पड़ोस में रहने वाले प्रताप जी जो हाल ही मे रेलवे की नौकरी से रिटायर हुए हैं से अक्सर शाम को पार्क में टहलते हुए मुलाकात हो जाया करती थी और थोड़ी देर उनसे बातें भी हो जाती थी। जब किसी बात की जल्दी न हो तो उनके साथ पार्क की बेंच पर बैठ भी जाया करती थी। अद्भुत ज्ञान- कोष था उनके पास। देश-दुनिया की बातें और जानकारियां उनके स्मृति-कोष में संचित होती थीं। प्रगतिशील विचारधारा के पोषक सादगी पसन्द व्यक्ति थे वे। कल की मुलाकात में उन्होंने बेटे के विवाह के लिए लड़की देखने जाने की बात बताई। मेरे यह पूछने पर कि कौन- कौन जाएगा इस प्रथम परिचय के अवसर पर तब उन्होनें बताया कि उनका बेटा रवि, पत्नी व बेटी राधिका जाएगी। स्वयं न जाने के विषय में उन्होंने बताया कि विवाह तो बेटे को करनी है तो उसका देखना- समझना ज्यादा जरूरी है। और फिर घर की महिलाओं के साथ उसका वक्त ज्यादा बीतना है इसलिए उनका उसके साथ ‘इंटरेक्शन’ आवश्यक है।
कुछ दिनों बाद उधर से गुजरते हुए प्रताप जी को लॉन में पौधों को पानी देते हुए देखा। अभिवादन पश्चात हालचाल पूछने के बाद बेटे के लिए वधु जंचने आने की बात पूछी। उन्होंने बताया कि लड़की पढ़ी- लिखी व परिवार वाले भी सुसंस्कृत हैं, अतः बात आगे बढ़ेगी।
इधर मैं भी बच्चों की परीक्षा की तैयारी करवाने में लगी रही। परीक्षा की समाप्ति के बाद शाम को प्रताप जी के यहां गई। बातों बातों के दौरान उन्होंने अगले सप्ताह बेटे की सगाई की बात बताई। चाय की चुस्कियों के साथ कई दिलचस्प जानकारी परक बातें हुईं। सामनेवाला यदि उनकी बात ध्यान से सुने तो उन्हें भी बात करने में आनंद आता था।
कई दिनों से प्रताप जी से मुलाकात नहीं हो पाई थी। मैं भी इधर एक रिश्तेदार का अस्पताल में भर्ती होने से आने- जाने की वजह से व्यस्त ही रही थी। लगभग एक – डेढ़ माह बाद प्रताप जी से मिलना हुआ। मैंने पूछा -“कहिये प्रताप जी! सगाई का कार्यक्रम कैसा रहा ?’
तब उन्होंने ने कहा -“अरे कहाँ! वो तो बात खत्म हो गयी।”
फिर वो लगे विस्तार से बताने की लड़की पक्ष वाले मई में विवाह करना चाहते थे जबकी हमलोग नवंबर में। लड़की वालों का मानना था कि आजकल सगाई के बाद लड़का- लड़की फोन पर बात करने लगते हैं तथा मार्च से नवंबर तक कई महीनों के फासला है जिससे शादी कटने की संभावना हो सकती है। इस बात पर सिद्धान्तवादी प्रताप जी बिगड़ गए और साफ शब्दों में कह दिया ‘ जिस विवाह की बुनियाद इतनी कच्ची की महज बात करने से उसके टूट जाने का अंदेशा हो, वैसे सम्बन्ध का टूट जाने ही बेहतर होगा।
‘ बल्कि उल्टा प्रताप जी का मानना है कि सगाई और विवाह के मध्य बातचीत से एक- दुसरे को जानने- समझने का अवसर मिलेगा। अगर फिर भी इस दौरान उन्हें लगे कि लड़का- लड़की एक दूसरे से ‘ कंपेटेबल’ नहीं हो पा रहे हों या उनके बीच कई चीजें या बातें इतनी विषम हैं कि भविष्य में बड़ी समस्या खड़ी कर सकता है, तब ऐसे संबंध पर वहीं पूर्णविराम लगा देना उचित है।
क्योंकि प्रतिष्ठा में आगे चलकर दो ज़िंदगियां ही नहीं बल्कि दो परिवार में समस्या उत्पन्न हो सकती है। इसलिये ऐसे रिश्तों को निसंकोच त्याग देना चाहिए। मैं मुग्ध सी उनकी बातें सुन रही थी। मन ही मन उनके प्रति श्रद्धावनत हो रही थी। मन मे सोच रही थी कि काश! हमारे समाज में प्रताप जी जैसे सुलझे विचारों वाले अभिभावक हो जो आनेवाली समस्या को उसके सूक्ष्म स्वरूप में ही पहचान कर अपने बच्चों के भविष्य का निर्णय करते समय समझदारी दिखा सकें। तभी मोबाईल की घण्टी बज उठी । देखी तो बेटी का फोन था। वैसे भी प्रताप जी से बात करते समय वक़्त का पता ही नहीं चलता। प्रताप जी से प्रभावित तो मैं थी ही आज एक नवीन दृष्टिकोण पर उनसे प्रभावित हो घर की ओर चल पड़ी।
–डॉ उर्मिला शर्मा