Post View 506 एक गाँव था। छोटा सा प्यारा सा। बैलों के गले में बजती घंटियाँ और हरवाहे की हुर्र हुर्र की ध्वनि से अरुणिम अंगड़ाई लेता गाँव। दिल के ऊपर कुर्ते की जेब से विपन्न और कुर्ते की जेब के नीचे, दिल से सम्पन्न गाँव। फटी कमीज के दोनों कौने पकड़कर काले रंग की … Continue reading राहजन – रवीन्द्र कान्त त्यागी
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