रिश्ते में एक नयी शुरुआत – विभा गुप्ता : Moral Stories in Hindi

 राधिका का ब्याह दो वर्ष पूर्व नंदिनी के छोटे भाई श्याम से हुआ था, जो अग्रवाल हार्डवेयर नाम की दुकान संभालता था। श्याम एक नेक और हंसमुख इंसान था, और उसने राधिका को अपने जीवनसाथी के रूप में पूरे दिल से अपनाया था। शादी के बाद राधिका और श्याम का जीवन खुशहाल था, दोनों अपने परिवार की खुशियों और अपने सपनों को जीने में व्यस्त थे।

लेकिन एक दिन, होनी को कुछ और ही मंजूर था। श्याम जब किसी काम से बाहर गया था, तो सड़क पार करते समय अचानक एक तेज रफ्तार ट्रक ने उसे टक्कर मार दी। उस हादसे में श्याम की घटनास्थल पर ही मृत्यु हो गई, और राधिका की दुनिया चंद पलों में ही बिखर गई। उसके जीवन से उसके साथी का साथ छूट गया। उसके सारे सपने, सारे अरमान उस सड़क पर छिटक कर बिखर गए। ससुराल में भी सबके चेहरे पर उदासी और खामोशी ने अपना घर बना लिया था। राधिका के लिए इस स्थिति से बाहर निकलना बेहद कठिन था। वह सदमे में थी, टूट चुकी थी, लेकिन उसे अपने ससुराल का सहारा देना था, जो उसके पति के बिना अधूरा हो गया था।

श्याम के गुजरने के बाद, राधिका अपने सास-ससुर के साथ ही रह रही थी, जो उसे अपनी बेटी की तरह मानते थे और उसकी देखभाल करते थे। वे समझते थे कि श्याम के जाने का दुख राधिका के लिए कितना बड़ा है। वे कोशिश करते कि राधिका को इस दुःख की घड़ी में सहारा दें, लेकिन उनके परिवार का एक हिस्सा ऐसा भी था जो राधिका को इस सबका दोषी मानता था – वह थी उसकी ननद, नंदिनी।

नंदिनी का मानना था कि उसके भाई की मौत का कारण राधिका ही है। उसका दिल यह मानने को तैयार नहीं था कि यह महज एक दुर्घटना थी, और उसने राधिका को भाई की मौत का जिम्मेदार ठहराना शुरू कर दिया। नंदिनी अक्सर अपने मायके आती थी, और हर बार वह राधिका पर तीखे तानों और कटाक्षों की बौछार कर देती। राधिका सहमी-सहमी सी रहती, लेकिन वह जानती थी कि उसके सास-ससुर नंदिनी को समझाने की कोशिश करते रहते थे कि वह राधिका पर ऐसे इल्ज़ाम न लगाए।

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एक दिन, नंदिनी अपने मायके आई हुई थी और राधिका ने अपनी ननद के लिए काॅफ़ी बनाने की सोची। उसने काॅफ़ी बनाई और कमरे में ले जा रही थी, लेकिन गलती से उसके हाथ से काॅफ़ी गिर गई और नंदिनी की साड़ी पर कुछ छींटें पड़ गए। नंदिनी ने इसे अपनी अपमान समझा और गुस्से में चिल्ला उठी, “चुप कर मनहूस! एक तो मेरे भाई को खा गई, ऊपर से ज़बान भी लड़ा रही है। पता नहीं तू कब तक हमारी छाती पर मूँग दलती रहेगी।” राधिका सहम गई, उसने सहमते हुए नंदिनी से कहा, “जीजी, माफ़ कर दीजिये, मैंने जान-बूझकर नहीं गिराया है, बस ज़रा टेबल से टक्कर लग गई और …।” लेकिन नंदिनी का दिल इतना सख्त था कि उसे राधिका की कोई बात समझ में नहीं आई।

