रिश्तों के जुड़ाव के लिए स्पष्ट संवाद जरूरी है… – उमा महाजन : Moral Stories in Hindi

  शाम को ऑफिस के बाद अमन जैसे ही घर पहुंचा तो रागिनी को किचन में न पाकर, ‘कहाँ हो भई ? मेरा नींबू पानी नहीं बनाया आज ?’ कहते हुए तीव्र गति से ड्राइंग रूम की ओर मुड़ गया। रागिनी को वहाँ भी न पाकर वह तुरंत अपने बैड रूम में पहुंचा।

दरअसल गर्मियों में अमन को घर पहुंचते ही सबसे पहले शिकंजी पीने की आदत है। अत: रागिनी उसके आने से पूर्व ही इसकी तैयारी कर लेती है और उसके घर पहुंचने पर अमूमन वह उसे किचन में ही मिलती है, किंतु आज उसे किचन में न पाकर अमन उसे ढूंढता हुआ पहले ड्राइंग रूम और फिर बैडरूम में चला आया।

      वहां उसे एक अलग ही नजारा देखने को मिला । रागिनी अपनी गोद में उलझी हुई ऊन का गोला रखकर अपने दोनों हाथों से उसे सुलझाने का प्रयास कर रही थी। कभी गोला एक तरफ से निकालती तो कभी दूसरी तरफ से, कभी ऊपर ये तो कभी नीचे से।

  उसे इस प्रकार उलझी ऊन में उलझा पाकर अपनी प्यास को भूलकर अमन खिलखिला पड़ा, ‘वाह ! भई वाह ! उलझी ऊन के जाल में फंसी एक आधुनिक नारी’ किंतु रागिनी द्वारा हंसने की बजाय गुस्सा दिखाने पर वह अपनी आवाज़ को तनिक नरम बनाते हुए बोला, ‘लाइए श्रीमती, मैं सुलझवा दूं इसे। उलझे धागे सुलझाने के लिए दोनों सिरों की पकड़ जरूरी होती है,लेकिन पहले मुझे एक गिलास शिकंजी पिला दो।’ 

  ‘लेकिन इसके लिए तो तुम्हें ठहरकर मेरे पास बैठना होगा न ?’

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‘तो बैठ जाएंगे भई, अपनी पत्नी के पास ही तो बैठना है न’ अमन ने  चुटकी ली। 

    रागिनी ने तुरंत फ्रिज में रखा शिकंजी का गिलास अमन को पकड़ाया और पुनः ऊन सुलझाने में जुट गई। शिकंजी पीकर अमन ने रागिनी के हाथ से गोला लेते हुए फिर मजाक किया, ‘डियर,यह क्या ? तुम तो जानती हो न की मुझे तुम्हारा कढ़ाई-बुनाई करना बिल्कुल पसंद नहीं है। न जाने क्यों इससे मुझे तुममें वह ‘बहनजी टाइप’ वाली फीलिंग आने लगती है’ और यह कहते हुए अमन पुनः खिलखिला उठा।

  किंतु इस बार रागिनी को गंभीर देखकर अमन कुछ संभला, ‘क्या हुआ जनाब, कुछ उखड़े-उखड़े से हैं ?’

  दरअसल अमन और रागिनी दोनों पढ़े-लिखे समझदार पति-पत्नी हैं। चार माह पूर्व ही दोनों का विवाह हुआ है। पारंपरिक विवाह (अरेंज्ड मैरिज)है, दोनों एक दूसरे के स्वभाव से अनजान है।अतः धीरे-धीरे दोनों एक दूसरे को समझने का प्रयास कर रहे हैं। 

    अमन अपने आसपास से बेखबर बस पूरी तरह अपने में मस्त है। हर बात को हल्के में लेना उसकी आदत में शुमार है। इससे दूसरे पर पड़ने वाले मानसिक प्रभाव से भी उसे कोई फर्क नहीं पड़ता। वहीं, रागिनी उससे बिल्कुल विपरीत गंभीर एवं भावुक स्वभाव की है। छोटे लम्हों, छोटी-छोटी बातों से तुरंत प्रभावित हो जाती है।खैर…

  अमन का लहजा कुछ संभलते जानकर रागिनी बोली, ‘हां अमन ! इस ऊन की भांति हम दोनों को भी एक-दूसरे के प्रति व्यवहार की कुछ उलझनों को सुलझाना है। दरअसल आजकल मैं भावनात्मक रूप से बहुत परेशान रहने लगी हूं। कहो तो बोलूं ?’

