रक्त लाल ही होता है, – गोविन्द कुमार गुप्ता

रोशनलाल एक सम्पन्न व्यक्ति थे भरा पूरा परिवार 6 भाई 3 बहन व उनके बच्चे साथ ही प्रतिष्ठा में भी कोई कमी नही थी,

खेती के साथ ही व्यापार भी था जो उनके दो बेटे संजय व अजय देखते थे,

रोशनलाल खेती में ही व्यस्त रहते थे ,

सभी बहनो की शादी हो चुकी थी तो कोई चिंता नही थी क्योकि पिता जी के न रहने पर 2 बहनो और 4 भाइयो की शादी रोशनलाल ने ही की थी,

सब कुछ ठीक चल रहा था एक दिन कुछ मित्र आये तो चर्चा हुई कि एक सप्ताह की श्रीमद्भागवत कथा कराई जाये जिसमे किसी अच्छे कथावाचक को आमंत्रित किया जाये,

बृंदावन से महाराज सुकंठ जी को आमंत्रित किया गया प्रथम दिवसः से ही भीड़ बढ़ने लगी रोशनलाल खुश थे कि उनके द्वारा बहुत ही नेक काम हो रहा है लोग कुछ शिक्षा लेंगे ,

कथा का सातवां दिन था अचानक पंडाल की बल्ली गिर गई जो जिससे एक दर्जन लोग घायल हो गये 2 लोग अत्यधिक रक्त बहने के कारण हॉस्पिटल में थे जाति से वह गाँव में नीची जाति के थे,

कथावाचक भी हॉस्पिटल में ही थे डॉक्टर ने कहा कि हंमे 2 बोतल रक्त की आवश्यकत है जिससे हम इन्हें ठीक कर पाएंगे अन्यथा इनकी जान जा सकती है,सुनकर कथावाचक वहां से निकलने लगे तो डॉक्टर ने कहा महाराज यह तो आपकी ही कथा सुनने आये थे और दक्षिणा भी दी थी फिर आप रक्त देने के नाम पर क्यो जा रहे है यहां से,

तो कथावाचक बोले यह नीच जाति का है हम इसे रक्त नही दे सकते हमारी तपस्या भंग होगी,

वैसे भी रक्तदान से हमारे शरीर मे कमजोरी आती है एक कि जान बचाने के चक्कर मे हम अपनी जान क्यो खतरे में डाले,

डॉक्टर ने रक्तदान के फायदे बताये पर वह नही माने ओर चल दिये ,

इस बीच उन लोगो के परिवार के व्यक्ति या गये ऒर उंन्होने रक्त दे दिया जिससे धीरे धीरे वह दोनो ठीक हो गये बात आई गई हो गई कथा का समापन हुआ कथावाचक ने अपनी मुद्राएं ली और निकल लिये अपनी टोली लेकर,

अगले वर्ष पुनः कथा प्रारम्भ होनी थी तो वही कथावाचक लोगो की डिमांड पर बुलाये गये गांव से कुछ दूरी पर ही उनकी गाड़ी का एक्सीडेंट हो गया कथावाचक के सर में गहरी चोट आई रक्क्त लगातार वह रहा था ,

उन्हें हॉस्पिटल ले जाया गया जहां रक्क्त के लिये डिमांड की गई ,


तो दो लोग तैयार हो गये और रक्तदान किया जिससे कथावाचक की तवियत सुधरने लगी ,

डॉक्टर ने आकर हालचाल किया और कहा कैसा महसूस कर रहे है महोदय तो उन्होंने बोला अब ठीक हूँ कल से कथा कहनी है लगता है कह पाऊंगा ,

इस बीच वह दोनो जिन्होंने रक्क्त दान किया था रुम में आ गये तो डॉक्टर ने कथावाचक से पूंछा क्या आप इन्हें पहचानते हो यह वही है जिन्हें अपने रक्क्त नही दिया था और लोगो को बताया था कि इससे नुकसान होता है,

यह नीच जाति से है आपका अस्तित्व तो अब इनके रक्तदान से है तो कैसे कथा पढ़ सकते है,

जबकि यह दोनो स्वस्थ है और अच्छा महसूस कर रहे है रक्तदान करके,

 

कथावाचक शर्मिंदा हो गये और संकल्प लिया कि भविष्य में हम अपनी कथा में एक अध्याय रक्तदान का जोड़ेंगे जिससे लोगो मे जागरूकता फैले कि रक्तदान से कितना फायदा है,

आखिर हम सबका रक्क्त है तो लाल ही,,

 

लेखक

गोविन्द कुमार गुप्ता,

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