प्यास लगने पर कुआं नहीं खोदा जाता – पूर्णिमा सोनी : Moral stories in hindi

कितना अच्छा लड़का मिल रहा है!.. मौसी ने बताया है .. कितनी अच्छी मां हैं लड़के की, कितने प्यार से बात कर रही थीं.. अच्छे से रखेंगी हमारी वर्तिका को….  भई हमें तो पसंद है यह रिश्ता पसंद है.. मैं तो कहती हूं जी, हमें फटाफट शादी की तैयारी करनी चाहिए..

लेकिन मां,मेरा मास्टर्स करने का मन था… मैंने पता भी कर लिया था.. वर्तिका ने डरते हुए मां से कहा.

अब हमें नहीं कराना है, ये मास्टर्स – वास्टर्स.. पता है कितनी फीस लगेगी?… फिर शादी ब्याह में कम पैसा लगेगा क्या?, ये ना भूल कि उसके बाद तेरी दो छोटी जुड़वा बहनें भी हैं,मीना जी ने कहा

क्या करती वर्तिका?

यह सच है कि उसके बाद जुड़वां बहनें हैं.. फिर उससे छोटा भाई.. अभिमन्यु

मगर पापा का बिजनेस तो अच्छा चल रहा है .. अभी पापा ने एक नई प्रापर्टी भी ख़रीदी है.. तो मेरी पढ़ाई की फीस कितनी आ जाएगी?

मगर वर्तिका की और पढ़ाई की ललक रह ही गई… जल्दी ही वो ब्याह कर ससुराल भेज दी गई।

अब खुशी खुशी अपनी गृहस्थी संभाले और  रम जाएगी धीरे धीरे

और क्या करना है?… माता पिता निश्चिंत थे.. सुकून से आगे की जिंदगी बीतेगी अब

इस कहानी को भी पढ़ें: 

समझौता ज़िन्दगी से – प्रेम बजाज

 

मगर एक बीमारी ने असमय ही वर्तिका के पति को छीन लिया।

पूरा परिवार सदमें में आ गया।

वर्तिका के ससुराल वाले उसे संभालने के बजाए उसकी जिंदगी नरक बनाने पर तुले थे।…. सारे घर का काम उसके सिर पर लाद कर उसको तानों की बौछार के साथ काम करवाते थे।

किसी तरह अपने आप को संभाल कर वर्तिका को ससुराल से वापस ला कर उसकी पढ़ाई फिर से शुरू कराई गई।

छोटी दोनों बेटियों का भी जी जान से साथ दिया, उन्हें पैरों  पर खड़ा हो जाने में!

  कभी एक बेटी का एडमिशन कराने के लिए एक शहर में जाना पड़ता तो कभी दूसरी के लिए कालेज देखने के लिए कहीं और जाना पड़ता… सालों की मेहनत के  बाद  कुछ मामला पटरी पर आया।

वर्तिका के आफिस का एक लड़का उसे पसंद आया तो उसका फिर से विवाह करा दिया!

दोनों छोटे बेटियां भी अच्छी जाब पर लग गई

फिर एक की शादी उसके पापा के मित्र के बेटे से तो दूसरे की सहपाठी से हो गई।

मेरी तीनों बेटियां अपने पैरों पर खड़ी हो गई हैं, कितना संघर्ष रहा जिंदगी में.. अब तो चाहे जो भी उतार चढ़ाव आए, सबसे पहले अपनी नौकरी नहीं छोड़ना है.. फिर माता पिता भी कितने दिन के साथी हैं?… जब हम ना रहें तो हमारी बेटियां मजबूत, आत्मनिर्भर रहें…

जो मेरी ख्वाहिश थी वो मैंने पूरी की… हमारी बेटियों को किसी के समक्ष झुकने की आवश्यकता नहीं है!!

मीना जी पड़ोस में कीर्तन में अपनी सहेलियों से बात कर रही थीं।

बिल्कुल सच है भाभी, जिंदगी ने बहुत सबक सिखाए.. अब तो बस बहू लाने का समय हो गया

इस कहानी को भी पढ़ें: 

” मजबूरी बनाम समझौता ” – अनिता गुप्ता

हां,सच है ,बेटे निलय ने पापा के साथ बिजनेस संभाल लिया है.. बस जल्दी ही खुशखबरी सुनाऊंगी

और कुछ दिनों बाद प्यारी सी बहू मान्या घर में आ गई

रिसेप्शन पार्टी भी खूब अच्छे से हुई…

इतनी समझदार और विपरीत परिस्थितियों की आंच में तपी सास,ननद पा कर बहू भी निहाल थी

उन्होंने अपनी बेटियों को अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए जो प्रयास किए थे, उससे दुनिया परिचित थी।.. बहू अच्छा अच्छा खाना बना कर खिला रही है…. अब चैन से आराम करने के दिन आ गए..

 अचानक एक दिन..