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    ‘अरे बोलो न बंदा हाजिर है।’ अमन अभी भी रागिनी के अनमने पन को गंभीरता से नहीं ले रहा था और वह उसकी बात को हवा में उड़ाते हुए बोला।

  ‘अमन,आज सुबह उठते ही मैंने तुम्हें कहा कि आज रात मुझे नींद नहीं आई और मेरी पूरी बात सुने बगैर ही तुमने कह दिया कि जब दिन में दो-दो, तीन-तीन घंटे सोओगी तो रात को नींद कैसे आएगी और मेरी अधूरी बात में ही हंसते हुए तुम अपने दैनिक कामों में व्यस्त हो गए।

    ‘अरे, वह तो मैंने मजाक किया था!’

फिर, ‘दोपहर में जब तुमने मुझे फोन किया और मैंने बताया कि मैं घर से बाहर हूँ, तो मेरी पूरी बात सुने बगैर ही जवाब था कि यह सही है, हम यहां ऑफिस में अपना खून-पसीना बहाएं और हमारी मैडम अकेले ही शापिंग का आनंद उठाएं और फिर, ‘चलो भई अपनी-अपनी किस्मत है’ कहते हुए तुमने तुरंत फोन काट दिया था।

      ‘अरे भई, बस एक मजाक भर था वह’  

 ‘और अभी कुछ क्षण पहले मेरे सिलाई-कढ़ाई पर टिप्पणी करना भी एक मजाक ही था न, जबकि तुम अच्छी तरह जानते हो कि सिलाई-बुनाई मेरा शौक है? सिर्फ इसीलिए न‌ कि सिलाई-कढ़ाई तुम्हें पसंद नहीं है।’

    ‘क्या रागिनी ! मैं नहीं जानता था कि तुम्हारा ‘सैंस ऑफ ह्यूमर’ इतना कमजोर है और तुम्हें मजाक समझ नहीं आते’ अब तक अमन भी चिढ़ने लगा था।

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  ‘नहीं अमन, मुझे मजाक अच्छी तरह समझ आते हैं, लेकिन उनमें छिपा तंज और लापरवाही कष्ट देते हैं। मजाक और कटाक्ष में झीना सा अंतर होता है। ‘पहले तोलो, फिर बोलो’ यूं ही तो नहीं कहा गया होगा न ?

आज सुबह यदि मेरे नींद न आने की बात पर तुम सिर्फ इतना कह देते कि ‘क्यों’ तो एक ही शब्द में तुम्हारा मेरे प्रति कंसर्न नजर आता और मैं तुम्हें बताती कि रात पेट में हल्की-हल्की दर्द रही। इसी संबंध में मैं दोपहर में दवाई के लिए बाहर निकली थी, लेकिन तुमने मेरी पूरी बात सुनी ही नहीं,उस पर कटाक्ष अलग से कर दिये।

   ‘हमने अपनी जीवन यात्रा अभी आरंभ ही की है। एक दूसरे को समझने में हमें थोड़ा वक्त अवश्य लगेगा लेकिन इस दौरान हमें एक दूसरे के प्रति अपने व्यवहार में ठहराव और गंभीरता तो लानी ही पड़ेगी न ?  एडजस्टमेंट के लिए हमें परस्पर भावनाओं, पसंद-नापसंद, शौक आदि को भी समझना जरूरी है, इसीलिए मैंने अपनी ‘नापसंदगी’ का जिक्र तुमसे कर देना ही बेहतर समझा है।’

