रिश्ता हो तो ऐसा – विभा गुप्ता : Moral Stories in Hindi

 ” क्या सीमा…दो बच्चों के बाद फिर से…इतने तो उपाय हैं..अपनाया नहीं..पढ़-लिखकर भी गँवार ही रही…हा-हा..।” कहते हुए शिल्पी अपनी ननद का उपहास करने लगी।तब उसकी सास बोली,” छोटी बहू..बच्चे तो भगवान की देन है…सीमा फिर से माँ बनने वाली है..ये तो खुशी की बात है..आशीर्वाद देने की बजाय तुम इसकी हँसी उड़ा रही हो..ये तो ठीक नहीं है।”  भाभी के व्यंग्य-बाण से सीमा का खिला चेहरा मुरझा गया।

        शहर के आयरन फ़ैक्ट्री के मालिक श्री देवीलाल और उनकी पत्नी सविता देवी की इकलौती बेटी थी सीमा।माता-पिता की दुलारी और दो बड़े भाईयों अनिल-सुनील की लाडली सीमा में अपने पिता के रुतबे और पैसे का ज़रा भी घमंड न था।अपने दोनों भतीजों के साथ खेलते हुए उसे बच्ची बनते देख उसकी भाभियाँ ठिठोली करतीं,” बन-ठन कर रहोगी ननद रानी तभी तो अच्छा दूल्हा मिलेगा।” सुनकर वो मुस्कुरा देती थी।

     सीमा के बीए के इम्तिहान खत्म होने वाले थे।सविता जी उसके लिये सुयोग्य वर तलाश कर रहीं थीं कि एक दिन बड़ी बहू आरती उनसे कनाडा में रह रहे अपने चचेरे भाई अविनाश का ज़िक्र करते हुए बोली,” मम्मी जी, ये रिश्ता हो जाये तो अपनी सीमा राज करेगी।”  सविता जी ने जब बेटी के सामने अविनाश की चर्चा की तो वो इंकार करते हुए बोली,” मम्मी..मैं दीपक जी के साथ विवाह करना चाहती हूँ।वे राजकीय महाविद्यालय में पाॅलिटिकल साइंस के लेक्चरर हैं।वो स्वभाव के बहुत अच्छे हैं मम्मी  और ज्ञान के भी बहुत धनी हैं।आप मिलेंगी तो..।”

       लेक्चरर सुनकर सविता जी तो गरम हो गईं।तब देवीलाल जी बोले,” लड़के और उसके परिवार से मिल लेते हैं, फिर फ़ैसला करना।” दीपक और उसके परिवार के सत्कार- व्यवहार से सविता जी की सारी शंकाएँ दूर हो गई।एक शुभ-मुहूर्त में सीमा का विवाह दीपक के साथ हो गया।दोनों भाईयों ने खुशी-खुशी अपनी बहन को विदा कर दिया किया।

       सीमा के इंकार को आरती ने अपना अपमान समझ लिया।इसीलिये सीमा जब भी अपने मायके आती तो कभी उसके पहनावे की हँसी उड़ाती तो कभी दीपक की सैलरी का..।उसे नीचा दिखाने का वो कोई भी मौका नहीं छोड़ती थी।

      डेढ़ साल बाद सीमा एक बेटा-एक बेटी,जुड़वाँ बच्चों की माँ बन गई।तब उसके सास-ससुर उसके पास आकर रहने लगे।आरती उन्हें लेकर भी सीमा को कुछ उल्टा-सीधा सुना ही देती थी।अब तो छोटी भाभी शिल्पी भी आरती का साथ देने लगी थी।भाभियों के व्यवहार से उसका मन आहत होता तब उसके पिता समझाते,” बेटी..अपनी भाभियों की बातों से मन छोटा मत किया कर…#बड़ा दिल रख..जिसमें बड़ों के लिये सम्मान के साथ-साथ उन्हें माफ़ कर देने की भी जगह हो।” उसके पति और सास-ससुर भी उसे हमेशा यही बात समझाते रहते थे।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

फूटी आंखों न भाना – डाॅ संजु झा : Moral Stories in Hindi

        पिता के देहांत के बाद सीमा ने मायके जाना कम कर दिया।फ़ोन पर अपनी माँ से बात कर लेती..कभी-कभी सविता जी ही बेटी से मिलने चली जातीं।अब भाई बेचारे अपना परिवार देखे या बहन को मनाये…।

        सविता जी की तबीयत खराब हुई तो सीमा बच्चों को सास के पास छोड़कर मम्मी से मिलने आ गई।उसका चमकता चेहरा और पेट के हल्के उभार को देखकर सविता जी मुस्कुराने लगीं।आँखों के इशारे से पूछा तो बोली,” हाँ मम्मी..अब जो भी होगा तो मैं ऑपरेशन…।” कमरे से गुजरते हुए शिल्पी ने सुन लिया और उसने सीमा पर तीसरे बच्चे के आने का व्यंग्य कस दिया।

