“वृंदा….!!”
“छनाक…।” एक आवाज हुई और उसकी हथेली लहुलुहान हो गई।दर्द की लहर नसों में दौड़ गई।वह यथार्थ में लौट आया।हाथ में पकड़ा शराब का गिलास उसकी ऊंगलियों के दबाव से चकनाचूर हो चुका था।बिल्कुल उसके दिल की तरह।
वह भी तो रीस रहा था… रो रहा था….
वृंदा की फोटू को सीने से लगाए वह बिस्तर पर लेट गया।
वृंदा की याद उसके दिल को खुरचने लगी।
“वृंदा ….”पूरब ने वृंदा के बालों को हटाकर हौले से कहा।
“हुउं …।” आँखों को किताब में गडाए ही वृंदा ने जवाब दिया।
“तुम्हारी नाक…नाक !!..चलो नहीं बताता।”
“क्या हुआ मेरी नाक को!!बताओ पूरब?”आँखों को खोलकर वह अपनी नाक को पकड़ते हुए बोली।
“रहने दो..!” छोडो।पूरब ने वृंदा को छेड़ते हुए कहा।
“बताओ…!” वृंदा ठुनकते हुए बोली।शांत लाइब्रेरी में उसकी आवाज ने सबका ध्यान खींच लिया।
“शश्श!” लाइब्रेरियन ने इशारे से उसे चुप कराया।
वृंदा ने गुस्से से पूरब को देखा और बाहर निकल गई।
“सुनो ना….वृंदा…।”
“नहीं सुनना मुझे।”
“अरे लेकिन तुम्हारी नाक!!” पूरब ने जोर से कहा।
“रोक तू पूरब के बच्चे!! लाइब्रेरी से बाहर आना पड़ा वो भी तेरे कारण।” वृंदा उसके करीब आई और किताब सिर पर दे मारी।
“मेरी नाक बहुत अच्छी है..।हूँऊ..!”
“और क्या करता!लाइब्रेरी भी कोई जगह है यार मिलने की?” वह बोला
“हाँ…बहुत अच्छी जगह है लाइब्रेरी।तुम जैसे शैतानों को कंट्रोल करने के लिए और फिर मेरे दिमाग की खुराक है किताबों की खूशबू।” वृंदा बोली।
“हाँ..हो तो किताबी कीड़ा… मोटी कहीं की।” बुरी सी शक्ल बनाकर पूरब ने कहा।
उसकी हरकत देख वृंदा हँसने लगती है।
दोनों हँसने लगते हैं।
“हैलो वृंदा!”किसी ने पीछे से पुकारा।
सामने अपने दोस्त आकाश को खड़ा देख वृंदा खुश हो जाती है।लेकिन पूरब का चेहरा उतर जाता है।
“आकाश…!यहाँ… कब आए?”वृंदा ने चहकते हुए पूछा।
“दो महीने हो गए।इधर से गुजर रहा था तो तुम पर नजर पड़ी।पहले तो पहचान ही नहीं पाया।कितना बदल गई हो तुम!बहुत सुंदर लग रही हो।”आकाश ने मुस्कुरा कर कहा।
“थैंक्यू।और बताओ कोई गर्लफ्रैंड बनी की नहीं?”वृंदा ने पूछा।
“कोई तुमसी मिली ही नहीं।”आकाश ने हँसते हुए कहा।
“रहने दो सब जानती हूँ।”इतना कह वृंदा हँस पड़ी।उसकी हँसी पूरब के दिल में नश्तर सी चुभ गई।वह चुपचाप वहाँ से चल दिया।
अभी कुछ कदम ही चला था कि पीछे से वृंदा ने उसे पुकारा,
“पूरब….रूको.. ..।”वह तेज कदमों से उसके पास आई।
“छोडकर क्यों आ गए?वह बोली।
“वहाँ मेरी जरूरत नहीं थी।”पूरब ने धीरे से कहा और चलने लगा।
“क्या मतलब पूरब?”उसकी.बाँह पकड़कर वृंदा ने पूछा।
“कोई मतलब नहीं।तुम्हारे बॉयफ्रेंड के सामने मुझे नहीं होना चाहिए था।” वह चिढ़ता हुआ बोला।
“पागल हो तुम?वह सिर्फ मेरा दोस्त है एमबीए में मेरे साथ पढ़ा है वो और कुछ नहीं है!”वह बोली।
“दोस्त के साथ ऐसे कौन हँसता है!” पूरब ने कहा।
“क्यों तुम नहीं हँसते?” वह गुस्से से बोली।
“मैं लड़का हूँ…..मतलब.. मुझसे बर्दाश्त नहीं की तुम..।”
“की मैं?और तुम लड़के हो तो !”
