रिश्तों की कड़वाहट – मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

प्रेम प्यार से बने रिश्ते कभी कभी कड़वाहट की इस हद तक पहुंच जाते हैं कि एक पल भी साथ रहना मुश्किल हो जाता है। सुमेधा और सुमित के रिश्ते में भी आज इस कदर कड़वाहट आ गई है कि सुमेधा तो सुमित की शक्ल भी देखना नहीं चाहती  और न ही बात करना चाहती है ।वो तो बस अब बच्चों के साथ अकेले सुकून से रहना चाहती है तंग आ चुकी है वो अपनी और सुमित के रिश्ते से ।

               बीस साल पहले सुमित और सुमेधा ने बिना घर वालों की मर्जी से शादी की थी ।इस रिश्ते से सुमेधा की मां जानकी जी और सुमेधा के बड़े भाई भाभी तैयार नहीं थे।वजह सुमेधा पढ़ी और देखने सुनने में काफी सुंदर थी । लेकिन सुमित औसत दर्जे का सांवला सा इंसान था हालांकि पढ़ा लिखा था , लेकिन ना कोई पर्सनेलिटी थी न कुछ। लेकिन सुमेधा को सुमित के घर का वातावरण और मां बाप बेहद आकर्षित कर गये थे । दूसरी बात घर में कोई सुमेधा के शादी के बारे में गंभीरता से सोच नहीं रहा था

।ये रिश्ता सुमेधा की बड़ी बहन ने बताया था । दूसरी बात सुमित के घर में सुमेधा को ससुराल जैसी कोई बात नहीं दिखीं ।न ससुर से पर्दा न सांस की रोका टोकी  ऐसा बताया गया सुमेधा को ।जब देखने दिखाने की बात हुई तो सुमित के मां बाप ने इस तरह से व्यवहार किया सुमेधा के साथ कि लगता था सुमेधा को सर आंखों पर बिठाएंगे। लेकिन एक बार ही मिलने से आप किसी के बारे में जज नहीं कर सकते। पूरी तरह तो इंसान तब खुलता है जब आप उसके साथ हर वक्त रहने लगते हो ।

                        सुमेधा की जबरदस्ती से ही सही फिर घर वालों ने अरेंज करके शादी कर दी । सबकुछ अच्छा चल रहा था शुरू के दिनों में। सुमेधा को बढ़िया बढ़िया खाना बनाने का शौक था सो उसने सास ससुर का मन जीत लिया , साथ ही उसको गाने बजाने का और पेंटिंग का भी बहुत शौक था ।

सुमेधा के ससुर गिटार बजाता करते थे और छोटा देवर गाना गाता था । संगीत के सारे वाद्य यंत्र मौजूद थे घर में ।शाम को अक्सर सब घर में बैठकर गाना बजाना करते थे सुमेधा भी बराबर से शरीक होती थी । सुमेधा को ये सब बहुत अच्छा लगता था ।और यही सब घर में देख कर वो सुमित से शादी के लिए तैयार हुई थी । शादी से पहले सुमित सुमेधा को अपने घर लें जाकर सब दिखाया था।

                      ऐसे ही धीरे धीरे दो साल बीत गए और सुमेधा एक बेटी की मां बन गई । सुमित सुमेधा के लिए बहुत पजेसिव रहता था ‌।एक मिनट को भी अकेले नहीं छोड़ता था । सुमेधा इसे सहज उम्र का आकर्षण समझती थी ।देखने सुनने में सुमेधा सुंदर तो थी ही उसे बड़ा नाज़ होता था

कि सुमित मेरे आगे पीछे घूमता है। लेकिन ये उस उम्र की चाहत तो कह सकते हैं लेकिन सुमित को शक करने ‌‌‌‌‌‌‌कीआदत थी।वो सुमेधा को किसी भी तरह किसी से शेयर नहीं कर सकता था चाहे उसके लिए सुमेधा के भाई बहन हो या मां बाप किसी से नहीं। अक्सर काम पर न जाने का कोई न कोई बहाना

करके सुमित घर में पड़ा रहता । नौकरी पर भी असर पड़ने लगा । मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव था सुमित जिसमें टारगेट पूरा करने को मिलता है ‌ वो काम के प्रति अपनी  लापरवाही से टारगेट पूरा नहीं कर पा रहा था और आखिरी में एक दिन उसे नौकरी से निकाल दिया । पैसे की कुछ दिक्कत आने लगी तो सुमेधा ने एक स्कूल में टीचिंग कर ली पढ़ी लिखी तो थी ही।

