प्यार से समस्या का समाधान – लतिका पल्लवी : Moral Stories in Hindi

सर्दियों का दिन था। रमा जी और रविकांत जी लॉन मे बैठकर धुप सकते हुए आपस मे बाते कर रहे थे। दोपहर के ढाई बज रहा था। धुप भी अब लॉन से जाने लगा था। रविकांत जी को जोरो की भूख लगी थी। सुबह से उन्होंने सिर्फ फल खाया था।जब भूख बर्दास्त नहीं हुआ तो उन्होंने रमा जी से पूछा – ” बहू कहाँ गईं है? आजकल देख रहा हूँ कि बहू रोज ही बहुत देर तक बाहर रह रही है। आज तो सुबह से ही गईं हुई है। नाश्ता भी नहीं बना। अब खाने का वक़्त भी बीत रहा है परन्तु बहू का कही अता पता नहीं है।

आखिर बहू गईं कहाँ है?  मुझे क्या पता?  रमा जी ने बहुत रुखा सा जबाब दिया। यह भला क्या जबाब हुआ? जा रही थी तो तुमने देखा नहीं था? जल्दी मे बताना भूल गईं होंगी तो तुम्हे ही पूछ लेना चाहिए था कि कहाँ जा रही हो? कब तक आओगी?  मुझे क्या समझ आता है जो मै पुछू? रमा जी ने फिर से रुखा सा  जबाब दें दिया। क्या समझ नहीं आता? बहू बताती कि कहाँ जा रही है तो तुम्हे समझ नहीं आता? रविकांत जी ने फिर से पूछा। ना जी मुझे कहाँ समझ आता? मै ठहरी निपढ़ बूढ़ी,

मै क्या जानू आजकल के बच्चे कहाँ जाते है, क्या करते है। किसने कहाँ कि तुम निपढ़ हो? हमारे जमाने मे बेटियों को जितना पढ़ाया जाता था उतना तो पढ़ी ही हो, और इसमें बुढ़ापे की बात कहाँ से  आ गईं? बूढ़े लोग मुर्ख होते है जो उन्हें यह पता नहीं चले कि कौन क्या कर रहा है या कहाँ जा रहा है?  रविकांत जी ने पूछा। अब व्यवसायिक शिक्षा नहीं प्राप्त की हूँ तो आज के जमाने के हिसाब से अनपढ़ ही हूँ रमा जी ने दुखी आवाज मे कहा। आज क्या हो गया है तुम्हे अनाप – शनाप बोल रही हो।

लग रहा है कि भूख माथा पर चढ़ गया है माहौल को हल्का करने के लिए रविकांत जी ने हँसते  हुए बोला। रविकांत जी को समझ आ गया था कि आज बहू ने रमा जी से ऐसा कुछ कह दिया है जो उन्हें बहुत बुरा लग गया है।  हाँ, सही सोचा आपने भूख तो लगी ही है. आपको भी तो लगी ही होंगी। चिंटू का भी स्कूल से आने का वक़्त  हो गया है । आप जाकर उसे ले आइये. तब तक मै भी रसोई मे जाकर देखती हूँ और कुछ बनाकर लाती हूँ. ऐसा कह कर रमा जी घर के अंदर जाने लगी।

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रविकांत जी ने फिर से हँसते हुए बोला, अब न सही बात बोली। जाओ भाई जाओ और जल्दी से कुछ बनाकर ले आओ और उन लोगो को बता दो जो तुम्हे बूढ़ी कहते है कि अभी तो मै जवाँ हूँ। माहौल तो हल्का हो गया, परन्तु  रविकांत जी के मन मे अनसुलझा सवाल रह गया कि आखिर बहू ने ऐसा क्या कह दिया है जो रमा जी का मन इतना ज्यादा दुख गया है। उससे भी बड़ा सवाल यह था कि बहू ने ऐसा कुछ कहा ही क्यों जिससे सास का मन दुखी हो। बहू का स्वभाव बहुत ही अच्छा था।  रमा जी भी बहू को प्यार करती थी।

मान देती थी। उसके दुख से दुखी होती थी। बहू को कभी भी किसी बात के लिए ताना उलाहना नहीं देती थी। सास बहू मे अच्छा तालमेल भी था। उन्हें कुछ समझ नहीं रहा था कि इस हालत मे उन्हें क्या करना चाहिए जिससे सास बहू के रिश्तो मे खटास न आए। उन्हें सीधे सीधे बहू से पूछना भी सही नहीं लग रहा था, बेटे से कहने पर ऐसा लगता जैसे बेटे से बहू की शिकायत लगा रहे हो। रमा जी से पूछकर उन्हें फिर से दुखी नहीं करना चाहते थे। यही सब सोचते सोचते  वे बस स्टेण्ड पर पहुंच गए।थोड़ी ही देर मे बस आ गईं

