रेवा की पहल – नीरजा नामदेव

रेवा स्कूल में शिक्षिका है । घर से स्कूल के रास्ते में उसे रोज रेलवे क्रॉसिंग पर रुकना पड़ता था क्योंकि अक्सर गेट बंद होता था। इस बार बहुत दिनों बाद जब वह स्कूल जा रही थी तो उसने देखा कि रेलवे क्रॉसिंग के किनारे छोटी-छोटी लड़कियां खेल दिखा रही थी। वहां मौजूद लोग खेल देख रहे थे। खेल खत्म होने के बाद एक लड़की सबके पास पैसे लेने आई।  कुछ लोगों ने पैसे दिए । रेवा बच्चियों की मासूमियत  देखकर कुछ सवाल पूछना चाहती थी  लेकिन  तभी गेट खुल जाने के कारण वह आगे बढ़ गई ।रास्ते भर वह उन बच्चियों के बारे में ही सोचती रही ।जब वह वापस आ रही थी तब भी बच्चियां उसी तरह से खेल दिखा रही थी।      

 

     लेकिन अभी रेवा को कोई जल्दी नहीं थी ।उसने सबसे बड़ी लड़की से पूछा आप लोग यहां कैसे आए । तब उसने  बताया कि हमारे माता-पिता की बीमारी के कारण मृत्यु हो गई ।  हम उनके साथ ही खेल दिखाते थे। गांव में कोई काम नहीं मिलने के कारण हम यहां आकर खेल दिखा रहे हैं । जो पैसे मिलते हैं उससे हम अपना काम चलाते हैं। शाम को अपने घर लौट जाते हैं। रेवा ने उनके गांव का नाम पूछ लिया और यह भी पता किया कि क्या वह रोज यहां खेल दिखाने आती है। लड़कियों ने अपना नाम भी बताया और अपने बारे में कुछ और बातें बताईं।    

 

        लड़कियां बहुत ही खुश हुई कि अभी तक इतनी आत्मीयता से उनसे किसी ने बात नहीं की थी । रेवा एक महिला मंडल से जुड़ी हुई थी ।उसने आकर सबको फोन करके उन लड़कियों के बारे में बताया और उनके बारे में हमें कुछ करना चाहिए ऐसा सुझाव दिया।सब इससे सहमत हो गई ।सब ने मिलकर उन लड़कियों का सहयोग करने की बात स्वीकार कर ली।

 

       दूसरे दिन रेवा और उसकी दो सहेलियां उन लड़कियों के गांव गई और वहां के सरपंच से उन्होंने बात की कि हम इन लड़कियों के लिए कुछ करना चाहते हैं। हम एक संस्था के बारे में जानते हैं जहां ऐसी लड़कियों को रखा जाता है। उन्हें कुछ उपयोगी कार्य सिखाया जाता है और आगे की पढ़ाई करवाई जाती है। अगर आप सहमत हो तो हम इन्हें उस संस्था में ले जाना चाहती हैं सरपंच उनकी बात सुनकर खुश हुए।

        संस्था के बारे में सारी जानकारी ली । उन्होंने खुद ही लड़कियों से बात करके उन्हें सारी बात समझाई कि तुम लोगों का भविष्य अच्छा हो जाएगा ।लड़कियां भी उनकी बात सुनकर तैयार हो गई। सरपंच और गांव के कुछ लोग  उन लड़कियों को छोड़ने संस्था तक गए और वहां जाकर भी उन्होंने सारी व्यवस्थाएं देखी ।सब  संतुष्ट होने के बाद  उन लड़कियों को वहां छोड़कर आए ।

      लड़कियों को एक सुरक्षित आश्रय मिल गया। आगे उनकी पढ़ाई भी हुई वे जीवन में सफल हो सकीं।

         रेवा के अच्छा करने की भावना और थोड़े से प्रयास  ने उन लड़कियों का भविष्य संवार दिया।

 

स्वरचित

नीरजा नामदेव

छत्तीसगढ़

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