रिश्ते भी बिकते हैं.. – संगीता त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi

उसने  अद्वैत से पूछ ही लिया कि आखिर मुझमें क्या कमी हैं? ” अद्वैत और  आलिवा की शादी धूमधाम से हुई.। आलिवा बहू बन, अलकनंदन  निवास में प्रवेश कर गई.। सासुमां अलका ने बेटे -बहू की आरती  कर, गृहप्रवेश कराया।अलका जी के दो बच्चें अद्वैत और ऐश्वर्या थे.। ऐश्वर्या छोटी थी, हॉस्टल में रह कर पढाई कर रही थी.।

आलिवा बहुत उमंग से नये घर में रच -बस गई ..,। पर एक बात उसे खटक रही थी, वो था अद्वैत का गुमसुम होना..। शादी में भी अद्वैत बहुत शांत था..।किसीने कहा भी -अरे दूल्हा तो बहुत चुप हैं। कहीं दबाव में शादी तो नहीं हो रही..।आप इतने हैंडसम हैं, हमारी आलिवा, आपसे थोड़ा कम हैं.।तब अद्वैत ने मुस्कुरा कर जवाब  दिया था, रिश्ता दबाव में नहीं बनता। और अब तो रिश्ता बन गया.।

             ससुराल में अपने सरल व्यवहार से आलिवा ने सबका दिल जीत लिया.। बस अद्वैत ही अलग रहा.। एक दिन सासुमां को पास के शहर में अपनी बहन के यहाँ जाना था..। वो ससुर जी के साथ दो दिन के लिये बहन के यहाँ चली गई.।

        घर में आलिवा और अद्वैत ही रह गये थे,।  सुबह, आलिवा ने अद्वैत से कहा!मै  कभी अकेले रही नहीं,इतने बड़े घर में अकेले कैसे रहूंगी। आप आज छुट्टी ले लो।अद्वैत ने रूखे स्वर में मना कर दिया। ऑफिस में बहुत काम हैं। पर आज आलिवा ने तय कर लिया था । अद्वैत के मन में क्या हैं, जान कर रहेगी.।

  ” उसने अद्वैत से पूछ ही लिया कि आखिर मुझमें क्या कमी हैं? “

अद्वैत -नहीं ऐसी कोई कमी नहीं हैं।  फिर आप मुझसे दूर क्यों भागते हैं..। अद्वैत कुछ नहीं बोला, ऑफिस के लिये निकल गया.।

            आलिवा ने आज ठान लिया था तो ऐश्वर्या को फ़ोन लगाया.। उससे जानकारी ली, आखिर अद्वैत इतना चुप क्यों रहता हैं। जो जानकारी मिली,वो आलिवा के होश उड़ाने  के लिये काफी था…।

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               अद्वैत अपनी सहपाठी वाणी को चाहता था.. पर माँ -पापा को दक्षिण भारतीय, वाणी,अपने गोरे चिट्टे परिवार के उपयुक्त नहीं लगी। माँ ने साम -दंड- भेद की नीति को अपना कर, अद्वैत का विवाह आलिवा से करा दिया.। कर्ज में डूबे अद्वैत के परिवार को, आलिवा के परिवार ने आर्थिक संबल दिया.।

या कह ले मोटा -ताज़ा दहेज दिया .। जिससे एक बार फिर, अद्वैत के पापा का बिजनेस चल पड़ा.। अद्वैत ने शादी तो कर ली. पर वाणी को भूल नहीं पाया। आलिवा सोच में डूब गई।अगर अद्वैत को वाणी ही पसंद थी, तो उसे,उसी से शादी करना था..। मेरी जिंदगी क्यों ख़राब की..।  अब क्या होगा,. क्या उसे अद्वैत को छोड़ना होगा। पर अद्वैत से तो वो प्यार करने लगी.।कैसे रहेगी अद्वैत के बिना..।कई प्रश्नों  और अनजाने डर से उलझी आलिवा, तनाव से घिर गई..।

      शाम को जब अद्वैत घर आया तो, देखा आलिवा की आँखे सूजी हुई थी.। चाय का कप अद्वैत को पकड़ा, आलिवा अपनी चाय ले बगीचे में चली गई.।रोज तो आलिवा अपनी बकबक से उसे परेशान करती थी,।आज की खामोशी चुभने लगी तो अद्वैत उसे ढूढ़ता हुआ,बगीचे में गया तो देखा, आलिवा शून्य में देख रही थी. चाय का कप भरा हुआ, वैसे ही रखा था.।

                     अद्वैत का मन भर आया.। आखिर उसके और उसके माँ -बाप के लड़ाई में आलिवा का क्या कसूर हैं.। आज पहली बार अद्वैत के मन में आलिवा के लिये सहानुभूति की कोंपल फूटी.। स्नेह से पुकारा -आलिवा…

चौक कर आलिवा ने सर उठाया…। आज पांच महीने बाद, पति की स्नेहसिक्त आवाज सुनी..। उससे रहा नहीं गया.। दौड़ कर अद्वैत के गले लग गई। रो -रो कर, अद्वैत की कमीज भिगो डाली,.. आखिर मेरी क्या गलती थी, बार -बार यहीं बोल रही थी..।

      तुम्हारी कोई गलती नहीं थी आलिवा। गलती तो मेरी और हमारे माँ -बाप की थी. जिन्होंने इस रिश्ते को बनाने के लिये सौदा किया.। मै अनजाने में उनकी गलतियों की सजा तुम्हे देता रहा.। मेरा ये मानना हैं। कोई रिश्ता दबाव में नहीं बनता हैं। रिश्ते दिल से बनते हैं.। पर हमारे रिश्तेदारों ने इसे पैसों से बनाने की कोशिश की.।  जीवन में पहली बार जाना..। रिश्ते भी बिकते हैं..।जिसका आक्रोश मुझे था.।

                 मेरा तुम्हारा रिश्ता बन चुका हैं.। मै अपने रिश्ते के प्रति ईमानदार भी हूँ।विश्वास करो, मै कभी तुम्हे धोखा नहीं दूंगा.। बस मुझे थोड़ा समय चाहिए था…। सॉरी आलिवा..। और दो मन एक हो गये..। गिले -शिकवे ख़त्म हो गये थे. मन निर्मल हो चुका था तो रिश्ता भी प्रगाढ़ होना ही था..। दो दिन बाद जब अलका जी आई, तो उनका घर बहू की मासूम हँसी से मुखरित था.। एक राहत की सांस ली.. अनुभवी थी। बेटे -बहू के बीच की खाई को समझ रही थी। साथ ही अपनी गलती भी..। पर अब सुधार करना हैं उन्हे..। एक नये आगाज के लिये..।

        कई बार कुछ गलतियों की वजह से पति -पत्नी के बीच अलगाव की खाई बन जाती हैं.। आवश्यकता हैं,। सोच समझ के साथ खाई को भरना..।ना की जिद और गुस्से में खाई को और बड़ा करना..।

                    —संगीता त्रिपाठी

1 thought on “रिश्ते भी बिकते हैं.. – संगीता त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi”

  1. बहुत ही अच्छी पोस्ट के लिए सादर धन्यवाद जय हिंद जय श्रीराम

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