*रेजगारी* –     मुकुन्द लाल

Post Views: 8 बसंती ने भुट्टों से भरी टोकरी को मुश्किल से अपने सिर पर से उतरकर जमीन पर रखा। उसने आंँचल से पसीना पोंछा। उसकी सांँस तेज गति से चल रही थी। पाँच किलोमीटर की दूरी तय करके वह सब्ज़ी मार्केट सुबह तड़के पहुंँच गई थी। कोरोना के भय से। उस समय तक इक्के-दुक्के … Continue reading *रेजगारी* –     मुकुन्द लाल