अरे बहू , ये तुम्हारा भाई अचानक कैसे आया है?

वो मम्मी जी, मान्या का एम बी ए, कंप्लीट हो गया था, उसने एक कंपनी में अप्लाई किया था.. बहुत अच्छी सैलरी तो नहीं देंगे, मगर कहीं से शुरुआत तो करनी ही होगी.. बहू के भाई ने कहा.. जीजा जी के पास समय नहीं होगा तो मैं साथ ले जाकर ज्वाइन करा दूंगा

दिमाग ख़राब हो गया है तुम्हारा?… घर में चार मेहमानों का आना जाना लगा रहता है,  इतना बड़ा बिजनेस है हमारा.. जरूरत क्या है?.. कौन संभालेगा सब?…,मैने जिंदगी भर संघर्ष किया,अब बेटे के ब्याह के बाद भी चैन से ना बैठूं?.. इसका कैरियर बनवाने के लिए भागती फिरूं?.. खबरदार जो मुझसे आगे से इस बारे में बात की...

थोड़ी देर अनकहा सन्नाटा छाया रहा

मान्या भीतर जा चुकी थी

मीना जी खुश थी… एक ही बार में तीर निशाने पर लगा था… अब  मुझसे ऐसी कोई उम्मीद ना करेंगी… मैंने पर फैलाने से पहले ही  कतर दिए

उसका भाई सकपका खड़ा था.. ना उसे कोई बैठने को कहा रहा था.. बहन भी ( शायद) सास के दबंग स्वरूप से डर गई थी।

मान्या भीतर से निकली… उसके हाथ में उसका बैग था।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

कन्या-पूजन – डाॅ संजु झा

मम्मी जी ज्वाइन करने तो जाना ही होगा, वरना मैं बहुत कुछ गंवा बैठूंगी… मेरे घर वालों ने आपसे साफ़ साफ़ बात नहीं किया था कि मुझे भी अपना कैरियर बनाना ही है, क्योंकि समाज में आपकी छवि अपनी बेटियों को मजबूती  से खड़ा करने वाली मां की है.. इसलिए यह जरूरी नहीं लगा… मैं नहीं चाहती कि  वर्तिका दीदी की तरह मुसीबत आने पर ही अपने पैरों  पर खड़े होने की सोचा जाए

कैरियर तो खुशी खुशी बनाने वाली चीज़ है…. आप भी साथ देती तो और अच्छा लगता.. मैंने अभि ( पति) को बता दिया है, कुछ समय बाद इसी शहर में काम ढूंढेंगे,तब तक अभि मुझे हर तरह से सपोर्ट करेंगे…. अभी मुझे एक्सपीरियंस लेना होगा

आपने तो अपनी बेटियों के साथ बहुत सहयोग किया है… मन करे तो इस बहू का भी साथ निभाइएगा….

मान्या अपनी सासू मां का पैर छूकर निकल चुकी थी….. अपने मन की दुनिया.. अपने सपनों का संसार रचने.. अपनी ख्वाहिशें पूरी करने ,

आखिर उसे भी तो तीन मजबूत आत्मनिर्भर ननदों की भाभी कहलाना था…. वो भी पूरे आत्मसम्मान के साथ!! आखिर

प्यास लगने पर कुआं नहीं खोदा जाता है

वरना तो आप ज़रूरत पड़ने पर प्यासे मर जाओगे

उसकी तैयारी पहले से करनी पड़ती है

 तथाकथित मार्डन होने का दंभ भरने वाले परिवार में ऐसा होते देखा है। सिर्फ बाहरी परिधान, रहन सहन आपको मार्डन नहीं बनाता वरन् सुलझा दृष्टिकोण, बहू बेटी दोनों की जरूरतों को एक समान समझने वाला इंसान प्रगतिशील सोच का कहलाता है। आखिर किसी के घर की बेटी आपकी बहू है और आपकी बेटी किसी की बहू।

 हमें सभी को एकसमान मजबूत बनाने, आत्मनिर्भर बनाने  में सहयोग करना चाहिए… और इसमें किसी किस्म के तकरार की आवश्यकता की गुंजाइश भी नहीं होनी चाहिए।

 बहुतों को यह कहानी अपनी सी लगेगी तो  बहुतों को किसी पर बीती

लिखने को तो और भी बहुत कुछ लिख सकती हूं.. बस अब आपके विचारों  को भी कमेंट के  माध्यम से जानना चाहूंगी

पूर्णिमा सोनी

 स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित

# तकरार, कहानी प्रतियोगिता, शीर्षक -+ प्यास लगने पर कुआं नहीं खोदा जाता..

1 thought on “प्यास लगने पर कुआं नहीं खोदा जाता – पूर्णिमा सोनी : Moral stories in hindi”

  1. aapki lekhni me jaadu hai, issiliye betiya platform me aapki kahani ka hamesha intezar rahta hai

Comments are closed.

error: Content is Copyright protected !!