रिश्तों की स्पष्टता – लतिका श्रीवास्तव

मोबाइल उठा कर हेलो कहते ही दूसरी तरफ से राजन की झुंझलाती आवाज आई अरे यार जल्दी बोलो कुछ जरूरी बात है क्या …टाइम नहीं है मेरे पास सांस लेने का भी….बस इतना सुन कर ही शिखा ने मोबाइल ऑफ कर दिया ….पूरा मूड खराब हो गया था उसका…

राजन की व्यस्तता!!! कम तो कभी होती ही नहीं.!!और लोग भी तो नौकरी करते हैं…कैसे टाइम निकाल लेते हैं!!रोज घूमना फिरना साल में तीन बार कहीं बाहर सैर सपाटा पार्टी बाजी ….जाने क्या क्या करते रहते हैं….!कभी कभी तो लगता है इन दिनों ये राजन व्यस्त होने का दिखावा करने लगे हैं ….पर क्यों? कहीं ऑफिस में ज्यादा मन तो नहीं लगने लग गया है!!नारी मन में संदेह उफन ही आता है।इस टोन में बातें तो राजन ने कभी नहीं की थीं..!

बेटी कुहू का पहला जन्मदिन है एक हफ्ते बाद …राजन के साथ बैठकर जन्मदिन मनाने की प्लानिंग करना है …शिखा सीधे सादे तरीके से जन्मदिन मनाने के पक्ष में थी…… सासू जी का उत्साह तो सीमाएं लांघ रहा है उनका तो अलग ही कार्यक्रम बन रहा है सत्यनारायण पूजा सुबह होगी फिर दोपहर में भजन कीर्तन और रात में सारे खानदान मोहल्ले का भव्य भोज साथ ही सभी आगंतुकों को कुछ उपहार अवश्य देना है ….आखिर उनके स्टेटस का सवाल है पहली पोती का जन्मदिन इतनी शान शौकत से मनाना है कि सारी नातेदारी और परिचित उनका और उनके ऊंचे स्टेटस का लोहा मान जाएं….उन्होंने तो हर मौके पर पहनने के लिए साड़ी ज्वैलरी सबकी लिस्ट बना ली है राजन के साथ बाजार जाएंगी सारा सामान वो खुद ही खरीद कर लाना चाहतीं हैं…!…दूसरे घर की लड़की हमारे घर के रीति रिवाज क्या समझेगी जब तक देखेगी नहीं……शिखा को अभी से गाहे बगाहे ढेरों निर्देश देती रहती हैं…”देख ठीक से तैयार हो जाना …उस दिन के समान नहीं…!

उस दिन..!!

उस दिन….सुबह ही मां ने शोख रंग की साड़ी और मैचिंग ज्वैलरी देते हुए कहा था शिखा देख अच्छे से तैयार हो जाना शाम को राजन के माता पिता आ रहे हैं तुझे मिलने मैं मानती हूं राजन तुझे पहले ही पसंद कर चुका है वो तुझे समझता है लेकिन उसके माता पिता आज पहली बार तुझे देखेंगे अपनी होने वाली बहू से मिलेंगे बेटा तू कोई भी नखरे मत करना ….!!




शिखा जानती थी नखरे से मां का क्या अभिप्राय है…!लेकिन उसे ये औपचारिकताएं जरा भी पसंद नहीं हैं इस तरह साड़ी वाड़ी पहनकर सज धज कर शो पीस जैसे बैठना  तकल्लुफी बातचीत और फिर बीच बीच में मां का अलग से अंदाज़ में कहना ….हमारी शिखा घरेलू कार्यों में बहुत दक्ष है लीजिए ये पनीर पकोड़े खाइए इसी ने बनाए हैं….या फिर उसे धीरे से टोकना ….ठीक से साड़ी संभाल कर बैठ राजन से इतनी ज्यादा बात मत कर सबके सामने….!

उफ़…!!ये क्या दिखावटी सामान सा बन कर अभिनय करना सोच कर ही उसे मितली सी आने लग गई थी।..मां ये साड़ी वाड़ी पहनने का नाटक मुझसे नहीं होगा कॉलेज के फेयरवेल में एक बार ही पहनी थी वो भी दो घंटे लगे थे चार लड़कियों ने पहनाई थी…और क्या ये साड़ी ही पहनना जरूरी है!!आज कल ये सब नहीं चलता मां..मैं तो वही आसमानी सलवार सूट पहनकर मिलूंगी ये ज्वैलरी क्यों!!शिखा ने स्पष्ट तरीके से मां से वो सब कह दिया जिसका मां को खतरा था इसे ही वो नखरे कह रही थी।

