रिश्ते प्यार से बनते हैं – विभा गुप्ता  : Moral Stories in Hindi

   ” देवरानी जी..ऐसी साड़ियाँ तो मेरे मायके की नौकरानियाँ भी न पहने..कितना भद्दा रंग है..और मिठाई तो देखो..हा-हा.. देखकर ही उल्टी आ रही है..है ना जीजी..।” 

    ” हाँ..मधु..मैं भी तो यही कह रही हूँ..।” कहकर दोनों हँसने लगीं।

          सेठ श्यामलाल शहर के जाने-माने ‘आयरन’ व्यापारी थे।पत्नी कमला सुघड़ गृहिणी थी।उनके महेश, सुरेश और निलेश नाम के तीन बेटे और एक बेटी प्रिया थी।घर में किसी चीज़ की कमी नहीं थी, फिर भी सेठ जी ने अपने बच्चों को हमेशा पैसे का महत्त्व और उन्हें किफ़ायत से खर्च करने की शिक्षा देते रहते थे।

       सयाने होने पर महेश-सुरेश अपने पिता के कारोबार में हाथ बँटाने लगे।निलेश ने कहा कि उसे बिजनेस में कोई रुचि नहीं है..वो इंजीनियरिंग की पढ़ाई करके नौकरी करना चाहता है।सेठ जी ने सहर्ष अनुमति दे दी।

        कमला जी ने दोनों बेटों का ब्याह कर दिया और सम्पन्न घराने की मालती और मधु नाम की बहुएँ घर ले आईं।निलेश की फ़ाइनल परीक्षा अभी बाकी थी,तब तक में प्रिया सयानी हो चुकी थी।एक परिचित के द्वारा उन्हें अपने ही शहर में अच्छा घर-वर मिल गया तो उन्होंने देरी नहीं की और उसका विवाह कर दिया।

      निलेश दिल्ली के जिस काॅलेज़ पढ़ रहा था, वहीं उसकी दोस्ती शैलेश नाम के लड़के से हुई जो वहीं का रहने वाला था..पढ़ाई में बहुत होशियार और मेहनती था।निलेश कभी-कभी उसके घर चला जाता था जहाँ उसकी माँ और छोटी बहन शीला रहतीं थीं।एक-दो मुलाकात में ही वो शीला को पसंद करने लगा था।शीला भी उसे चाहती थी लेकिन पैसे की दीवार के कारण वो अपनी भावनाओं पर काबू करने की असफल कोशिश करती थी।

    इंजीनियरिंग पास करने के महीने भर बाद ही निलेश को दिल्ली के ही एक प्राइवेट फ़र्म में नौकरी मिल गई।घर में जब उसकी शादी की बात होने लगी तब उसने अपने पिता को शीला के बारे में बताया।तब कमला जी बोलीं,” मेरे इंजीनियर बेटे की शादी है..दहेज़ पूरा लूँगी।” निलेश बोला,” नहीं माँ..उसके पिता नहीं है..माँ ने ही कष्ट सहकर..।” सुनकर वो नाराज़ हुईं…समाज-रिश्तेदारों की दुहाई देने लगीं, तब श्यामलाल जी बोले,” ईश्वर का दिया सब-कुछ तो है हमारे पास..दोनों बहुओं से तो तुम्हारा शौक पूरा हो ही चुका है।शादी निलेश को करनी है..समाज-रिश्तेदारों को नहीं।अब प्रसन्न मन से दिल्ली जाने की तैयारी करो।”

      एक शुभ-मुहूर्त में निलेश और शीला का विवाह हो गया।शीला के मायके से आये सामानों की उसकी दोनों जेठानियों ने खूब हँसी उड़ाई..कमला जी तो पहले से ही नाराज़ थी।यह सब देखकर शीला का मन उदास हो गया, तब प्रिया ने उससे कहा,” छोटी भाभी..धैर्य रखिये..सब ठीक हो जायेगा।”

        निलेश के वापस जाने का समय आया तभी श्यामलाल जी तबीयत खराब हो गई।तब शीला बोली,” निलेश…जब तक पिताजी ठीक नहीं होते हैं..मैं यहीं रुक जाती हूँ।” 

