“रसोईघर” – सेतु

“सारिका कल जरा जल्दी उठ जाना बेटा. रसोईया मदन साढ़े आठ नो बजे तक आ जायेगा. उसके आने से पहले तुम बस मूंग दाल का हलवा , बादाम- शर्बत और चूरमे की तैयारियां कर लेना.”

शोभा देवी रात की दवा लेते हुए बहु सारिका से कह रही थी.शोभा देवी की आवाज में उत्साह और फिक्र दोनों झलक रहे थे.उत्साह इस बात का क़ि कल एकलौती बिटिया केतकी को देखने लड़के वालों का पूरा परिवार आ रहा था और फिक्र इसलिए कि मेहमानों की खातिर में कोई कसर न रह जाये.

“माँ तुम अब निश्चिन्त होकर सो जाओ कल सबकुछ अच्छे से हो जाएगा.”

बेटे किशोर ने लेपटॉप पर ऑफिस का कुछ काम निपटाते हुए चिंतित मां को सहज करते हुए क़हा था.किशोर को पता था कि सारिका अपनी जिम्मेवारियों को लेकर बेहद सचेत रहती है.

अगली सुबह सबके जागने से पहले ही सारिका तैयार होकर रसोई ने लग गयी थी ताकि रसोइए के आने से पूर्व अपने हिस्से का काम पूरा कर ले.

शोभा देवी और किशोर बाकी तैयारियों को देख रहे थे.

नो बज गए थे अभी तक  मदन नही आया था.शोभादेवी की चिंताएं बढ़ रही थी.पर घर के बाकी लोग निश्चिन्त थे क्योंकि मदन इस घर से काफी सालों से जुड़ा था और कभी भी उसने शिकायत का कोई अवसर नही दिया था.

पर जब दस बजने को आये तो सारे लोग परेशान होने लगे थे.उस पर से मदन का फोन भी लगातार बंद आ रहा था.ग्यारह बजे के बाद लड़के वाले कभी भी आ सकते थे.और रसोई का पूरा काम बचा हुआ था.तीन तीन सब्जियां ,रायता ,पूड़ी सब कुछ आखिर कब तैयार हो पायेगा.

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शोभा देवी तो तनाव के कारण पसीने पसीने हुई जा रही थी.सारिका और केतकी ने एक दूसरे की आंखों में देखा और तय किया कि अब मदन की राह देखने की बजाय वो दोनों रसोई में लगकर सब कुछ तैयार कर लेगी.

“अरे तुमदोनो पागल हो गयी हो क्या…दोनों रसोई संभालोगी या तैयार भी होगी…मेरा तो माथा काम नही कर रहा है.”

“मांजी अब जैसे हालात है उसमें बस यही एक रास्ता है.फिर उनके आने के बाद जब तक वो लोग चाय नास्ता लेंगे उतनी देर में मैं दीदी को तैयार कर दूंगी.”

सारिका  सासु मां को समझा रही थी.

ननद भोजाई ने मिलकर किचन का काम सम्भाल लिया था.

उन्हें उम्मीद थी कि ग्यारह बजे का समय दिया है तो आते आते उन्हें साढ़े ग्यारह तो हो ही जायेंगे और इतना वक्त उनके लिए काफी होगा भोजन तैयार करने के लिए.

पर ये क्या अभी तो पौने ग्यारह भी ठीक से नही बजे थे और बाहर किसी गाड़ी का हॉर्न बज रहा था.

किशोर दौड़कर बाहर गया तो लड़के वाले आ चुके थे.

किशोर ने मेहमानों का अभिवादन किया और उन्हें अंदर लेकर आ गया.

उधर रसोईघर में तो माहौल एकदम तनावपूर्ण हो गया था.आधी रसोई भी ठीक से तैयार नही हुई थी.लड़के वालों के घर से शांति देवी ,उनके पति गणेश बाबू, पुत्र आनन्द और पुत्री और दामाद आये थे.

शांति देवी तो हॉल में बैठने की बजाय किचन देखने की जिद्द करने लगी थी.

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किचन में सारिका और केतकी पसीने पसीने होकर अभी लगी हुई थी कि अचानक शांतिदेवी सामने खड़ी हो गयी थी.पीछे पीछे आनन्द और उसकी बहन भी रसोई में आ गए.केतकी और उसका सारा परिवार एकदम सकपका गया था.

पर शांति देवी और उनके परिवार के लोग जोर जोर से हंसने लगे थे.

“अरे समधन जी दरअसल आपकी रसोई का काम सम्भालने वाले मदन जी हमारी वजह से नही आ पाए.”

शांति देवी की इस बात पर सब उनका मुंह देखने लगे थे.

“आज हमारी ट्रेन घण्टेभर पहले आ गयी थी तो स्टेशन से गाड़ी लेकर हम निकले ही थे और मदनजी की बाइक को हल्की टक्कर लग गयी .वो बाइक से गिरे तो उनका फोन टूट गया और पैरों में हल्की चोट भी आ गयी थी.”

“फिर जब हम उन्हें उठाकर पास के एक क्लिनिक में ले गए तब उनसे पता चला कि वो रसोई बनाने आपके ही घर आ रहे थे.हमे अंदाजा हो गया था कि आप सब कितने परेशान हो जाएंगे.बस ये सोचकर हम ढाबे से सबके लिए खाना पैक कराकर जल्दी से आ गए.”

शांति देवी और आनन्द बारी बारी से सारा किस्सा बयां कर रहे थे.

शांति देवी ने केतकी के दोनों गालो पर अपनी हथेलियां रखकर उसके माथे को चूम लिया था.

” समधन जी जिस परिवार में सारिका जैसी भाभी हो और उससे तालमेल बैठाकर चलने वाली केतकी जैसी ननद हो उस परिवार की पुत्री को गृहस्थ जीवन मे समस्याओं से सूझबूझ से निपटने का गुण तो विरासत में मिला होता है.”

गणेश बाबू भी अब रसोई में आ गए थे.

“खाना पीना तो होता रहेगा अब औपचारिकताओं को छोड़िए और  सगाई की तैयारी कर लीजिए . मैं अपने परिवार की तरफ से अपने पुत्र आनन्द के लिए आप सभी से केतकी बिटिया का हाथ मांगता हूं.”

दोनों परिवारों से खचाखच भर चुके रसोईघर में  सब एक दूसरे का अभिनन्दन कर रहे थे.

शोभादेवी ईश्वर की माया पर मन ही मन ये सोच कर मुस्करा रही थी कि जिस रसोई घर ने आज इतना तनाव दिया उसी रसोई घर मे बिटिया का रिश्ता पक्का हो गया था.

सेतु

गोरखपुर

 

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