अरे ज्वैलरी से ही तो हमारे स्टेटस का पता चलेगा उन्हें ….देख मैने भी अपना ये जड़ाऊ सेट निकाला है ..क्या कहा वो बदरंग सा आसमानी सूट ….बिलकुल नहीं …. तू कैसे नही पहनेगी ज्वैलरी …क्या सोचेंगी राजन की मां..आज तो जैसा मैं कहूंगी तुझे करना ही पड़ेगा हर वक्त तेरी मन मानी आदर्श वादी बातें नहीं अच्छी लगती…मां ने डपट कर कहा तो शिखा भी पलटवार सा करती हुई साड़ी और ज्वैलरी मां के सामने पटक कर अपने कमरे में चली गई।

जिनके साथ जीवन भर के रिश्ते जोड़ने थे उनकी शुरुआत उनकी नीव असलियत और स्पष्टता के गारे से मजबूत होनी चाहिए।




शाम को आसमानी सूट पहने सादे वेश वाली शिखा खुद अपनी मां को तो फूटी आंख नहीं भाई पर राजन के माता पिता दोनों तो जैसे फिदा ही हो गए थे उस पर…राजन की मां तो अपनी खुशी छिपा ही नही पा रहीं थीं कि मुझे तो ऐसी ही सादगी पसंद दिखावा रहित बहू चाहिए थी…।बार बार उनका ये कहना शिखा को बहुत सुकून दे रहा था।

शादी के दूसरे दिन ही सारे रिश्ते दारों के बीच उन्होंने बहुत प्रेम से शिखा से कहा था …”तुम इस घर की बेटी हो अपने को बहू मत समझना मुझे तुम मां जी नहीं सिर्फ मां ही कहना जैसा तुम अपनी मां को कहती हो इस घर में तुम्हारी जैसी ही बेटी की बहुत जरूरत थी तुम्हारे आने से पूरी हो गई….।

शिखा बहुत खुश थी कि उसे अपने जैसी विचारधारा वाला ससुराल मिल गया…

शादी के शुरुआती कुछ दिन तो वो  तड़क भड़क कपड़े ज्वैलरी आदि सासू मां के कहे अनुसार करती गई कि नाते रिश्तेदारों के बीच  नई नवेली बहु सजी धजी हुई सी ही दिखनी चाहिए….सारे मेहमानों के जाने के बाद उसने फिर से सूट पहन लिया ….चाय लेकर जैसे ही सासूजी के पास गई वो चौंक कर उसकी ओर देखने लग गईं…” ये क्या अभी एक साल तक तो बहू जैसी ही दिखती रहो  हाथ भर चूड़ियां भी पहनो साथ में सोने के वो मोटे वाले कंगन जो हमने चढ़ावे में दिए हैं रोज पहनो…पैर तो बिना पायल के अशुभ से लगते हैं वो मोटी चौड़ी वाली बजनी पायल इसीलिए तो तुम्हारे लिए खरीदे हैं…और अभी एक साल तक तो साड़ी ही पहन लो सारे तीज त्योहार काज सब पहली बार होंगे जरूरी है साड़ी….!इतनी हड़कदार आवाज में उन्होंने कहा कि अवाक शिखा की बोलती ही बंद हो गई थी।




…”..अरे वो तो हम अपने बेटे के कारण उस समय कुछ बोल ही नहीं पाए थे राजन समझा के ले गया था कि अभी देखने जा रही हो कुछ ऐसा वैसा नहीं बोल देना सभी बातों की तारीफ ही करना वहां जाके…..मालूम ही था हमें बेटा शादी तो इसी से ही करेगा उसकी पसंद है….करे अपनी पसंद से शादी परंतु शादी के बाद तो हमारे ही घर आयेगी ही तब हमारी ही पसंद के अनुसार रहना पड़ेगा…..फोन पर अपनी सहेली से दर्प पूर्ण हंसी के साथ कहती  मां आज उसे पक्की रूढ़िवादी सासूजी ही लगीं थीं ।

शिखा बेटा यहां आना जरा देखो तुमसे मिलने बीना आंटी आईं हैं…..अचानक परवर्तित उनकी मीठी आवाज सुन शिखा जल्दी से साड़ी का पल्लू संभालती बाहर आ गई….। बीना आंटी उसकी मां की सहेली थीं जो इसी शहर में रहतीं थीं..।

अरे शिखा तू इस साड़ी में बिल्कुल पहचान में ही नहीं आ रही है …अच्छी लग रही है एकदम बहूरानी दिख रही है सीख लिया तूने साड़ी पहनना!!! बीना आंटी के हंसी युक्त आश्चर्य मिश्रित वाक्य से शिखा सिमट सी गई थी और सासू जी ने तुरंत कहना शुरू कर दिया था…अरे बीना जी इसको समझाइए मैं तो इसे साड़ी पहनने से मना करती हूं अरे भाई मायके जैसे ही आराम से यहां पर भी रहे आखिर ये मेरी बहू नहीं मेरी बेटी है..पर ये मानती ही नहीं है…आओ आओ बेटा मेरे पास बैठो खड़ी क्यों हो..!!