        शीला ने अपने ससुर की बहुत सेवा की और अपने व्यवहार से सास का दिल भी जीत लिया।अब जब भी उसकी जेठानियाँ उसके काम का मज़ाक उड़ाती तो कमला जी उन्हें टोक देतीं,” बस करो बड़ी बहू..इतना गुरूर अच्छा नहीं.. तुम्हारी तरह शीला भी इस परिवार की सदस्य है..इसका सम्मान नहीं कर सकती तो अपमान तो मत करो..।”

       इसी बीच रक्षा-बंधन का त्योहार आया।शीला का चचेरा भाई विवेक अपनी दीदी से राखी बँधवाने आया हुआ था।साथ में, शीला की माँ ने उसकी सास, ननद और दोनों जेठानियों के लिये भी साड़ियाँ भिजवाईं थीं जिसे देखकर मालती और मधु ने नाक-भौं सिकोड़ लिया और साड़ियों सहित अन्य उपहारों का उपहास करने लगीं।तब प्रिया जो अपने भाईयों को राखी बाँधने आई हुई थी,बोली,” भाभी…#पैसे का गुरूर अच्छा नहीं है। आप  भूल गईं कि ये गिफ्ट छोटी भाभी की मम्मी ने भेजे हैं और हमारे यहाँ उपहार को स्वीकार किया जाता है न कि…।”

  ” इतना ही पसंद है तो तुम रख लो..।” दोनों महिलाएँ पैर पटकती हुई अपने-अपने कमरे में चलीं गई।कमला जी ने सारा सामान सहेज़ कर रख दिया।शीला के भाई को सम्मान के साथ विदा कर दिया।अगले दिन प्रिया भी अपने ससुराल चली गई और कुछ दिनों के बाद शीला भी दिल्ली चली गई।

      साल भर बाद शीला एक बेटे की माँ बनी।उसका बेटा तीन साल का हो गया था।उसका जन्मदिन मनाने वो ससुराल आई तब उसने अपने सास-ससुर को बताया कि  विवेक जो रक्षा-बंधन पर यहाँ आया था,वो अब वकील बन गया है।वहाँ से गुजरते हुए मधु ने सुना तब ऐंठकर बोली,” इसमें कौन-सी बड़ी बात है।मेरे भाई ने तो इंग्लैंड से वकालत पास की।उससे अपाॅइंटमेंट लेने के लिये महीनों इंतज़ार करना पड़ता है..।”

    शीला ने जेठानियों के दिलों में जगह बनाने की बहुत कोशिश की लेकिन उनकी आँखों पर पैसे के गुरूर की ऐसी पट्टी बँधी थी कि उन्हें शीला की अच्छाइयाँ कभी दिखाई ही नहीं देती।उसका बेटा स्कूल जाने लगा।इसी बीच उसके सास-ससुर का देहांत हो गया।उसका ससुराल जाना बहुत कम हो गया लेकिन निलेश जब भी अपने भाईयों से मिलने आता तो वो घर के बच्चों के लिये गिफ़्ट भेजना कभी नहीं भूलती थी।

           एक दिन शीला ने न्यूज़ में देखा कि मालती का भतीजा शेखर काॅलेज में ड्रग सप्लाई करने के ज़ुर्म में गिरफ़्तार हो गया है।उसे बहुत चिंता होने लगी।शाम को निलेश आया तो उसने पूरी बात बताई और भाभी से बात करने को कहा।

       फ़ोन करने पर मालती बोली,” कुछ गलतफ़हमी हो गई है।मधु का भाई वकील है..वो केस हैंडल कर लेंगे।” दो दिन बाद निलेश ने फिर फ़ोन किया तो वो रोने लगी।तब शीला बोली,” आप अभी घर जाईये..भईया तो काम में बिजी होंगे..आप रहेंगे तो उन्हें हेल्प हो जायेगी।”

        निलेश के जाने पर मालती बोली,” काफ़ी समय से मेरे दोनों भाईयों में अनबन थी।बड़े भईया की अचानक डेथ हो जाने से भाभी अकेली पड़ गईं..उधर शेखर गलत संगत में पड़ गया।मधु बोली कि उसका भाई सब देख लेगा लेकिन अब कहती है कि पहले उसकी फ़ीस पाँच लाख डिपोज़िट कर दो उसके बाद…।अब भाभी इतने रुपये कहाँ से..।” कहते हुए वो फूट-फूटकर रोने लगी।तब निलेश बोला,” भाभी..आप कहे तो मैं अपने साले से बात करुँ..उसकी बहुत अच्छी प्रैक्टिस चल रही है।” सुनकर मालती बोली,” किस मुँह से कहूँ..मैंने तो शीला और उसके भाई का बहुत..।” 

