहीं और आप उसे मुरझाने की बात कह रहे हो।”

निखिल-” विमला!भावनाओं में बहने से जिन्दगी नहीं चला करती है।जैसे मेरे माता-पिता,भाई-बहन मेरे बिना रहेंगे,वैसे ही तुम भी रहना।”

विमला -” मैं सुहागन होकर भी विधवा के समान कैसे रहूँगी?”

अब निखिल ने गुस्सा होते हुए कहा -” विमला!तुम समझती नहीं हो,अपने सपनों को साकार करने के लिए मुझे जाना ही होगा।मेरे लौट आने तक तुम खुद को विधवा ही समझ लेना।कोशिश करूँगा कि जल्द लौट आऊँ।”

नारी-जीवन में आज भी मजबूरियाँ हैं,परन्तु वर्षों पूर्व तो नारी को इंसान समझा ही नहीं जाता था।लक्ष्मण ने भी तो नवविवाहिता उर्मिला को चौदह वर्ष की विरहाग्नि में झुलसने को छोड़ दिया था,सती सीता को अग्नि परीक्षा देनी पड़ी थी,तो सामान्य नारी विमला की क्या औकात थी?

एक सप्ताह उपरांत गाँववालों और परिवारवालों ने  फूलों के हार के साथ निखिल को कलकत्ता के लिए  रवाना किया।कलकत्ता से निखिल  मन में सतरंगे ख्वाब समेटे सात समंदर पार अमेरिका पहुँच गया।पति-पत्नी के रिश्तों में दूरियाँ आ चुकी थी।अब विमला दीये की बाती के समान तिल-तिलकर निखिल की विरहाग्नि में जलती रहती।उसके सास-ससुर अपना दुख भूलकर उसे सांत्वना देते हुए कहते -” बहू!मन उदास मत करो।निखिल जल्द वापस लौट आएगा।”

उस समय फोन की तो सुविधा नहीं थी।हाँ!आरंभ में दो-चार महीने पर निखिल का पत्र और पैसा आ जाता।विमला निखिल के पत्र को तबतक सीने से रातभर लगाए रखती,जब तक निखिल का दूसरा पत्र नहीं आ जाता।विमला बेकरार होकर हर लम्हा ,हर पल पति का इंतजार करती।पिया के बिना उसकी दुनियाँ वीरान हो गई थी।सपनों में,सोते-जागते हुए हर पल उसे निखिल की यादें ही घेरे रहतीं।विमला का इंतजार अंतहीन हो चला था।पति-बिछोह में उसक शरीर रिक्त नदी बन चुका था।

 बारिश की पहली खुशनुमा फुहारों के समान विरहिणी विमला की जिन्दगी में निखिल  का अंश उसके गर्भ में दस्तक देने लगा।अब विमला निखिल के साथ-साथ अपने गर्भस्थ शिशु का भी इंतजार करने लगी।नौ महीने बाद  विमला ने एक खुबसूरत बच्ची को जन्म  दिया।धीरे-धीरे निखिल के पत्र और पैसे कम आने लगें।कुछ समय बाद  वो भी आने बिल्कुल बंद हो गए। 

निखिल के माता-पिता और परिवार के पास निखिल का पता लगाने का कोई साधन  नहीं था।विमला निखिल की यादों और बेटी के सहारे अभावग्रस्त जिन्दगी बिता रही थी।गाँव में लोगों में काना-फूसी शुरु हो गई थी।कोई कहता कि निखिल का देहांत हो गया ,तो कोई कहता कि निखिल ने अमेरिका में दूसरी शादी कर ली है।परन्तु विमला का अंतर्मन इन बातों की गवाही देने को तैयार नहीं था।वह रिश्तों की दूरियाँ बर्दाश्त करने को तैयार थी,परन्तु पति के बारे में कुछ अनहोनी नहीं सोचना चाहती थी।उसने अपनी माँग से निखिल नाम का सिन्दूर और बिन्दी को नहीं हटाया।उसकी अंतहीन प्रतीक्षा जारी थी।

निखिल के माता-पिता बेटे की आस लगाए स्वर्ग सिधार चुके।समय के साथ  विमला की बेटी नीना भी शादी लायक हो गई। बेटियाँ तो बेल की तरह तुरंत बड़ी हो जाती हैं।पूँजी के नाम पर विमला के हिस्से में कुछ जमीनें आईं थीं,जिन्हें बेचकर  विमला ने बेटी की शादी कर दी।विमला का दामाद सुजीत साधारण नौकरी करता  था।अपने ससुर के बारे में जानकर सुजीत अपने स्तर पर पता लगाने की कोशिश करता है।उसे सास की सूनी-सूनी आँखें और उनकी उदासी बेचैन कर देती।सुजीत  निखिल की पुरानी चिट्ठियां और पता लेकर कलकत्ता में पता लगाने की जी-जान से कोशिश करता है,परन्तु परिणाम सिफर ही हाथ आया क्योंकि चिट्ठी के पते के अनुसार वहाँ कोई नहीं रहता है और वो कंपनी भी वर्षों पूर्व बंद हो चुकी थी।सुजीत हताश होकर खाली हाथ वापस लौट आता  है।

दामाद सुजीत के द्वारा निखिल का कोई सुराग नहीं मिलने के बाद से विमला काफी उदास रहने लगी।अब जीवन से निराश हो चुकी थी।पति की याद में तिल-तिलकर जलती हुई विमला की जीवन ज्योति एक दिन बुझ गई। रिश्तों की डोरी तार-तार हो चुकी थी। समाज  और परिवार वाले निखिल के बारे में बस अनुमान ही लगाते रहें,परन्तु आज तक निखिल का कोई सुराग नहीं मिल सका।

समाप्त। 

लेखिका-डाॅक्टर संजु झा (स्वरचित)

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