और वे अपने पोते चिंटू को लेकर घर आ गए। पोता रोज की तरह रास्ते मे अपने स्कूल के किस्से कहानियों को सुना रहा था, परन्तु आज उनका मन कही और ही था।  दादाजी को अपनी बातो पर ध्यान नहीं देते देखकर चिंटू रूठते हुए बोला बाबा आज से मै अपने स्कूल की बात आपको नहीं बताऊंगा। घर पहुंचने पर भी वह गुस्सा ही था। दादी ने कहा जाने दो आज से अपनी बाते सिर्फ मुझे और अपनी माँ को ही बताना। अभी तुम पहले कपड़े बदल लो और फिर खाना खा लो मै अभी तुम्हे खाना देती हूँ।

फिर हम दादी पोता बात करेंगे। ठीक है?  रमा जी ने कहा।दादी आप खाना क्यों दोगी माँ आज भी घूमने गईं है? क्या अब रोज माँ घूमने जाएगी?चिंटू ने ठूनकते  हुए दादी से पूछा। नहीं बेटा, माँ घूमने नहीं गईं है वह काम से बाहर गईं है। दादी के यह कहते ही पोते ने कहा – परन्तु माँ तो पहले कभी अकेले बाहर नहीं जाती थी। हाँ, सही है, पर अभी तुम्हारी माँ काम करती है। इसलिए अकेले बाहर जाती है। आप कहना चाहती है जैसे पापा काम करने जाते है वैसे ही माँ भी जाती है? हाँ। उस समय दादी से चिंटू ने आगे कुछ भी नहीं पूछा।

खाना खाकर दादाजी के साथ पार्क मे चला गया, परन्तु शाम को जैसे ही उसकी माँ आई उसने वैसे ही कहा -माँ  आप काम करने क्यों जाती हो। माँ ने कहा पैसे मिलते है। पैसो का क्या काम है आप काम मत करो। क्यों नहीं करू। क्योंकि मुझे आपके हाथो से खाना खाना है दादी के हाथो से नहीं। अच्छा अब समझी यह दादी की लगाई हुई आग है। एक दिन खाना बनाना पड़ गया तो मेरे बेटे को मेरे खिलाफ भड़काने लगी। माँ दादी को क्यों बोल रही हो? दादी ने कुछ नही कहा है। मुझे आपके हाथो से खाना खाना पसंद है। लेकिन बेटे के यह कहने पर भी वह नहीं मानी

और सास को सुना सुना कर कहने लगी लोगो का क्या है उन्हें तो घर बैठे सब मिल जाता है पैसे कमाने मे कितनी मेहनत लगती है। व्यवसाय को बढ़ाने के लिए दस लोगो मे उठना बैठना पड़ता है तब जाकर कुछ आमदनी होती है उन्हें  यह क्या पता।उन्हें तो बस घर मे खाना बनाने वाली एक नौकरानी चाहिए। बहुत दिनों तक मैंने यह सब किया पर अब नहीं करूंगी।किसी और को भी काम करने   की जरूरत नहीं है, मै इतना कमा लेती हूँ कि घर के काम के लिए एक नौकरानी रख सकू।

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कल से घर के सारे काम नौकरानी करेगी। और जाने क्या क्या बेटे के जरिये सास को सुनाती रही। जब बर्दास्त से बाहर हो गया तो रविकांत जी  कहते हुए बाहर निकलने लगे,लगता है मुझे अभी बहू की खबर लेनी होंगी। रमा जी ने रोका आपका बहू को कुछ कहना सही नहीं होगा। आप शांत हो जाइये। रविकांत जी गुस्साते हुए बोले बहू पागल हो गईं है क्या? नहीं जी कमाने लगी है। कमाने से आदमी बदतमीजी हो जाता है दुनिया मे क्या यही सिर्फ कमा रही है। नहीं ऐसी 

