रिश्तों की नई परिभाषा – नीरजा कृष्णा 

मोहिनी की खुशी का ठिकाना ही नही था….अभी अभी अविनाश का मोबाइल पर फोन आया था….

“मोहिनी! बहुत बढ़िया खबर है…. इस मायानगरी मुंबई में कंपनी की तरफ़ से तीन कमरों का काफ़ी सुंदर और आरामदेह क्वार्टर मिल गया है… अब हम सबकी तपस्या पूरी हो गई… एक सप्ताह के अंदर ही मैं सबको लेने आ रहा हूँ।”

“अरे वाह, इतनी बड़ी खुशखबरी! तुम चाचाजी को बता दो….मैं अम्मा और चाचीजी को बता देती हूँ।”

और वो दौड़ कर अपनी  लकवाग्रस्त सास  आनंदी जी के पास गई और बहुत प्यार से उनके सिर पर हाथ फेरते हुए उनको शुभ समाचार दिया,”अम्मा! जानती हैं…अभी आपके बेटे का फोन आया था…उनको वहाँ अच्छा क्वार्टर मिल गया है… आपकी ये इच्छा भी पूर्ण हुई…वो जल्दी ही सबको लेने आ रहे हैं।”

वो बहुत प्रसन्न होकर लेटे लेटे भगवान को धन्यवाद देने लगीं।

उधर अविनाश ने चाचाजी को भी फोन कर दिया था,”मैं जल्दी ही बाल बच्चों को लेने आऊँगा चाचाजी।”

घर में जैसे बम विस्फोट हो गया…चाची बड़बडा़ने लगी,”बड़ा आया बालबच्चों वाला… इस बीमार बुढ़िया को हमारे माथे पटक कर अपने बेटा बहू को ले जाएगा…. इतने दिन तो कुछ लोकलाज के डर से… कुछ रिश्तेदारी का ख्याल करके इन लोगों को निभा दिया… अब आगे हिम्मत नही है…उसकी चालाकी अब हम चलने नहीं देंगे।”

“ज़रा धीरे बोलो! भाभीजी और बहू सुन लेंगे।”

“अरे सुनाने को ही तो बोल रही हूँ…अविनाश आएगा तो साफ़ बोल देना…. हम इस बीमार बुढ़िया को यहाँ इसी शर्त पर रखेंगे… वो यहाँ अपना हिस्सा हमारे नाम कर जाए।”

“अरे कुछ तो भगवान से डरो, पिता जी माता जी के जाने के बाद इन्हीं भैया भाभीजी ने मुझे प्यार से पाला था।”

“हाँ हाँ, सब पता है… तो क्या जीवन भर के बोझे से दबे रहें…हमने भी सब कर्जा उतार दिया है।”

अब मोहिनी से ना रहा गया… धीरे से आकर बोली,”चाचीजी, नाराज़ ना हों..हम अपनी देवीतुल्य माँ को साथ लेकर जाऐंगे…. उन्होंने जीवन भर सबका किया… आज हमको इस लायक उन्होंने ही बनाया है… देखिये ना…कैसे नन्हे बच्चे की तरह टुकुर टुकुर ताक रही हैं… बिल्कुल बच्चा ही तो हो गई हैं…. अब ये हमारे बच्चे की तरह हैं… साथ में दोनों बच्चे (आयुष और अम्मा)जाऐंगे।”

 

 

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