    ” भाभी..पुरानी बातें छोड़िये और हाँ कहिये।” मालती से बात करके निलेश ने अपने साले विवेक को फ़ोन करके सारी बात बताई और मालती की भाभी का फ़ोन नंबर देकर बात करने को कहा।

       विवेक ने सारा केस समझ लिया।पहले तो उसने शेखर की जमानत करवाई और फिर उस केस को जीतने में उसने अपना जी-जान लगा दिया।इधर मालती और मधु के रिश्ते में थोड़ी खटास आ गई।मधु ने जब सुना कि शेखर का केस शीला का भाई विवेक हैंडिल कर रहा है तो उसने मालती से व्यंग्यपूर्ण लहज़े में कहा,”,” आप भी ना कहाँ..वो कल का छोकरा क्या केस लड़ेगा।आपके भतीजे का तो जेल जाना पक्का..।”  मालती ने उसकी बातों पर कान नहीं दिया।इस बीच शीला मालती को फ़ोन करके आश्वासन देती रहती थी।

        विवेक ने वकालत के जितने दाँव-पेंच सीखे थे,सब केस में लगा दिये।कई सुनवाईयों के बाद अंततः वो शेखर को बाइज्ज़त बरी कराने में कामयाब हो गया।मालती और उसकी भाभी ने उसे धन्यवाद कहा और फ़ीस देने लगी तो वो बोला,” दीदी..आपसे फ़ीस लेकर नर्क में जाना है क्या..मुझे तो बस आपका आशीर्वाद चाहिये।” मालती रो पड़ी थी। 

      विवेक की सफ़लता पर शीला ने उसे बधाई दी और निलेश के साथ ससुराल पहुँची तो मालती ने उसका खुले दिल से स्वागत किया और हाथ जोड़कर बोली,” शीला.. मुझे माफ़ कर दो…मैंने तुम्हें कितना भला-बुरा कहना और तुमने..।” 

   ” पिछली बातों पर मिट्टी डालिये दीदी..।” कहते हुए उसने अपनी जेठानी को गले लगा लिया।तब तक प्रिया उनके लिये चाय लेकर आ गयी,” देखा ना बड़ी भाभी..रिश्ते हमेशा प्यार से बनते हैं…पैसे के गुरूर से नहीं..।”

    ” हाँ प्रिया…।” 

   बच्चे आपस में मिलकर खेल रहें थें।प्रिया अपनी भाभियों से बातें कर रही थी कि उसकी नज़र दरवाज़े की ओट में खड़ी मधु पर पड़ी तो वो उठी और उसका हाथ पकड़कर अंदर खींचती हुई बोली,” आईये ना मंझली भाभी..।”

    मधु ने शीला से माफ़ी माँगनी चाही तो वो बोली,” नहीं दीदी..ऐसा करके मुझपर पाप मत चढ़ाईये..।” मधु मालती से बोली,” आज मैंने जाना कि रिश्ते तो प्यार से बनते हैं..पैसा तो हाथ का मैल है..।” 

    ” अरे वाह! आज तो हमारी मधु रानी बड़े ज्ञान की बातें कर रही हैं..।” सुरेश के इतना कहते ही सब ठहाका मार कर हँस पड़े।

      प्रिया अपनी मम्मी के कमरे में गई और उनकी तस्वीर के आगे खड़ी होकर बोली,” देख रहीं हैं ना माँ..आज आपका पूरा परिवार एक साथ है।आशीर्वाद दीजिए कि इनका आपसी प्यार बना रहे और घर हमेशा ऐसे ही हँसता- मुस्कुराता रहे।

                                   विभा गुप्ता 

# पैसे का गुरूर         स्वरचित, बैंगलुरु 

             पैसा का गरूर रिश्तों में अलगाव पैदा कर देता है लेकिन प्यार उन रिश्तों में फिर से नयी जान डाल देता है।

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