बात नहीं है थोड़ा गलत दिशा मे ध्यान चला गया है। समय दो सब ठीक जाएगा। यह क्या बोल रही हो मै कुछ समझ नहीं पा रहा? ऐसा है जी कि हमारी बहुरानी घर मे सबसे बड़ी है। जब शादी करके आई तब उसके नौकरी नहीं करने से हमें कोई दिक्कत नहीं थी और उसे भी नौकरी करने का शौक नहीं था पर जब घर की और बहूए  नौकरी करने वाली आने लगी तो उसे अपना काम नहीं करना खलने लगा क्योंकि किसी भी शादी ब्याह मे  सभी इक्कठे होते तब सारी बहुए अपने काम की चर्चा करती थी

तब उसे बहुत अखरता था। अपनेआप मे कमतरी का एहसास होता था। कहती नहीं थी पर उसकी आँखो से साफ झलकता था। वह घर के फंक्शन मे भी जाने से कतराने लगी थी। यह क्यों बता रही हो मुझे पता है सब,बीच मे ही रविकांत जी ने टोका। इसका इसके व्यवहार से क्या मतलब। अब जब इसने देर से काम शुरू किया है तो उसे सभी को दिखाना है कि वह कितनी काबिल है इसलिए वह थोड़ा ज्यादा ही दिखावा  करने लगी है।उस पर भी काम के चक्कर मे बड़े बड़े घर की औरतो से मिलना जुलना होने लगा

तो वह भी उनकी तरह   बनने के चक्कर मे भूल गईं है कि हम मध्यमवर्गीय परिवार के है हमारे लिए परिवार ही सब कुछ होता है यह किटी पार्टी, रोज रोज का होटल मे घूमना, बिना मतलब खरीदारी करना आदि सब अमीरों के चोचले है यह दिखावे  कि जिंदगी हम नहीं जी सकते है। जब उसे इसका अहसास होगा वह  स्वयं ही सुधर जाएगी। कभी कभी मुझे भी बुरा लगता है, पर हमें थोड़ा धैर्य रखना  होगा। यह सब कहकर रमा जी ने रविकांत जी को तो शांत कर दिया, परन्तु उन्हें समझ मे नहीं आ रहा था कि चिंटू को कैसे समझाए।

यह बात अब यही नहीं रुकने वाली थी। वे तो घर के कलह की कोई बात रवीश को नहीं बताती है कि बेकार मे ही घर मे क्लेश होगा और घर का माहौल  खराब होगा पर चिंटू तो उसे बताएगा ही। ऐसा हुआ भी उनकी चिंता सही साबित हुई शाम को जैसे ही रवीश घर आया वैसे ही चिंटू ने  उससे सवाल कर दिया।पापा आप ऑफिस जाते है तो पैसे नहीं मिलते है? मिलते है बेटा पर तुम यह क्यों पूछ रहे हो  तुम्हे कुछ चाहिए? रवीश ने भी सवाल कर दिया। हाँ, चाहिए। बोलो क्या? माँ,सुनते ही रवीश चौक गया माँ क्या खरीदने की चीज है?

वैसे तुम्हारे पास माँ है ही फिर तुमने ऐसा क्यों कहा? पैसे कमाने के लिए माँ काम करने जाती है और मुझे दादाजी,दादी किसी को भी समय पर खाना नहीं देती है। इसलिए आप  माँ को पैसे दें दो और बोल दो की काम करने  नहीं जाए। बस हमें पहले की तरह अच्छा अच्छा खाना बना कर खिलाए।साथ ही उसने दिन की सारी घटना भी बता दी। यह सुनते ही रवीश को धक्का सा लगा। चिंटू अपनी बाते कहे जा रहा था,कर दोगे न पापा, माँ को पैसे दें दोगे न, पापा सुन रहे हो,कहते हुए झकझोरा।

हाँ, हाँ दें दूंगा। मन ही मन रवीश ने सोचा मुझे कुछ ऐसा करना होगा जिससे घर मे झगड़ा भी नहीं हो और  रनिता को अपनी गलती का अहसास भी हो जाए।उसकेआँखो के आगे जो पैसो का पर्दा पड़ा है उसे हटाना पड़ेगा। रात के खाने के बाद  चिंटू दादा – दादी के साथ  उनके कमरे मे सोने चला गया।रवीश भी अपने कमरे मे चला  गया। कुछ देर बाद रनिता भी रसोई का काम निबटाकर अपने कमरे मे आई ।  रवीश उसका इंतजार कर रहा था आते ही कहा तुम्हारा काम कैसा चल रहा है?