                 सुमेधा स्कूल जाने को जब तैयार होने लगती तो सुमित परेशान हो जाता और उसने एक दिन सुमेधा को टोंक दिया स्कूल में बच्चों को पढ़ाने जाती है इसमें इतना तैयार होने की क्या जरूरत है। धीरे धीरे हर बात में टोका-टाकी शुरु हो गई ये क्यों पहना है वो क्यों पहना है ।

साड़ी पहन लेती तो ब्लाउज इतना बड़े गले का क्यों पहना है इसमें तुम्हारा बदन खुला खुला दिखता है शूट पहना करो , बालों को इस तरह से खुला क्यों रखा है ,तेल लगाकर कसकर चुटिया बनाकर जाओ इधर उधर फैले बाल मुझको बिल्कुल अच्छे नहीं लगते।। वगैरह वगैरह।

सबेरे स्कूल के लिए सुमेधा को सुमित ही छोड़कर आता। पहले सुमेधा अपने आप वापस आ जाती थी लेकिन एक दिन सुमेधा को वापस आने में चालीस मिनट लेट हो गई तो सुमित तमाम सवाल करने लगा। किससे बातें कर रही थी किसके साथ थी फलां फलां। यदि कल से लेट हुई तो नौकरी से छुट्टी क्या दूंगा । सुमेधा सुमित का ये रूप देखकर दंग थी क्या ये वही सुमित है जो मुझपर जान छिड़कता था ।

              टारगेट पूरा न होने की वजह से नौकरी से तो निकाला जा चुका था सुमित उसने सुमेधा के स्कूल में ही टीचिंग की नौकरी कर ली इससे सुमेधा पर भी नजर रख सकूंगा। वहां हर समय सुमेधा पर ही नजर रखे रहता ।

           आज सुमेधा को स्कूल के क्लर्क मनीष से कुछ काम पड़ गया था तो सुमित ने सुमेधा को मनीष से बात करते देख लिया ।अब सुमेधा और सुमित साथ साथ घर आते जाते ‌‌‌घरआकर सुमित  ने सुमेधा के कसकर बाल पकड़ लिए और पूछने लगा बताओ उस मनीष से तुम्हारा क्या चक्कर है बड़ी हंस हंस कर बातें कर रही थी उससे । मुझसे मन भर गया है क्या जो दूसरा अच्छा लगने लगा है सुमेधा इस अप्रत्याशित घटना से घबरा गई और बोली कुछ नहीं वो स्कूल का कुछ काम था इसलिए गई थी मनीष के पास। बहुत बालों को लहरा लहरा कर चलती हो न आज मैं ये बाल ही तुम्हारे कांटे देता हूं 

                    आज सुमेधा की आंखें रोते-रोते सूज गई थी क्योंकि सुमित ने सुमेधा की लंबी चुटिया काट दी थी ।बेतरबी से कटे बालों को सुमेधा पार्लर में बैठी ठीक करा रही थी और बराबर रोए जा रही थी उसको अपने बाल बहुत प्यारे थे और थे भी बहुत खुबसूरत सभी उससे कहते सुमेधा तेरे बाल बहुत सुंदर है।

                  सुमेधा के भतीजे की शादी थी उसमें शामिल होने को सुमित और सुमेधा गए थे । लेकिन वहां सुमेधा को सुमित ढंग से तैयार भी नहीं होने देता था। साड़ी पहनोगी तो सुमित की पसंद की मैकअप करोगी तो सुमित के पसंद की तैयारी होगी तो सुमित के तरीके से ‌‌‌नवंबर की शादी थी जब सुमेधा तैयार होकर बाहर निकलीं तो अपने ऊपर एक शाल डाले थी अचानक सुमेधा की भाभी सामने पड़ गई वो बोली अरे सुमेधा ऐ शाल क्यों पहना है अभी इतनी ठंड थोड़ी है वो बस ऐसे ही भाभी,,,,,

हर समय सुमित नजरें सुमेधा पर ही गड़ाए रखता था।एक पल को भी अकेला नहीं छोड़ता था सुमेधा  चाह  रही थी कि मां के पास कुछ देर बैठे पर वहां पर भी सुमित आ जाता था और सुमेधा पर कुछ ज्यादा ही प्यार दिखाने लगता था । अच्छा वो हर समय इस कोशिश में रहता था कि किसी को कुछ पता न लगे सबके सामने बहुत अच्छा बना रहता था।    

               पर आज तो हद हो गई सुमेधा के मामा का बेटा शादी में अचानक मिल गया तो सुमेधा से बातें करने लगा दोनों ने साथ-साथ बचपन बिताया था । तमाम इधर-उधर की बातें हो रही थी थोड़ी हंसी ठिठोली भी हो रही थी सुमित दूर से सब देख रहूं था । लेकिन उससे देखा नहीं जा रहा था।

