#चित्रकथा
अब रीमा एम .ए. की पढ़ाई कर रही है। वह बहुत खुश दिख रही थी। वह कल ही तो मुझसे मिली थी। प्रणाम किया था और मेरा हाल भी पूछा। मुझे भी बड़ी खुशी हुई उसे इस तरह आगे बढ़ते हुए देख कर! शायद वह सब कुछ भूल गई होगी जो उसके साथ बच्चपन में घटित हुई थी। कैसे भूली होगी वह ? जब मैं ही उस घटना को नहीं भूली तो वो कैसे भूल जाएगी , जो उसकी निजी जिन्दगी का है! मानसी ख्यालों में खो गई। मानो कल ही की बात है ….
सात वर्षीया रीमा उस वक्त इंग्लिश स्कूल की कक्षा दूसरी की छात्रा थी। रीमा के माँ बाप निम्न मध्य वर्ग से आते थे। फिर भी उनके मन में यह अभिलाषा थी कि अपनी पुत्री को अंग्रेजी माध्यम से ही शिक्षा दिलाएंगे। यही सोच कर उसका एडमिशन शहर के छोटे से प्राइवेट “एंजेल” स्कूल में करा दिया। स्कूल दस से तीन बजे तक चलता था। तीन बजे, जैसे ही छुट्टी की घण्टी बजती तो सभी बच्चे अपने माँ या पिता के साथ होते, जो पहले से ही स्कूल के दरवाजे पर प्रतीक्षा कर रहे होते थे। रीमा के माँ बाप दोनों की कहीं जॉब कर रहे थे
इसलिए उनको स्कूल आकर रीमा को पिकअप करने में देर हो जाती। बच्चों के देर तक स्कूल में पड़े रहने की समस्या से टीचर भी परेशान रहते थे।। आखिर उन्हें भी तो घर जाने की जल्दी होती थी! जब टीचर उन्हें छोड़ कर घर चले जाते थे तब यह जिम्मेदारी स्कूल के आया और चपरासी पर होती थी। जब कभी आया और चपरासी भी चले जाते तो यह जिम्मेदारी स्कूल के अकाउंटेंट की होती , जो चौबीस घण्टे स्कूल में डयूटी देता था।
एकदिन दस बजे रीमा की माँ गुस्से में बड़बड़ाते हुए प्रिंसिपल मैम की ऑफिस में पहुँच गई , “उसे मैं जान से मार दूँगी, उसे पुलिस के हवाले करूँगी….! वह समझता क्या है अपने को….!हमलोग स्कूल में बच्चे पढ़ने के लिए भेजते हैं, और यह बच्चों से गलत काम करता है! इसे अभी मारूँगी!” उन्होंने पास ही बैठे उस एकाउंटेड की तरफ इशारा कर के आपे से बाहर हो रही थी। प्रिंसिपल मैम की ऑफिस से लगी एकाउंटेड की कुर्सी थी।
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मैम ने पूछा, क्या बात है !..आखिर किया क्या इसने….
आप बतलाइये तो सही….! क्या हुआ क्या” ? “हमारी बेटी स्कूल आना नहीं चाह रही है, वह डर गई है… उसके साथ इसने गन्दी बात कही है!
। आपलोग स्कूल में सारे स्टाफ लेडीज रखिये ! जेंट्स स्टाफ को हटा कर महिला स्टाफ रखिये! जेंट्स स्टाफ बच्चियों के साथ गलत व्यवहार करते हैं…. ” पास ही रीमा अपने माँ का हाथ थामे खड़ी थी।
प्रिंसिपल ने प्यार से रीमा को अपने पास बुलाया, “क्या हुआ बेटी! बताओ उसने क्या कहा तुमसे?”
“मैम, ये अंकल ने …..कल जब मैं अकेली बैठी थी…. तब पैंट खोल कर …” फिर वह रोने लगी…
बच्ची की बातों से यह स्पष्ट हो गया कि उसने सुनसान और अकेले में अपना लटकता हुआ ……..उस बच्ची को दिखलाया है!
मैम आपे से बाहर हो गईं। उनकी आंखों से शोले बरसने लगे।उन्होंने आग बबूला हो कर उसी क्षण उस एकाउंटेड को निलंबित कर दिया।
उन्होंने उसे निलंबित तो कर दिया पर रीमा के कोमल मन पर जो कटीले तारों का एक जंगल पसर गया था उस समय, उसके गलत प्रभाव को वो कैसे मिटा पाएगी……. उसे तो समय ही मिटा सकता है! या नहीं भी!
(यह एक सत्य घटना है। वह मानसी और प्रिंसिपल मैं हूँ।)
उर्मिला प्रसाद