एक साल बीतते ही शिखा को अपनी सासू जी के खाने के दांत और दिखाने के दांत दिख गए थे…!उसे राजन की गोल मोल बातों पर भी कसमसाहट सी होती थी….स्पष्ट संवाद स्पष्ट अभिव्यक्ति ही रिश्तों की बुनियादी आधारशिला होती है….।

स्पष्ट विचारों वाली शिखा स्पष्ट तौर पर मानती थी कि बहू और बेटी दो अलग अलग महत्वपूर्ण पद होते हैं जिनकी अपनी अलग गरिमा और दायित्व होते हैं दोनों पदों को आपस में मिलना उचित नहीं है ऐसा होना असम्भव और अव्यवहारिक है… रिश्तों की स्पष्टता जरूरी है…फिर बहू का पद ही अलग है इस पद की अपनी गरिमा और सम्मान है मर्यादाएं हैं जो बेटी के पद में नहीं हैं…..इसीलिए उसने अपने आपको हमेशा बहू ही माना था उसी कायदे से वो रहती थी लेकिन मां जी द्वारा बार बार तुम तो हमारी बेटी हो कहने पर  और बाहर वालो के सामने अकस्मात व्यवहार परिवर्तन का दिखावा उसके अंतर्मन में घुटन भरी बगावत कर देता था  ।




उसने हमेशा अपने आपको इस घर की बहू ही माना था बेटी नहीं और ऐसी ही अपेक्षा वो मां जी से भी करती थी ।

राजन भी आजकल व्यस्तता का बहाना करके घरेलू जिम्मेदारियों से किनारा कर रहे हैं….कुहू का जन्मदिन का आयोजन जैसे परिवार की प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया था मां जी रोज लंबी लिस्ट बना रहीं थीं उनके घर कब कब कौन कौन आया था और क्या क्या उपहार या नगद राशि भेंट की थी सबको निमंत्रित करना और लेन देन का हिसाब करना था उन्हें….सुनार की अलग….किराना की अलग…कपड़े की अलग…टेंट वाले मिठाई वाले पूजा दुकान …..अनवरत उनके कार्यक्रम और अपना महिमा मंडन जारी रहता था….।शिखा का मन उद्विग्न हो उठा था…!

…राजन आपको कुहू के जन्मदिन का कोई उत्साह नहीं है क्या !…इतने ज्यादा व्यस्त रहते हैं…आप घर पर मां की बात क्यों नहीं सुनते वो कुहू के जन्मदिन को लेकर कितनी उत्साहित है आपसे चर्चा करना चाहती हैं…शिखा  ने शाम को राजन के घर आते ही बात शुरू करते हुए जोर से कहा तो मानो राजन की कमजोर नस पकड़ ली ….गहरी उसांस भर कर बोला ..”शिखा कुहू मेरी भी बच्ची है मै भी उसका जन्मदिन मनाना चाहता हूं खुशी बांटना चाहता हूं पर इस तरह नहीं जैसा मां चाहती हैं इस समय मेरे ऑफिस का काम बंद होने की कगार पर है कई कर्मचारियों को तो काम से बाहर करने की नोटिस भी दे दी गई है….ऐसे में मैं मां से क्या चर्चा करूं उनका उत्साह बस दुनिया दिखावा है क्या मिलेगा इतनी शान शौकत दिखा कर तुम्ही बताओ ….आहत सा वो बिस्तर पर  निढाल सा हो गया था ।

शिखा के मन से जैसे एक पत्थर हटा वो भी यही चाहती थी अपनी बेटी के जन्मदिन पर इतना आडम्बर उसे चिंतित कर रहा था परंतु राजन और मां जी के संकोच में अपनी बात स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त नहीं कर पा रही थी….आज राजन की व्यस्तता का राज स्पष्ट हुआ था उसे…मां को समझा भी नहीं पा रहा था और उनके मन की कर भी नहीं पा रहा था।

सच है अक्सर अपने ही लोग अपनों को समझ नहीं पाते विचारो की अस्पष्टता एहसासों की दूरियां बन जाती हैं।

