रिश्तों के मंजर – स्नेह ज्योति
Post View 156,390 कोई नहीं था पास मेरे ना रिश्ता,ना कोई फ़रिश्ता जो मुझें इस मझधार से निकाले।लोग मुझे राजन कहते है,पर राजा जैसा कुछ भी नहीं था,रोज सुबह उठ बाथरूम जानें के लिए लाईन में लगना,फिर पानी के लिए,बस के लिए,नौकरी पाने के लिए,सब जगह बस पंक्ति ही थी,मानो जिंदगी जलती थी।जल्द ही अनाथ … Continue reading रिश्तों के मंजर – स्नेह ज्योति
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