राधिका के सास-ससुर ने नंदिनी को कई बार समझाया कि वह राधिका को परेशान न करे। वे उसे याद दिलाते कि राधिका पहले से ही बहुत दुखी है, उसे ताने देकर उसके घावों को और मत कुरेदो। लेकिन नंदिनी के कानों पर जूँ तक नहीं रेंगती। वह हर बार राधिका को अपने भाई की मौत के लिए कोसती रहती।

कुछ दिनों बाद एक और घटना घटी जिसने पूरे परिवार को झकझोर कर रख दिया। नंदिनी की आठ वर्षीय बेटी तान्या जब स्कूल से घर लौट रही थी, तो कुछ अपराधियों ने उसे किडनैप कर लिया और फिरौती के लिए पाँच लाख रुपये की मांग की। घर में कोहराम मच गया। नंदिनी का रो-रो कर बुरा हाल था। राधिका को जब इस घटना का पता चला तो वह अपने सास-ससुर के साथ नंदिनी के घर पहुँची। वहाँ उसने देखा कि पड़ोस की कई औरतें नंदिनी पर तंज कस रही थीं, कि कैसी माँ है जो अपनी बेटी का ख्याल नहीं रख सकती। किसी ने कहा, “क्या ऐसी माँ है जिससे एक बच्चा नहीं संभलता!” और किसी ने कहा, “देखो, अभी कुछ और भी भुगतना बाकी है इसके लिए।”

नंदिनी के दिल पर इन तानों का असर हो रहा था। वह उन लोगों की बातें सुनकर और भी दुखी हो गई थी। तभी राधिका ने उन औरतों से हाथ जोड़कर निवेदन किया, “कृपया जीजी की तकलीफ को और मत बढ़ाइये। वह पहले से ही बहुत परेशान हैं। इस समय उनकी मदद करना चाहिए, न कि उन्हें ताने मारकर और परेशान करना।”

राधिका के शब्दों ने वहाँ मौजूद लोगों को चुप कर दिया। राधिका ने नंदिनी के पास जाकर उसे दिलासा दिया और कहा, “चिंता मत कीजिये जीजी, हमारी तान्या घर वापस आ जाएगी। भगवान पर भरोसा रखिये, सब ठीक हो जाएगा।” राधिका के इन शब्दों में एक सच्चा अपनापन और सहानुभूति थी, जिसने नंदिनी को आश्वासन दिया। नंदिनी ने राधिका को गले से लगा लिया और दोनों की आँखों से आंसू बहने लगे, जैसे कि उनके बीच के सभी मतभेद, गिले-शिकवे इन आँसुओं में धुल गए हों।

राधिका की इस करुणा और सहानुभूति ने नंदिनी का दिल जीत लिया। नंदिनी को एहसास हुआ कि वह राधिका को गलत समझती रही थी। राधिका ने अपने दुःख को पीछे छोड़कर उसकी बेटी के लिए खड़े होकर उसके जख्मों पर मरहम लगाने की कोशिश की। नंदिनी ने महसूस किया कि राधिका ने उसे सच्चे मन से माफ कर दिया है, और उसने अपनी गलतियों के लिए उससे माफी मांगी।

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उस दिन के बाद, नंदिनी और राधिका के रिश्ते में एक नयी शुरुआत हुई। नंदिनी अब उसे अपनी छोटी बहन की तरह मानने लगी और राधिका के दुःख में शामिल होने लगी। वह अब राधिका को अपने साथ बैठाकर उसकी तकलीफें सुनने लगी, उसे समझने की कोशिश करने लगी। राधिका भी अब खुद को इस परिवार का एक अनमोल हिस्सा मानने लगी थी।

इस घटना ने सभी को ये सिखाया कि इंसान की सच्चाई और उसके प्यार की ताकत कभी-कभी रिश्तों के सारे गिले-शिकवे मिटा सकती है। राधिका के दिल में हमेशा के लिए उसकी जगह बना ली थी, और नंदिनी ने उसे सच्चे मन से स्वीकार कर लिया था।

मौलिक रचना 

विभा गुप्ता

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