आप मां से स्पष्ट कहते क्यों नहीं आखिर वो आपकी मां हैं आपकी बात समझ लेंगी शिखा ने समझाते हुए कहा तो राजन कहने लगा नहीं शिखा मैं मां से नहीं कह पाऊंगा … तुम्हीं क्यों नहीं समझा देती हो मां को आखिर तुम्हारी भी तो मां हैं तुम्हे बेटी ही तो मानती हैं …..!मैं कुछ भी कहूंगा तो मां सोचेंगी बहू की पैरवी कर रहा है उसके कहे में आ गया है।




शिखा समझ गई राजन का आज्ञाकारी पुत्र साथ ही अपनी पत्नी के विचारों का ख्याल रखने वाला दिल अपनी मां से उनके दिल की साध पूरी ना होने की बात कहने की हिम्मत नहीं कर पा रहा है…मुझे ही कुछ करना पड़ेगा उसने सोचा।

सुनहरा मौका था उसके पास मां बेटे में मनमुटाव करवाने का लड़ाई करवाने का …पर एक समझदार बहू की जिम्मेदारी का एहसास था उसे।

मां आपसे एक बात कहूं आप बुरा तो नहीं मानेंगी ..! शिखा के मुंह से आज अचानक मां जी के बजाय मां संबोधन सुन कर  मां को काफी मधुर लगा क्या बात है शिखा उन्होंने उत्साह से पूछा…पर साथ ही नाराजगी भी जताई….” राजन कहां है आजकल ज्यादा ही व्यस्त है …. मां से नाराज है क्या जरूर तूने ही कुछ भड़काया होगा  …  मुझसे बात ही नही करता है बाजार ले जाना तो दूर रहा …!!

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.मां कुहू का जन्मदिन मनाने का मेरा एक प्लान है….आप तो जानती हैं मुझे हमेशा सादगी ही पसंद है इतना दिखावा जन्मदिन पर क्यों मां!!किसको दिखाना है और क्या!!जो हमारे अपने हैं वो हमारे घर और स्तर दोनो से बखूबी परिचित हैं और जो हमारे अपने नही हैं उनके लिए हम कुछ भी करें उन्हें आलोचना ही करनी हैं….दिखावे की तो कोई सीमा ही नहीं होती पानी की तरह पैसा बहाने के बाद भी हजारों कमियां रह ही जाती हैं…मां राजन आपसे नाराज नहीं हैं….इस समय काफी परेशान हैं उनके ऑफिस में काम और वेतन दोनो की तंगी हो रही है…..इसीलिए वो आपके साथ बाजार जाने से कतरा रहे हैं ….!!

परेशान है …..अरे तो मुझसे क्यों नहीं कहा जब उसको ही खुशी नहीं है तो ऐसी खुशी मना कर मैं क्या करूंगी मां थोड़ी व्यथित हो गईं थीं….

अपने पुत्र की परेशानी एक मां कभी सहन नहीं कर सकती।

बुला उसे अभी मेरे पास राजन यहां आ जा अरे बेटा ये सब आयोजन मैं अपने लिए थोड़ी ना कर रही हूं परेशान होकर खुशी का आयोजन करने से खुशी हासिल नहीं हो सकती…अच्छा किया बहू ने मुझसे स्पष्ट रूप से सब बता दिया वरना ये आयोजन तो बहुत भारी पड़ जाता…..तू तो व्यस्तता का दिखावा कर मुझसे अपने दिल की बात स्पष्ट कहने से बच रहा था।

सच में आज मेरी बहू ने बेटी से भी बढ़ के समझदारी दिखाई है मां के दिल से दुनिया दिखावे का और बेटे के दिल से मां से मन की बात ना कह पाने का  कोहरा अपनी सीधी सादी स्पष्ट बातों से साफ कर दिया है….वास्तव में बहू का स्थान बेटी कभी नहीं ले सकती वो भी ऐसी स्पष्ट विचारों वाली ही नहीं आचरण में भी वही स्पष्टता लिए हुए बहू..!

जन्मदिन मनाया गया पूजा हुई…. पूजा के बाद सुस्वादु भोजन ….उतने लोग नहीं थे ….उतने उपहार नहीं थे….उतनी चमक दमक नहीं थी…विशाल टेंट नहीं था…ज्वैलरी और महंगी साड़ीयों की चकाचौंध नहीं थी…पर वहां थी एक मृदुल मधुर सास और एक बेटी नहीं वरन एक समझदार स्नेहिल बहू…!

वहां…. दिलों के स्नेहिल आत्मीय विचारों की पूर्ण स्पष्टता लिए  रिश्तों की गहराई थी..।

#दिखावा 

लतिका श्रीवास्तव

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