अचानक बेटी को लेकर सुमेधा के पास आ गया सुमेधा बहुत हो गई बाते लो इसको ख़ाना खिलाओ भूखी है ये ।वो शेखर से बात करके बेटी को खाना खिलाने लगी । सुमित ने आव देखा न ताव सुमेधा पर बरसने लगा तुम चाहे जिससे हंस हंस कर बातें करने लग जाती हो अरे वो कोई नहीं मेरे मामा का बेटा था अच्छा ज्यादा फ्री होने की जरूरत नहीं है लिमिट में रहो नहीं अच्छा नहीं होगा । बड़े धीरे धीरे बोल रहा था ताकि पोल‌न खुल जाए ।

                   सुमेधा परेशान हो  गई थी सुमित के इस रवैए से ।वो सोचने लगी ये कैसा प्यार है जो मेरा जीना हराम करें है ।हर बात में टोका टोकी।वो अपनी जिन्दगी जीना भूल ही गई थी। धीरे धीरे सुमेधा के मन में सुमित के लिए कड़वाहट घर करने लगीं ।इस बीच वो एक बेटे की भी मां बन गई ।सांस ससुर से दूर रहती थी तो उनको भी सुमित की इस हरकत का पता नहीं चलता। किसी तरह समय बीतता गया बच्चे बड़े होते गए। सुमेधा सभी रिश्तेदारों से आस पड़ोस से किसी से भी बात करने को तरह जाती ।

उसकी दुनिया घर में ही सिमट कर रह गई थी । कभी कभी वो सोचती अपनी जान दे दूं लेकिन बच्चों का चेहरा सामने आ जाता। चेहरे की सारी खुशियां कही खो गई थी उदास और बेरौनक चेहरा न कोई हंसी न खुशी ।बुझी बुझी सी रहने लगी सुमेधा । सुमेधा ने अब सुमित से दूरी बनानी शुरू कर दी।न साथ बैठकर खाना खाती न कोई बात करती और न ही कमरे में साथ साथ रहते।बस किसी बात का हां और ना में ही जवाब देती थी ।

                 ऐसे ही समय बीतता गया बेटी ने इंटर के बाद ग्वालियर में इंजीनियरिंग में दाखिला ले लिया और दो साल बाद बेटा भी होटल मैनेजमेंट में चंडीगढ़ में एडमिशन ले लिया। सुमेधा इसी समय का इंतजार कर रही थी उसने आज एक ठोस कदम उठाया कि वो बेटे के साथ चंडीगढ़ जायेगी और वही पर एक कमरा लेकर बैटे के साथ रहेंगी और वही किसी स्कूल में टीचिंग करेगी।

               घर में जब सुमित को पता लगा तो हंगामा हो गया अच्छा वहां अकेले आवारागर्दी करने को जा रही हो खूब ब ऊल-जलूल सकता रहा पर सुमेधा कस से मस न हुई ।

             आज सुमेधा की टे्न थी और सुमित उसे रोक पाने में खुद को असर्मथ हो रहा था। क्या करें क्या न करें समझ नहीं आ रहा था।हारकर सुमित साथ जोड़कर सुमेधा के सामने खड़ा हो गया मत जाओ सुमेधा मैं नहीं रह पाऊंगा तुम्हारे बगैर  । पर सुमेधा कुछ नहीं बोल रही थी । फिर सुमित सुमेधा का हाथ पकड़ कर अपने गाल पर तमाचे मारने लगा मार लो मुझे जो चाहे सजा दे दो पर मत जाओ मैं नहीं रह पाऊंगा ।तुम जैसे चाहो वैसे रहो अब मैं तुम्हें कुछ नहीं कहुंगा।मां जाओ सुमेधा।

              आखिर मैं सुमेधा का दिल पिघला आखिर इतने सालों का साथ जो था। सुमेधा बोली आखिरी मौका है फिर यदि ऐसा कुछ हुआ या तुमने मुझे परेशान किया तो मैं तुम्हें छोड़कर चली जाऊंगी बच्चों के साथ रहूंगी। नहीं सुमेधा नहीं करुंगा परेशान । आखिर में सुमेधा को रूकना पड़ा लेकिन अब अपनी मनमर्जी से हर काम करती । ज्यादा बातचीत भी नहीं करती ।

      दोस्तों एक बार जो मधुर रिश्तों में दरार पड़ जाती है कड़वाहट भर जातीं हैं उसको मिटाना बहुत मुश्किल होता है।जिस रिश्ते में मधुरता की जरूरत है वहां आप कड़वाहट मत भरो नहींतो जिंदगी दूभर हो जाती है।

धन्यवाद 

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

22 जून 

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