          सीमा ने एक प्यारी- सी बेटी को जनम दिया।बच्ची को आशीर्वाद देने उसकी नानी और मामा आये लेकिन मामियाँ नहीं आईं तो उसे बहुत दुख हुआ।

      ईश्वर के खेल भी बड़े निराले होते हैं..किसी की झोली भर देते हैं तो किसी की…।शिल्पी अपने आठ साल के बेटे मनु को लेकर शाॅपिंग करके लौट रही थी।एक हाथ में बैग और दूसरे से बेटे का हाथ पकड़कर गाड़ी के पास आई..दरवाज़ा खोलने लगी तभी मनु ने हाथ छुड़ा लिया।ड्राइवर उसे पकड़ता, तब तक वो सड़क पर दौड़ गया और तेज आती की गाड़ी की चपेट में आ गया।बेटे को खून से लथपथ देख वो बेहोश हो गई।ड्राइवर ने तुरंत घर पर फ़ोन किया और दोनों को लेकर अस्पताल पहुँचा।मनु को तो डाॅक्टर बचा न सके लेकिन शिल्पी की हालत भी ठीक नहीं थी।

बेटे के दुख में वो विक्षिप्त-सी हो गई थी।तब डाॅक्टर सुनील को बोले कि यदि कोई बच्चा इनकी गोद में आ जाये तो हालत में सुधार हो सकता है वरना..।सुनील ने अपने ससुराल वालों से बात की लेकिन कोई भी अपनी संतान को देने के लिये तैयार नहीं हुआ।हार कर उसने सीमा के आगे अपने हाथ फैला दिये।अपने बच्चों को सीने-से लगाते हुए सीमा बोली,” नहीं भईया…मुझे माफ़ कर दीजिये।” सुनील निराश होकर चला गया तब दीपक बोला,” सीमा..एक बार अस्पताल जाकर छोटी भाभी की हालत तो देख लो..फिर फ़ैसला करना।”

       सीमा हाॅस्पीटल गई लेकिन दूर से ही शिल्पी की चित्कार से उसका कलेज़ा फट गया।घर आकर वो बेचैन रही..उसकी आँखों के सामने कभी उसे छोटी भाभी का प्यार दिखाई देता तो कभी उनका दुर्व्यवहार तो कभी उनका दुख।वो कभी बेटे के पास सो रही अपनी तीन वर्षीय बेटी तन्वी को देखती तो कभी उसे अपने पापा की बात याद आ जाती।तो क्या छोटी भाभी की जान बचाने के लिये मैं अपनी तन्वी को उन्हें सौंप दे…

लेकिन तन्वी के बिना मैं कैसे जिऊँगी..मेरे पास तो तरुण- कृति हैं ना..भाभी तो…।अपने आप से सवाल-जवाब करते हुए उसने अपनी सास से पूछा,” माँजी..क्या करुँ…।” सभी उसकी मनोदशा को समझ रहें थें।उसके ससुर आशीर्वाद देते हुए बोले,” बहू..तुम्हारे दिल में बहुत प्यार है..थोड़ा बाँट दोगी तब भी कम नहीं होगा।” उसकी आँखों से आँसू झर-झर आँसू बहने लगे।

     पौ फटते ही सीमा तन्वी को लेकर अस्पताल चली गई और सुनील के हाथ में अपनी तन्वी का हाथ थमा दिया।दीपक ने उसके कंधे पर हाथ रखा तो वो फ़फक-फ़फक कर रोने लगी।सविता जी बोली,” ईश्वर ऐसी बेटी सबको दे..।” आरती आई..शिल्पी के साथ तन्वी को देख वो चकित रह गई।उस वक्त उसे एहसास हुआ कि पैसों से अमीर होते हुए भी उसके पास सीमा जैसा #बड़ा दिल नहीं है।अपनी ननद के साथ किये गये बुरे बर्तावों पर वो बहुत शर्मिंदा थी।सीमा के सामने हाथ जोड़कर माफ़ी माँगनी चाही तो सीमा ने अपनी भाभी को गले लगा लिया।हृदय की कड़वाहट आँसू बनकर दोनों की आँखों से बहने लगे।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

“सुपर मॉम ” – कविता भड़ाना : Moral Stories in Hindi

       बच्चे का सानिध्य पाकर शिल्पी की दशा में सुधार होने लगा।वो तन्वी को मनु समझकर ही सँवारती, खेलती और बातें करती।तन्वी सीमा की जगह शिल्पी को देखकर पहले तो रोई… फिर अपनी नानी- मामा को देखकर खुश हो गई और शिल्पी के साथ हिलमिल गई।

      सीमा अस्पताल जाती और दूर से ही बेटी को देखकर अपनी आँखें तृप्त कर लेती।शिल्पी घर आ गई।धीरे-धीरे उसने सच्चाई को स्वीकारा… अपने व्यवहारों के लिये सीमा से माफ़ी माँगती हुई बोली,” तुम्हारा एहसान कैसे चुका पाऊँगी..।” और तब सीमा अपनी भाभी के चेहरे पर आई खुशी को देखती थी।उस घर की खुशियाँ फिर से लौट आई थी।

      एक दिन तीनों बच्चे खेल रहे थे…सविता जी कृति की मालिश कर रहीं थीं तो सीमा शिल्पी के कमरे में चली गई,” भाभी..अब आपकी तबीयत कैसी है?”