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बहुत ही अच्छा चल रहा है रनिता ने चहकते हुए कहा। अच्छा, बहुत खूब। जानते हो आजकल तो मुझे फुरसत ही नहीं मिलती है। बहुत ही ऑडर मिल रहा है।रोज किसी ना किसी किटी पार्टी मे ऑडर रहता ही है। अब तो मैने घर पर बनाकर भेजना बंद कर दिया है। जिसके यहाँ पार्टी होती है वही जाकर बना देती हूँ। सामने से जब लोग मेरे खाने की तारीफ़ करते है तो बड़ा मज़ा आता है। सभी कहते है अब तो मै भी अपने यहाँ के किटी पार्टी मे आपको ही बुलाऊंगी। आपका खाना बड़ा ही लाजबाब होता है।

किटी पार्टी मे बड़ा ही मज़ा आता है सभी खूब मस्ती करते है। जानते हो मैंने भी एक पार्टी ज्वाइन कर लिए है।रनिता अपनी ही रौ मे बोले जा रही थी।तभी रवीश ने कहा – अच्छा है माँ का सिखाया कुछ तो तुम्हारे काम आया। हाँ सही कह रहे हो। जब शादी हुई थी उस वक़्त तो तुम्हे  दाल  चावल भी बनाने नहीं आता था। आज इतने सारे व्यंजन बना लेती हो।मैंने कभी काम किया ही नहीं था। दो भाइयो मे इकलौती  बहन थी। माँ भाभी सबकी दुलारी तो मै क्यों काम करती। पापा को तो मेरा काम करना बिल्कुल ही पसंद नहीं था।

बहुत ही गर्व से रनिता ने कहा। हाँ, और इस लाड़ – दुलार मे तुमने ढंग से पढ़ाई भी नहीं की रवीश ने कहा। अब रनिता को कुछ अजीब सा लगा उसने रवीश की तरफ गौर से देखते हुए पूछा – कहना क्या है यह सारी बाते मुझे पता है फिर क्यों बता रहे हो। रवीश ने हँसते  हुए कहा यही कि जो तुम्हारे पापा ने दिखावे की सीख दी उसे तुमने अपने जीवन मे कितने अच्छे से  सीखा। उनकी बहुए काम करे तो ठीक दूसरे की बहू को काम सिखने नहीं दिया उन्होंने। यह 

 उनका प्यार  का दिखावा तुम्हे बिगाड़  रहा है , इसपर उन्होंने कभी विचार नहीं किया। तुम्हे कुछ भी नहीं आता था फिर भी मेरी माँ ने तुम्हे कभी कुछ नहीं कहा, बहुत ही धैर्य से तुम्हे सारे काम सिखाये, जब हाउसवाइफ होने के कारण उदास रहने लगी तो मुझसे कहकर तुम्हे खाना बनाने का कोर्स करवाया। ताकि तुम उन नए ढंग के व्यंजन भी बनाना सीख सको जो माँ को बनाने नहीं आती है।और आज तुम उन्ही से सीखे  हुए खाने को बना कर वाहवाही लूट रही हो, पैसे कमा रही हो और उन्ही  को सुना रही हो कि पैसे कितनी मेहनत से कमाई जाती है। 

प्यार से समझाने पर रनिता को अपनी गलती का अहसास होने लगा। उसने माफी मांगते हुए कहा बहुत ही अच्छे से तुमने मेरी गलती मुझे दिखा दिया। आज तो मैंने पीछे से उनकी बेइज्जती की है यदि तुम अहसास नहीं कराते तो कल को सामने से ही उन्हें कुछ कह देती, क्योंकि आजकल माँ जब भी मेरे बाहर जाते वक़्त पूछती है कि कहा जा रही हो तो मुझे बुरा लगता है। लगता है जैसे मुझ पर पाबंदी लगाना चाहती है। मै अपने  को साबित करने के चक्कर मे भूल गईं की उन्होंने ही मुझे इस मुकाम पर पहुंचाया है।

कल सुबह उठते ही माँ से माफी माँग लुंगी ओर अब दिखावे के चक्कर मे नहीं पडूँगी।  सुबह उसने माँ से माफी मांगते हुए कहा माँ मुझे माफ कर दीजिए। मुझे अपनी गलती का अहसास हो गया है अब मै कभी बदतमीजी से बात नहीं करूंगी और अब काम करना  भी बंद कर दूंगी। माँ ने प्यार से गले लगाते हुए बोला नहीं बेटी काम नहीं बंद करोगी। बस  घर परिवार को देखते हुए अपने शौक के लिए काम करोगी, किसी को दिखाने के लिए नहीं करोगी।                                                           

 

विषय – दिखावे की जिंदगी

लतिका पल्लवी

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