सोचो के झीलों का शहर हो उसमें अपना एक घर हो ..ये सुनने में जितना अच्छा लगता है। हक़ीक़त में झीलों का शहर सब उथल पुथल कर देता है । ये कहानी भी ऐसे ही झीलों के शहर की है ,जिसमें सब तैर कर पार जाना चाहते है ।वीर और आरोही दो नाम ,दो जान एक दूसरे से कोई वास्ता नहीं ! पर जब ये एक राह पे रूबरू होते हैं तो उनके जीवन में कई बदलाव आते हैं।
कश्मीर के छोटे से कस्बे से आए वीर ने दिल्ली के एक कॉलेज में हिंदी लिटरेचर कोर्स में एडमिशन लिया । उसके पिता जी बचपन में ही उन्हें छोड़ कहीं चले गये थे । तब से उसकी माँ ने ही उसको पिता और माँ दोनों का प्यार दे बड़ा किया। इसलिए उसके जीवन में माँ की एक ख़ास जगह थी । वीर मिज़ाज से सरल,शर्मिला स्वभाव होने के कारण अपने काम से ही काम रखता था ।आज उसका कॉलेज में पहला दिन था , तो वो थोड़ा नर्वस सकुचाते हुए …. अपना बैग थामे कोरिडोर में चले जा रहा था । तभी पीछे से एक लड़की भागती हुई आयी…..और उसे राजीव बोल सम्बोधित करने लगी !! तभी वीर ने कहा-“मैम आपको कोई ग़लतफहमी हुई है । मैं राजीव नही,वीर हूँ ! थोड़ी देर में वो लड़की उसे देख मुस्कुराने लगी । इससे पहले वो कुछ समझ पाता इतने में वो लड़की उसे सॉरी बोल कहने लगी कि “मेरे दोस्तों ने मुझ से शर्त लगायी थी ,कि तुम मुझे अपना नाम इतनी आसानी से नही बताओगे । पर तुमने तो मेरे कुछ कहने से पहले ही मुझे शर्त जीता दी “। तुम्हारा बहुत शुक्रिया बोल ! वो अपने दोस्तों से शर्त के पैसे लिए चली गयी । वीर अचंभित खड़ा सोचता रहा बताओ कैसे सीनियर है ???आज तो पहला ही दिन है और ये सब ! बच के रहना पड़ेगा इन सबसे !!
कुछ दिन बाद वो लड़की और उसके दोस्त वीर को फिर से कैंटीन में मिले । देखने पे वो बहुत निडर ,नए दौर,नयी सोच की मालिक लग रही थी । सब कैंटीन में जोर जोर से नारे लगा रहे थे । क्योंकि छात्र संघ के चुनाव की तैयारी चल रही थी । जब उनका चुनाव प्रचार का पर्चा देखा तो पता चला की, वो यहाँ अपने दोस्त विवेक ! जो चुनाव में खड़ा हुआ है , उसका समर्थन करने आयी हैं । तभी किसी ने मीठी सी धुन में उसका नाम आरोही पुकारा ! ! जिसे सुनते ही एक नया सा साज बजने लगा । जाते हुए जब वो वीर के पास से गुजरी तो उसके रोंगटे खड़े हो गए ।कॉलेज में चुनावों की सरगर्मी चल रही थी । तो कक्षाएँ भी ख़ाली ही रहती या कुछ बच्चों की ही मौजूदगी होती । एक दिन विवेक वीर के पास आया और उससे प्रार्थना करने लगा कि वो हिंदी भाषा में एक भाषण लिखें और उनकी पार्टी की मदद करे ।
वीर- आप क्या कह रहे हैं ??? मैं आपकी पार्टी के लिए भाषण…..
हाँ क्यों नहीं ?? मुझे पता चला है ! कि तुम हिंदी भाषा के अच्छे ज्ञाता हो !! देखो यार हमारी तो हिन्दी अच्छी नहीं है अगर हम लिखने बैठे तो कुछ का कुछ लिख देगें । इसलिए तुम से निवेदन कर रहे है…. वीर उन्हें मना नही कर पाया । जैसे-जैसे चुनाव प्रचार होता रहा वीर की भी सबसे अच्छी दोस्ती हो गयी । उसके भाषण , उसकी कर्मठता से सब बहुत प्रभावित हुए । वीर भी धीरें- धीरें ना चाहते हुए आरोही की तरफ़ आकर्षित होने लगा ।
कुछ दिनों बाद चुनाव नतीज़े सामने आये और विवेक चुनाव जीत गया । विवेक ने कॉलेज के बाहर एक पार्टी का आयोजन किया । जिसमें सभी छात्र – छात्राओं को बुलाया गया । वहाँ वीर आरोही का बेचैनी से इंतज़ार कर रहा था ।लेकिन आरोही किसी कारण वश आ नहीं पाई । तब वीर को एहसास हुआ कि इन कुछ दिनों में ही आरोही उसके लिए कितनी खास हो गयी थी । वो ये एहसास आरोही को बताने के लिए जाना चाहता था , लेकिन उसके दोस्त ने उसे रोका और कहा “ये उचित समय नही है !अभी तुम एक दूसरे को जानते ही कितना हों “।अपने दोस्त की बात सुन उसे भी एहसास हुआ कि कहीं वो जल्दबाज़ी के चक्कर में सब ख़राब ना कर दे ।
ऐसे ही समय का पहिया चलता रहा । वीर ने अपनी कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया । सब दोस्तों के कहने पर वीर ने एक छोटी सी चाय समोसा पार्टी रखी ।जिसमें उसके सभी दोस्त शामिल थे ,और उसे मुबारक बाद दे रहे
थे ।
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प्यार का मौसम ( भाग 2 )
प्यार का मौसम (भाग 2 )- स्नेह ज्योति : Moral Stories in Hindi
स्नेह ज्योति