“कुछ नहीं…..बस मुझे नहीं पसंद तुम किसी के साथ ऐसे फ्रेंडली बिहेव करो..यूँ हँसो।”
“ओहहहह समझ गई…..तुम्हारे साथ हँसती हूँ तो दिक्कत नहीं… क्यों?”
“वो बात नहीं है……तुम मेरी बचपन की दोस्त हो और फिर…मैं..।”कहते कहते वह रूक गया।
“और क्या पूरब?”वह बोली।
“मैं तुमसे प्रेम करता हूँ।”पूरब के मुँह से अचानक यह सुन वृंदा चौंक गयी।
“प्रेम…….!”
“हाँ प्रेम,इस अथाह सागर की तरह गहन।”पूरब ने बाँहों को फैलाकर कहा।
“सागर की तरह!मतलब खारा।”हँसते हुए वृंदा ने कहा।
“उसके खारेपन को न देखो!उसकी गहराई को देखो।वह बोला।
“प्रेम समझते हो तुम पूरब?”
“न समझता तो महसूस कैसे करता?”
“तो बताओ क्या है प्रेम?”अपनी हथेलियों पर ठोडी टिका वह पूरब को देखने लगी।
“तुम्हारी मुस्कान है प्रेम।तुम्हारे साथ जीने की इच्छा है प्रेम।तुम्हें खुद में और खुद को तुम में समाहित करना है प्रेम।”
‘तुम्हें सोचना, तुम्हें गुनगुनाना है प्रेम।तुम्हारे ऊपर मेरा हक प्रेम है।तुम्हारी चिंता प्रेम है।”पूरब ने वृंदा की आँखों में देखकर कहा।
“यह तो आदत है पूरब!प्रेम नही ।”वह बोली।
“प्रेम तो उस बारिश की बूंद की तरह है जो फूलों को हँसाने के लिए खुद मिट्टी में मिल जाती हैं किन्तु अस्तित्व नहीं खोती।प्रेम तो वह नदी है जो अपनी मिठास समुद्र को दे देती है और समुद्र को खुद के होने का एहसास कराती है।”
“नदियों को सहारा देता है सागर तभी तो वह उसमें समा जाती हैं।”पूरब बोला।
“नहीं पूरब,सागर नदियों को सहारा नही देता बल्कि नदियां सागर को जीवन देती हैं खुद को नष्ट करके।”
“तो यह जीवन मुझे दे दो ना!घुलमिल जाओ मुझमें।”वह अधीरता से बोला।
“घुल जाऊं यानि अपना अस्तित्व मिटा कर?क्या तुम सच में मुझसे प्रेम करते हो?”