  ‘वाह रागिनी! तुमने तो आज मेरे व्यवहार की शल्य क्रिया करके मेरे प्रेम पर ही ‘प्रश्र चिन्ह’ लगा दिया है । मैं बचपन से ऐसा ही मस्त मौला हूँ। घर में माँ, दादी अथवा दीदी को तो कभी मेरे व्यवहार से शिकायत नहीं हुई ?’ अमन की नाराजगी अभी भी कायम थी।

     ‘अमन, मैंने तुम्हारे प्रेम पर संशय नहीं किया है और आज का व्यवहार तो मात्र उदाहरण हैं। मुझसे बातचीत करते समय प्रायः तुम्हारा लहजा लापरवाही भरा ही रहता है। और जहाँ तक माँ, दादी और दीदी की शिकायत का सवाल है तो माँ-बेटे, दादी-पोते और भाई-बहन के संबंधों की एक-दूसरे से अपेक्षाएं पति-पत्नी की अपेक्षाओं से बहुत अलग होती हैं।

बाज़ारू औरत –  गीतू महाजन

माँ के साथ तुम्हारे अलावा पापा और दीदी भी थीं। इसी तरह दीदी के साथ तुम्हारे अलावा माँ और पापा भी थे और दादी के संग तो पूरा परिवार था।अतः तुम्हारी बेपरवाही को नजरअंदाज किया जा सकता था

।लेकिन यहाँ मेरे साथ केवल तुम हो और मैं अपना भरा घर छोड़कर तुम्हारे पास आई हूँ।अतः मेरे प्रति तुम्हारे थोड़े से ठहराव की अपेक्षा तो मैं कर ही सकती हूँ न ? ‘ कहते-कहते रागिनी की आंखें छलक गईं।   

    रागिनी की आँखों में आंसू देखकर अब अमन भी तनिक गंभीर हुआ और माहौल को खुश नुमा बनाने की दृष्टि से  ‘चलो जो बीत गई वह बात गई ‘ कहकर मुस्कुराया, ‘अब बस भी करो न ! आज तुमने कहा है । आगे से मैं पूरा ध्यान रखूंगा। ‘पहले तराजू में तोलूंगा, फिर बोलूंगा’ इसलिए बदलने में थोड़ा वक्त अवश्य लगेगा’ कहकर अमन फिर खिलखिला पड़ा।

   लेकिन इस बार ‘अमन, तुम फिर से…..’ कहकर रागिनी भी खिलखिला पड़ी।

  तभी अमन ने सहसा पूछा, ‘बाय द वे ये ऊन का ताम-झाम क्या था ?’ 

    ‘इस ताम-झाम में उलझाकर ही तो मैं तुम्हें अपनी बात समझा पाई हूँ ,अन्यथा तुम इतने धैर्य से सुनते कब हो ? दरअसल वैवाहिक जीवन के आरंभ में ही मिल-बैठकर समस्याओं को सुलझा लेना, सहन करते रहने के नाम पर घुटन झेलने से कहीं गुना बेहतर होता है न’ और फिर ‘चलो छोड़ो ! बीति ताहि बिसार दे आगे की सुध ले’, और ‘लेकिन कैसा लगा मेरा मजाक ?’ कहकर रागिनी एक बार पुनः खिलखिला पड़ी। 

     हालांकि रागिनी के मजाक से अब अमन का चेहरा देखने लायक था,किंतु इस खिलखिलाहट में  उसे ‘टूटन‌ की ओर अग्रसर रिश्तों की ‘सिहरन‌’ को मात देकर दिल से रिश्ता जोड़ने की जीत‌ भी स्पष्ट सुनाई दे रही थी।

            मंतव्य:  वैवाहिक जीवन के आरंभ में ही पति-पत्नी द्वारा मिल-बैठकर स्पष्ट संवाद से अपनी समस्याओं को सुलझा लेना, सहन करते रहने के नाम पर घुटन झेलने से कहीं गुना बेहतर होता है।

   

उमा महाजन 

कपूरथला 

पंजाब।

# टूटते रिश्ते जुड़ने लगे

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