प्यारा सा झूठ – भगवती सक्सेना गौड़ : Moral Stories in Hindi

रवीना बिस्तर पर निढाल पड़ी थी। उसकी तबियत कुछ खराब सी लग रही थी। वह चार कमरों के अपने छोटे से घर में अकेली रहती थी। घर का काम करने वाली मेड और कुक अपनी-अपनी शिफ्ट पूरी करके लौट जाते थे। उसका एकमात्र सहारा था उसका भाई, जो कुछ दूर एक छोटे से कस्बे में रहता था।

रवीना के दो बेटे थे, जो दिल्ली और पुणे में अपने परिवार के साथ रहते थे। ये दोनों अपने परिवार के साथ दूर-दूर रहते हुए कभी-कभी अपनी मां से मिलने आते थे, लेकिन अब रवीना की तबियत बहुत ज्यादा खराब हो गई थी, तो उसके भाई ने फैसला किया कि अब उसे बच्चों को फोन करके बुलाना चाहिए।

उसने दोनों बेटों को फोन किया और कहा, “तुमलोग आ जाओ, तुम्हारी मां की तबियत बहुत खराब है। वह तुमसे मिलना चाहती है, और अब ज्यादा वक्त नहीं है। तुम्हारे आने से पहले क्या पता कि यमराज को मौका मिल जाए।”

यह सुनकर दोनों बेटे चिंतित हो गए और बिना वक्त गंवाए उन्होंने अपनी पत्नियों और बच्चों को साथ लेकर अपनी मां के पास आने का फैसला किया। दो दिनों के अंदर, दोनों बेटे अपने परिवार के साथ रवीना के पास पहुंच गए। बड़े बेटे ने तो पहले ही कह दिया था, “अब आप अकेले नहीं रहेंगे, हम आपको कहीं नहीं जाने देंगे। आप हमारे साथ चलिए, आपकी बहुत चिंता होती है।” छोटे बेटे का भी यही कहना था कि वह अपनी मां को अकेला नहीं छोड़ेंगे।

लेकिन रवीना ने अपने बेटों की बातों का कोई जवाब नहीं दिया। वह धीरे-धीरे बिस्तर से उठी और बोली, “नहीं, मैं कहीं नहीं जाऊंगी। इसी घर में दुल्हन बनकर आई थी, और अब भी यहां उनके होने का आभास मुझे नजर आता है। यह घर मेरे लिए बहुत खास है।” यह सुनकर बेटे दुखी हो गए, लेकिन रवीना के फैसले को उन्होंने सम्मान दिया। उन्होंने इस समय को ज्यादा तकलीफ देने की बजाय यह तय किया कि वे उसकी देखभाल करेंगे।

इस कहानी को भी पढ़ें:

मेरी बहन – एम.पी.सिंह : Moral Stories in Hindi

रवीना की तबियत रातभर कुछ ठीक नहीं रही, लेकिन अगले दिन सुबह परिवार के सभी सदस्य आराम से उठे। रवीना की बहू ने देखा कि घर में सब कुछ ठीक-ठाक है। रवीना का कमरा भी साफ-सुथरा था, और टेबल पर नाश्ते के लिए कई स्वादिष्ट डिशेज रखी हुई थीं। मामा भी आ चुके थे,

जो हमेशा रवीना के साथ रहते थे। कुक तो नहीं आई थी, लेकिन टेबल पूरी तरह सजी हुई थी, और रवीना अपनी जगह पर खड़ी होकर एकदम फिट और स्मार्ट नजर आ रही थी। टेबल पर दही बड़े, उरद दाल कचौड़ी, बेसन के लड्डू, हलवा और छोले, सब कुछ एक कैसरोल में रखा हुआ था, जो आकर्षक लग रहा था। यह देखकर बहू आश्चर्यचकित हो गई और उसने सभी को जल्दी से बुलाया।

बड़े बेटे ने चौंकते हुए पूछा, “ये सब किसने बनाया?”

रवीना के मामा ने जवाब दिया, “बेटा, कभी-कभी तुम लोग सारे काम छोड़कर अपनी मां के पास आ जाया करो। तुम लोग आते नहीं हो, तो दीदी ने मुझसे कहा था कि इस तरह तुम सभी को बुलाया जाए।”

रवीना ने आंसू पोछते हुए कहा, “देखो, उम्र तो सचमुच हो ही रही है, और मेरी स्थिति ऐसी हो गई है कि मुझे लगने लगा है कि मुझे पहले किसी से प्यार और देखभाल की आवश्यकता थी। अब जब मेरी हालत इतनी खराब हो गई है, तो तुम सब मुझसे मिलने नहीं आए, ये मुझे बहुत खलता था। मुझे लगता है,

कि जब मेरा समय आएगा, तब तुम लोग मुझे देख नहीं पाओगे। इसलिए मैंने सोचा कि क्यों न मैं झूठ बोलकर अपनी इच्छा पूरी कर लूं। माफ करना, बेटों, मैंने कुक की मदद से यह सब बना लिया था। अब तुम सब खाओ, मुझे खुशी होगी।”

बेटे और बहू थोड़े हैरान हो गए, लेकिन रवीना के इस कदम को उन्होंने समझा। वह जानते थे कि रवीना अपनी भावनाओं को साझा करने में बहुत संकोच करती थी, लेकिन आज उसने अपनी मां के रूप में अपने दिल की बात कही थी। रवीना की इच्छा थी कि उसकी आखिरी समय में वह खुश रहे, और इसी खुशी के लिए उसने यह सारा कुछ किया था।

इस घटना के बाद परिवार ने सोचा कि वे अपनी मां के साथ समय बिताने के दौरान उसे जितना प्यार और स्नेह दे सकते थे, उतना दें। परिवार के सभी सदस्य उस दिन रवीना के साथ बैठकर नाश्ता करते हुए उसकी कहानियाँ सुन रहे थे, और वह भी बहुत खुश थी। उसका दिल उन यादों से भर गया था, जो वह अपने पति के साथ इस घर में बिताए थे। उसने उन यादों को अपने बच्चों और पोते-पोतियों के साथ साझा किया।

इस कहानी को भी पढ़ें:

नेकराम की नई गुल्लक – नेकराम Moral Stories in Hindi

बड़े बेटे ने रवीना से कहा, “माँ, आप कभी भी हमारे पास आ सकती हैं, हम सब आपके साथ हैं। लेकिन हम भी समझते हैं कि यह घर आपके लिए कितनी यादों से भरा हुआ है। आपको जो भी ठीक लगे, आप वही करें। हम सब आपके फैसले का सम्मान करते हैं।”

छोटे बेटे ने भी कहा, “आपके जाने के बाद हम आपको ज्यादा नहीं देख पाएंगे, यह हमें बहुत दुख देगा, लेकिन हम चाहते हैं कि आप पूरी तरह से खुश रहें, चाहे आप यहां रहें या हमारे पास।”

रवीना के मन में थोड़ी राहत आई, और उसने अपने बेटों के चेहरे पर प्यार और संजीवनी की झलक देखी। वह जानती थी कि परिवार के बिना वह अकेली हो सकती है, लेकिन उसके पास जो यादें और प्यार था, वह उसे कभी अकेला महसूस नहीं होने देगा।

मूल रचना 

भगवती सक्सेना गौड़

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!