       “सीमा.. तन्वी को लेने आई हो ना..?” कहते हुए शिल्पी के चेहरे पर एक डर था जिसे देखकर सीमा बोली,” नहीं भाभी..आपकी तन्वी को भला मैं कैसे ले सकती हूँ।” कहते हुए उसकी आँखों में आँसू थे लेकिन होंठों पर मुस्कुराहट थी।बिना किसी कागज़ी कार्रवाई के शिल्पी एक बेटी की माँ बन गई थी।सीमा मायके आती तो चारों बच्चे एक हो जाते और वो भाभियों के साथ बतियाती।अपने बच्चों को साथ देखकर सविता जी की आँखें खुशी -से भर जाती थी।

         लेकिन ये खुशियाँ भी ज़्यादा दिनों तक नहीं रह पाई।तरुण ग्यारहवीं में था और कृति आठवीं में..तभी कैंसर ने सीमा को अपनी चपेट में ले लिया।भाईयों ने उसके इलाज़ में कोई कमी नहीं की..लेकिन ईश्वर की मर्ज़ी के आगे इंसान का कोई वश नहीं चलता।सबके चेहरों पर हँसी देने वाली सीमा सबको रोता छोड़कर हमेशा के लिये संसार से विदा हो गई।

         दीपक ने कुछ महीनों पहले ही पिता को खोया था और अब पत्नी भी..।बच्चों का उदास चेहरा देखता तो सोचता,” मैं इन्हें कैसे…।” उस समय सीमा की दोनों भाभियों ने तरुण और कृति को अपने आँचल में ऐसे समेट लिया जैसे चिड़िया अपने बच्चों को डैने(पंख)के नीचे छिपा लेती है।उन्होंने दीपक से कहा कि आप इत्मीनान होकर काॅलेज़ जाइये..माताजी और बच्चों के लिये हम हैं।

       आरती और शिल्पी बारी-बारी से आकर बच्चों की पढ़ाई देखतीं…उनके खान-पान पर ध्यान देती।साथ ही, दीपक की बीमार माँ की सेवा भी करतीं।आसपास वाले और रिश्तेदार कहते,” रिश्ता हो तो ऐसा..पहले ननद ने निभाया और अब भाभियाँ निभा रहीं हैं।” बेटी के दुख में सविता जी बिस्तर पकड़ लीं और एक दिन हमेशा के लिये अपनी आँखें मूँद लीं।

      समय बीतने लगा..अनिल का बेटा पिता की फ़ैक्ट्री संभालने लगा तब आरती ने अपनी सहेली की बेटी से उसका विवाह करा दिया।तरुण इंजीनियरिंग पास करके दिल्ली में नौकरी करने लगा।तन्वी फ़ैशन डिज़ाइनिंग का कोर्स करके ज़ाॅब करने लगी।दीपक से राय-विचार करके अनिल ने उन दोनों का विवाह भी करा दिया।कृति बीएससी के फ़ाइनल ईयर में थी।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

अब सोच बदलने की जरूरत हैं – विकास मिश्र : Moral Stories in Hindi

        माँ के गुज़र जाने के बाद दीपक ने महाविद्यालय से हमेशा के लिये छुट्टी ले ली और घर पर बेटी के साथ समय समय बिताने लगे।उनके एक मित्र ने अपने बेटे के लिये कृति का हाथ माँगा तो उन्होंने अनिल-आरती से बात करके हाँ कह दी।

       कृति का विवाह भी उसके मामा के घर से ही हुआ।विवाह की सजावट..बरातियों का स्वागत..लेन-देन और विदाई इतनी शानदार थी कि देखने वालों के मुँह से निकला,” वाह! रिश्ता हो तो ऐसा…ननद की अधूरी ज़िम्मेदारी को पूरा करने वाली भाभियों का दिल सच में बहुत बड़ा है।

                                  विभा गुप्ता 

# बड़ा दिल              स्वरचित, बैंगलुरु 

                  कभी-कभी एक छोटी-सी बात पर रिश्तों में दरार आ जाती है जिसे भरने के लिये किसी एक को अपना दिल बड़ा करना पड़ता है जैसे कि सीमा ने किया।सीमा की ज़िम्मेदारी को पूरा करके आरती और शिल्पी ने अपना बड़प्पन दिखाया।

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!