धूमधाम से शादी हो गई । जेठानी और देवरानी दोनों की बहुएं एकसाथ रुनझुन करती अपने घर में आ गईं।
करीब – करीब सभी मेहमान विदा ले चुके थे पर घर की सभी बहन बेटियां अभी यहीं थीं।
आज बहुओं की पहली रसोई थी ।एक बहू सूजी का हलवा बना रही थी औऱ दूसरी चावल की खीर। भारी साड़ी ,उतने ही भारी जेवर ,साथ मे जेठ महीने की गर्मी ।
दोनों बहुएं हलवे और खीर के साथ संघर्ष कर रही थी ।हलवा गाढ़ा हुआ जा रहा था और खीर पतली रह गई ।
तभी सभी चचेरी ,ममेरी ,मौसेरी , फुफेरी ननदें हँसती, खिलखिलाती रसोईघर में पहुँच गई।
अरे वाह ! खीर , हलवा !एक ने कहा ।
दूसरी बोली चलो ,आज तो एक प्रतियोगिता हो जाए तुम दोनों के बीच।देखें ,खीर स्वादिष्ट बनती है या हलवा ।
तीसरी बोली , हाँ भाई ,आज तो तुम दोनों की परीक्षा है ।
तभी ताईजी अंदर आईं ।वे बाहर से इनकी चुहलबाजी सुन रही थीं ।आते ही मीठी डाँट लगाते हुए बोलीं ,
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‘छोरियों ,बाहर निकलो यहाँ से।तुम लोगों ने दी थी परीक्षा अपने घर में अपनी सास ननदों के सामने ? तुम लोगों को तो इनकी मदद करनी चाहिए।
सब लड़कियाँ चुप हो गई ।
ताईजी बोलीं ,बेटा ,अब तो ये दोनों अपने घर की सदस्य हो गई हैं ।
‘ ये रिश्ता न तो एक परीक्षा है जिसमें फेल या पास होना है न ही कोई प्रतियोगिता है जिसमें कोई जीत या हार है। ‘ ये तो एक भावना है ,अपनापन है।इसे महसूस करो
बेटा !
सभी ननदें ताईजी को लड़ियाते हुए बोलीं
‘ ताईजी ,हम तो मज़ाक कर रहे थे ‘
ताईजी दोनों बहुओं के पास पहुँच गई और उनके कंधों पर हाथ रखा और आंसुओ की बूंदें दोनों की आँखों से टपक गई जिसे ताईजी ने अपने पल्लू से पोंछ दिया ।
फिर लड़कियों से बोलीं, “इन्हें बाहर हवा में ले जाओ ।खीर और हलवा अब में देख लूंगी।”
बहू – ,बेटियां बाहर जा चुकी थीं और ताईजी ससुराल में अपना पहला प्यारा सा अनुभव याद कर रही थीं ,मुस्कुराते हुए।
ज्योति अप्रतिम