रावण दहन कर घर लौट रही थी सुमित्रा। रास्ते में छोटीसी गली हैं, जो सुनसान रहती है, लेकिन जल्द पहुंच जाते है।
अचानक उसे किसी के चीखने की आवाज आई।
बिल्कुल हल्की-सी। वहम समझ, कुछ उदासीनता ओढ़ वह आगे बढ़ने लगी। पांव हैं कि वहीं ठिठक गए। खुसर-पुसर की आवाज सुनकर वह उस दिशा में बढ़ी। मोबाइल से पुलिस को कॉल किया।
नराधम नन्हीं-सी बालिका को घसीटते हुए लिए जा रहा था। छटपटाती बालिका हाथ पांव हिलाने की कोशिश में घायल हो रही थी। मोबाइल से घरवालों को और पुलिस को सुमित्रा ने जानकारी दी।
लोकेशन ट्रेस कर पुलिस समय पर पहुंच गई। थोड़ी ही दूरी पर ऑटो रिक्शा लिए खड़ा उसका साथी भी पकड़ा गया।
सहमी-सी बालिका उससे लिपट गयी।
उसे लगा जैसे राख़ के ढेर से हजारों रावण आसपास, गली- चौराहों पर खड़े अट्टहास कर रहे हो।
देवी माता का रूप धारना ही होगा अब।
नन्हीं कोमल कली को काली मां जैसे सशक्त, महिषासुरमर्दिनी बनाना होगा। रावण की दुर्भावना को जड़ से मिटाना होगा।
नयी योजना का प्रारूप मन में साकार करती वह घर पहुंची। नन्हीं बिटिया आराम से सो रही थी।
स्वरचित मौलिक लघुकथा
चंचल जैन
मुंबई, महाराष्ट्र