पुरुष – कंचन श्रीवास्तव 

बढ़ती उम्र ने अमन को मानों खामोश कर दिया। जबकि कमी किसी चीज की नहीं है।कभी कभी उसे देख के लगता है उसकी जिंदगी में कोई है।फिर लगता है नहीं नहीं ऐसा अगर होता तो बताता। क्योंकि वो हमेशा से हर एक बात मुझसे बताता आया है

मुझे अच्छे से याद है कि जब वो स्कूल से आता तो प ले अपने साथ हुई सारी घटना को बताता फिर वो मेरे ही हाथों से खाना खाता।

जब जैसे जैसे बड़ा होने लगा,वो रेखा की अपेक्षा ज्यादा बात छुपाने लगा।

हालांकि ये बातें मुझे बेचैन करती पर चुप रह जाती होगा आखिर इसके पापा भी तो चुप रहते हैं, वो ही कहा ज्यादा बोलते हैं ,हमें तो लगता है जरूरत न पड़े तो आवाज ही न निकले।

पता नहीं कैसे दो बच्चे हो गया ,जो बोलता नहीं वो रोमांस क्या करेगा।

कहते हुए वो किचन का काम संभालने चली गई।और वो तीनों यानि बेटी ,बेटा,और पतिदेव अपने अपने कमरे में कोई टी.वी तो कोई पढ़ाई और कोई मोबाइल पर व्यस्त हो गए।

सच बदलते वक्त के साथ कितना कुछ बदल गया हर वक्त इर्द गिर्द घुम्ने वाले बच्चे अब अपने आप में होकर रह गए।

बस जरूरत पड़ती तभी पास आते। फिर भी बेटे की अपेक्षा बेटी अभी पास ज्यादा रहती।

पर अब तक एक दिन तो इसे छोड़ के चले ही जाना है ।रहना तो इन्हीं के बीच है।

और ये दोनों बिल्कुल बोलते ही नहीं।पता नहीं मैं देख रही हूं, ससुराल से मायके तक की सभी मर्द और लड़के एक से होते है । 

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और आज बेटा भी चुप हो गया।उफ़! आखिर पता कैसे किया जाए कि ये सब ख़ामोश क्यों होते हैं।

फिर एक मैंने उसे किसी से बात करते सुना।

वो कह रहा था। जिम्मेदारियों का अहसास तो मां ने शुरू से ही क्या दिया था।

ये कहके कि स्कूल में बहन का ध्यान रखना।

फिर थोड़ा बड़ा हुआ तो मां ने कहा तुझे खूब पढ़ना है पढ़कर नौकरी करना है तभी तो जिम्मेदारियां उठाएगा।

और अभी मैं पढ़ ही रहा हूं यार तो वो कृतिका मेरे जीवन में आ गई।और उसका आना अच्छा लग रहा इसलिए मना नहीं कर पा रहा।

पर उसके साथ जब समय बिताता हूं तो खाने पीने का पैसा वो पे करती है ऐसे में लगता है नहीं मुझे करना चाहिए।

और इसके लिए मम्मा के सामने हाथ फैलाना अच्छा नहीं लगता।

इसलिए मैं पार्ट टाइम जॉब की तलाश में हूं।

आखिर पापा की छोटी सी कमाई है और जो भी पाते हैं वो हम सबकी पढ़ाई और खाने पीने में ख़र्च कर देते हैं फिर बहन की शादी कहां से होगी ,आज नहीं तो दो साल बाद उसकी शादी भी तो करनी है।

और पापा की उम्र भी ढल रही है ऐसे में दादी बाबा की देखभाल,मम्मी पापा की ख्वाहिश,बहन की शादी सभी का बोझ तो है हम पर।

कहते हुए उसके चेहरे पर जो सिकन मैने देखी वो हैरान करने वाली थी।

वो गंभीरता दिखी जो उसके पापा के चेहरे  पर दिखती है।

आज उसे अहसास हुआ कि बढ़ती उम्र के साथ लड़के गंभीर और चुप क्यों हो जाते है।

उनकी जिम्मेदारियां उन्हें धीरे गंभीर और शांत बना देती है।

सच माना स्त्री हाथ बंटाती है पर जिम्मेदारियां तो पुरुष पर ही होती है।जिसे वो मरते दम तक निभा कर अपने पुरुष होने का परिचय देता है।

कंचन श्रीवास्तव 

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