अनुष्का का आखिरी महीना चल रहा था। इसी कारण सौरभ बहुत चिंतित था, अकेले कैसे सँभालेगा! यद्यपि सौरभ ने अनुष्का की देखभाल के लिए सुबह 8 बजे से रात नौ बजे तक के लिए एक सेविका का भी इंतज़ाम कर दिया था। पर ऐसे समय में किसी अपने के साथ से मानसिक संबल मिल जाता है।
सौरभ को पूरी उम्मीद थी, यह खबर सुनकर माँ का सारा गुस्सा गायब हो जाएगा, और वह तुरंत ही भागी आएंगी। आखिर पहला पोता या पोती है। माँ के होते सब कुछ ठीक से निपट जाएगा।
माँ और पूरे परिवार की नाराज़गी का कारण अनुष्का थी, जिससे सौरभ ने सबकी अनिच्छा के बावजूद विवाह किया था।
अनुष्का की माँ नहीं थी। वह तो उनके विवाह से पहले ही अनंत यात्रा को प्रस्थान कर चुकी थी।
केवल ससुर जी और उसका छोटा भाई शोभित था, जो अभी ग्यारहवीं में पढ़ रहा था। इसी कारण अपनी माँ का ही सौरभ को सहारा था। सोचा, किसी कारणवश माँ नहीं आ पाई तो अनुनय करके भाभी या बहन को बुला लेगा। पर जो सोचा था, वह रेत के घरौंदे की तरह भरभराकर गिर पड़ा।
माँ ने सौरभ से घुटने के दर्द और पिता जी की देखभाल करने का बहाना बनाकर मना कर दिया।
सौरभ ने चिरौरी करते हुए कहा –
“माँ, आपकी बहुत ज़रूरत है। मैं नहीं सँभाल पाऊँगा। पिताजी को भी ले आइए न। पर माँ ने दो टूक जवाब देते हुए कहा- “पिताजी को सफर में परेशानी होती है”। जबकि अभी कुछ दिन पहले ही माँ और पिताजी अपने कुछ मित्रों के साथ वैष्णो देवी गए थे। यह बात सौरभ को अपने कुछ जाननेवालों से पता चली थी, पर वह मौन रहा।
कुछ देर की चुप्पी के बाद सौरभ ने सकुचाते हुए कहा-
“माँ। अगर आप नहीं आ सकती, तो दीदी या भाभी को ही भेज दीजिए।
यह सुनकर माँ कह उठी-
“कैसी बात कर रहा है, छोटे। दीदी के ऊपर अपने परिवार की पूरी जिम्मेदारी है और भाभी कैसे आ सकती है! उसके बिना यहाँ कौन सँभालेगा, और फोन रख दिया।
सौरभ की आँखें छलक उठी। यह वही माँ है, जो उसकी हर इच्छा को पूर्ण करने के लिए उसी समय दौड़ पड़ती थी। यह देख अनुष्का ने कहा, चिंता मत कीजिए। भगवान सब सही करेंगे, तभी कमरे के बाहर से सेविका की आवाज़ आई-
“साहब, मेमसाहब माफ़ कर दीजिए।
मैं तो नाश्ते का पूछने आई थी। आपकी बातें सुन ली। अगर आप चाहें तो कुछ मदद कर सकती हूँ”!
“क्या, शीला”? अनुष्का ने पूछा।
“मेरी एक चाची है। अकेली रहती है। उसे दाई का काम भी आता है। अगर आप कहें तो उसे बुला लूँ”।
“पर”, सौरभ ने सकुचाते हुए कहा।
“साहब जी। अगर विश्वास नहीं तो रहने दीजिए”।
नहीं शीला। विश्वास की बात नहीं है। उनको दिक्कत होगी”।
“अपनों के लिए कोई दिक्कत नहीं होती साहब।और साहब पैसों की कोई चिंता मत कीजिए। इस समय तो मेमसाहब का ध्यान रखना ज़रूरी है”।
“बहुत-बहुत धन्यवाद शीला। तुमने तो पराया होते हुए भी अपनों से बढ़कर मेरा साथ देने का प्रयास किया है”! भरे गले से अनुष्का ने शीला से कहा।
“कैसी बात कर रही हैं मेमसाहब। आपके घर में कुछ ही दिनों में मुझे जो अपनापन मिला है, उसके आगे तो यह कुछ भी नहीं। फिर इंसान ही इंसान के काम आता है। अब सारी चिंता छोड़ दीजिए। खुश रहिए”।
“मेरी एक बात मानोगी”, अनुष्का ने शीला को पास बुलाकर कहा।
“क्या मेमसाहब”।
“यही, आज से मुझे मेमसाहव नहीं दीदी कहना”!अनुष्का ने उसका हाथ पकड़कर मुस्कराते हुए कहा।
“और मुझे सौरभ भैया”!
“ठीक है । तो कल ले आऊँ चाची को”!
“बिलकुल। मेरी आधी चिंता तो तुम्हारी बात सुनकर ही दूर हो गई”। अनुष्का ने कहा।
अगले दिन शीला की चाची आ गई। आते ही उसने सब कुछ अच्छे से सँभाल लिया। दोनों के कारण बहुत आराम हो गया। सौरभ को भी कोई चिंता न रही। समय पूर्ण होने पर अनुष्का ने एक गोलमटोल से सुंदर बेटे को जन्म दिया। जिसका नाम उन्होंने पीयूष रखा।
अनुष्का और सौरभ ने खुशी से शीला को दो हज़ार रुपए और कपड़े दिए, और उसकी चाची को भी पाँच हज़ार रुपए और कपड़े दिए। घर पर सौरभ ने पीयूष के पैदा होने का कोई भी फोन नहीं किया। पता था, कोई नहीं आएगा।
पीयूष के एक साल होने तक शीला और उसकी चाची ने अनुष्का का पूरा ध्यान रखा। फिर शीला को उसने बरतन-सफाई करने को कह दिया। पैसे उसे उतने ही देने चाहे, जितने तय हुए थे, पर शीला ने मना कर दिया। उसकी चाची भी कभी- कभी मिलने आ जाती थी।
पीयूष के एक साल का होने पर सौरभ और अनुष्का ने बहुत भव्य तरीके से उसका जन्मदिन मनाने का सोचा। अनुष्का के ज़ोर देने पर मयंक ने अपने परिवार को भी बुलाया। अनमने मन से वे आए और अजनबी की तरह शगुन का लिफ़ाफा पकड़ाकर चले गए। लेकिन शीला, उसकी चाची और उसके परिवार ने अपनों की तरह पूरा साथ दिया।
इस तरह एक पराए रिश्ते ने अपनेपन की सौंधी महक से अनुष्का और सौरभ के दिल में खास जगह बना ली।
सच ही कहा है, रिश्ता वही जो अपना-सा लगे, न कि ज़रूरत होने पर दूर छिटक जाए।
#पराए_रिश्तें_अपना_सा_लगे
अर्चना कोहली “अर्चि”
नोएडा (उत्तर प्रदेश)
स्वरचित और मौलिक रचना