पवन कुमार जी घर की बालकनी में घूमते हुए जोर जोर से बड़बड़ा रहै थे। ‘वे लोग समझते क्या है अपने आप को, मेरी बेटी कोई कचरा थोड़ी है, कि जो मन में आया कह दिया। मैंने नाजो से पाला है उसे, एक खरोच भी नहीं आने दी। मेरी पढ़ी लिखी समझदार बेटी, हमने भी कहाँ शादी करदी उसकी।
आज उसकी ऑंखों से कितने ऑंसू गिरे। मैं उन्हें सबक सिखा कर रहूँगा।’ सुधा जी जब सब्जी लेकर घर आई तो उनका बड़बड़ाना सुन कर चौंक गई। अभी आठ महिने भी नहीं हुए राशी और रजत की शादी को और ये इतना नाराज क्यों हो रहे हैं? उसने आकर पूछा तो वे बिफर गए -‘आज तो हद हो गई मेरी प्यारी बेटी राशी रोते हुए घर आई है।
अगर उन लोगों को पसन्द नहीं है तो मै अपनी राशी को उनके घर नहीं भेजूंगा।’ सुधा ने कहा- ‘पहले आप शांत हो जाइये, शांति से बात करते हैं, राशी कहाँ है, पहले मैं उससे बात तो कर लूँ। ‘ ‘अपने कमरे में बैठी रो रही है। कबसे समझा रहा हूँ, समझती ही नहीं।’ सुधा जी ने जाकर राशी से कहा – ‘बेटा!सबसे पहले रोना बंद कर। क्या बात है मुझे बता? बेटा मैं तेरी माँ हूँ, कुछ भी झूठ मत कहना।’ माँ आपको तो मालुम है मै सुबह ८ बजे
उठती हूँ।जल्दी नहीं उठ पाती हूँ। कुछ दिन तक तो किसी ने कुछ नहीं कहा, मगर अब रोज मेरे उठने के नाम का बखेड़ा होता है। मैं साड़ी भी ठीक से नहीं पहन पाती हूँ, तो सर पर पल्लू रखने का ध्यान कैसे रखूँ। रोज इस बात पर भी विवाद होता है। माँ मेरी आदत एकदम से तो नहीं पड़ेगी ना, मैं कोशिश कर रही हूँ।ये बोले घर में मेरी भाभियाँ भी है, कैसे कायदे से रहती है। मैं कुछ नहीं बोली, तो कहने लगे इस घर में रहना है
तो मेरी भाभियों से कुछ सीखो। सबके सामने मेरा मजाक बना दिया। मुझे भी गुस्सा आ गया मैने कह दिया- “मैं इतना माथा ढककर काम नहीं कर सकती।” तो वे बोले -अपने पापा के घर चली जाओ। माँ मैं अब वहाँ नहीं जाऊँगी।’ ‘बेटा -थोडा़ शांति से काम ले, कभी भी ताली एक हाथ से नहीं बजती। तू उस घर की बहू है, आठ महिने होने आए और तू अपने दैर से उठने की आदत नहीं सुधार पाई। बेटा! मैं हमेशा से कहती थी,
एक बेटी को दो घर की रीत सीखनी पढ़ती है। बेटा तूने जो किया और कहा वह भी तो सही नहीं है। पूरी गलती तेरी नहीं पर है तो। बेटा! एक हाथ से ताली कभी नहीं बजती । ये नाजुक रिश्ते हैं, इस तरह हवा के झोके से तौड़े नहीं जा सकते। हम आज तेरे ससुराल चलेंगे और शांति से बात करेंगे।’
शाम को सुधा जी, पवन कुमार जी राशी को लेकर उसके ससुराल गए। पवन कुमार जी ने कह दिया था कि ‘तुम्हारी जिद है इसलिए तुम्हारे साथ चल रहा हूँ। मैं कुछ नहीं बोलूँगा बात तुम्हें ही करनी है, अगर मैं गुस्से में कुछ बोल दूंगा तो बात बिगड़ जाएगी।’ सुधा ने कहा ठीक है आप बस साथ में चले। वहाँ राशी के सास ससुर उनसे प्रेम से मिले।
रजत ने भी पैर छुए। सुधा जी ने बात शुरू की हम अपनी बच्ची की नादानी के लिए क्षमा चाहते हैं। उसे इस तरह घर छोड़कर नहीं आना चाहिए था।मैं आपको विश्वास दिलाती हूँ, वह धीरे-धीरे आपके घर के तौर तरीके कार्य सब सीख जाएगी। आपसे भी अनुरोध है उसे……।’
आशा जी ने कहा -‘और शर्मिंदा न करें, गलती हमारी भी है। एक हाथ से ताली कभी नहीं बजती। हमें भी सोचना चाहिए था, लड़की अपने माता- पिता का घर छोड़कर आई है, अभी तक पूरा ध्यान पढ़ाई पर था। हमने अपनी सारी अपेक्षाए उस पर डाल दी। कल रजत का व्यवहार भी बहुत रूखा था, मैंने उसे भी समझाया।
अगर आज आप नहीं आते तो हम कल आने वाले थे। आगे से आपको शिकायत का मौका नहीं मिलेगा।’ सुधा जी ने कहा हमें कोई शिकायत ही नहीं है, हम तो बस यह चाहते हैं, बच्चे खुश रहै।’ ‘रजत ने भी कहा मुझसे गलती हुई है, मैं आगे से ध्यान रखूँगा।’ राशी ने भी सबसे मॉफी मांगी। माहौल हल्का हो गया था। सुधा जी ने रजत और राशी से कहा- ‘बेटा! जीवन में कई मौके आते हैं जब विचारों में मतभेद हो जाता है,
उस समय समझदारी से मिलजुल कर हल निकालना पड़ता है। तुम्हारी गृहस्थी की गाड़ी के तुम दोनों पहिए हो, तुम्हें सामंजस्य बनाकर चलना होगा।। ‘ आशा जी ने समर्थन किया और कहा लाख टके की बात कही आपने।’
‘हम दोनों मे तो आज भी-कभी -कभी…….। ‘यह आवाज शील कुमार जी की थी।’ बात को बीच में काटते हुए पवन कुमार जी बोले -‘भाई यह तो घर घर की कहानी है।’ सब हॅंस दिए। नाश्ता चाय करने के बाद पवन कुमार जी और सुधा जी घर आ गए। पवन कुमार जी ने कहा- ‘सुधा तुमने समझदारी से काम लिया, मैं तो गुस्से में सब गड़बड़ कर देता।’ ‘ बस बच्चे खुश रहै, हमे अपने बच्चो की गलतियों को बढ़ावा देने के बजाय उसे सुधारने का प्रयास करना चाहिए।’
प्रेषक-
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित
कहावत-# एक हाथ से ताली नहीं बजती