“हाँ मैं तुम्हें अपनी जान की तरह प्रेम करता हूं।तुम्हें विश्वास क्यों नहीं हो रहा?”पूरब ने कहा।
“क्योंकि तुम प्रेम में मुझे पूरब बनाने की इच्छा रखते हो वृंदा नहीं।जिस दिन तुममें वृंदा बनने की इच्छा जागेगी उस दिन तुम्हारे प्रेम पर विश्वास कर लूंगी।
“यह क्या कह रही हो वृंदा!तुम्हें याद है तुमने मुझसे कहा था कि तुम मुझसे प्रेम करती हो.और मुझसे ही शादी करोगी!”वह अधीरता से बोला।
“तब मैं बच्ची थी पूरब….लेकिन अब….।”
“लेकिन अब कोई और आ गया है ना?पूरब ने चिढ़ते हुए कहा।
वह कुछ नहीं बोली और उसे अकेले छोड़ वह टैक्सी की ओर बढ़ गई।कुछ देर बाद पूरब की आँखों से वृंदा ओझल हो गई।
अपने कदमों को घसीटते हुए वह भी चलने लगा।फ्लैट पर पहुंच कर शराब का गिलास भरकर पीने लगा।उसकी आँखों में आँसू भरज हुए थे।रह रह कर आकाश और वृंदा की हँसी उसके कानों में गूंजती रहती है वह तड़प कर गाने लगता है।
‘आँखों में तुम ही रहती हो
फिर भी है क्यों दूरी
प्यार तुम्हें ही करते हैं हम
दिल की है मजबूरी
जी न सकूंगा तेरे बिन अब
कहना है ये जरूरी…
आँखों में तुम ही रहती हो….।।’
“ओहहहह वृंदा तुम मेरे प्रेम को क्यों न समझ पाई!”आह भरकर पूरब ने कहा।
“तुम सच में उससे प्रेम करते हो?”एक आवाज उसके कानों से टकराई।
“कौन….कौन है?”पूरब ने कमरे में नजर दौड़ाकर कहा।
“अपने पीछे देखो….।”
सुनते ही पूरब ने पीछे मुड़कर देखा।वहाँ पर भी पूरब ही था।
“तुम….मैं….कौन हो तुम?”पूरब ने आश्चर्य से पूछा।
“मैं वो हूँ जो तुम्हारे अंदर ही रहता है… मेरी छोडो… यह बताओ तुम सच में वृंदा को प्यार करते हो?”
“हाँ…बहुत प्यार करता हूँ।लड़खड़ाती जुबान में वह बोला।
“नहीं, तुम वृंदा को प्यार नहीं करते बल्कि तुम्हारी जिद है वृंदा।”उस आवाज ने कहा।
“झूठ .मैं उसे बहुत प्यार करता हूँ… बहुत प्यार।”अपनी बाँहों से खुद को लपेटकर वह बोला।
“लेकिन वह तो दूसरे के साथ हँसती है वह अच्छी लड़की नहीं है भूल जाओ उसे।”वह आवाज फिर बोली।
“ऐ..ऐऐ ..दोबारा वृंदा को बुरा बोला तो मुँह तोड़ दूंगा।हँसता तो मैं भी हूँ.. वो बहुत अच्छी लड़की है.. सबके चेहरे पर मुस्कान लाती है।”पूरब ने कहा।
“लेकिन वह तुम्हें प्यार नहीं करती….भूल जाओ उसे।” उस आवाज ने व्यंग्य से कहा।
“पर मैं तो करता हूँ उसे मोहब्बत… मैं करता हूँ। और फिर मैं उसका दोस्त हूँ.. हाँ सबसे पहले मैं दोस्त हूँ उसका।” पूरब तड़पते हुए बोला।
“मुझसे गलती हो गई….मैने वृंदा का दिल..हे भगवान यह क्या किया मैने।” पूरब ने अपने चेहरे को हथेलियों से ढंक लिया।
तभी उसका मोबाइल बज उठा।पूरब यूँही बैठा रहा। मोबाइल लगातार बज रहा था।
उसने बुझे मन से फोन उठाया और बिना नंबर देखे रिसीव कर कान से लगा लिया।
किसी की आवाज सुन उसके चेहरे पर चमक आ गई।
“वृंदा… हाँ…मैं जरूर आऊंगा….तुमने मुझे माफ कर दिया ना!”
“ओ पागल….बचपन से जानती हूँ तुझे… भले ही तुझे प्यार और जिद में अंतर न पता हो लेकिन मुझे तो पता है।ऑफिस के बाद सीधे लाइब्रेरी आ जाना….।”इतना कहकर वृंदा ने फोन काट दिया।
दिव्या शर्मा
गुडगांव हरियाणा