बैलों के जोडे मेला से खरीद कर आये थे। सभी लोग काफी उत्साहित से थे। जैसे ही बैलों वाली गाडी खोली गई बैलों के साथ उस गाडी में से एक काला सा छः फुट से भी लम्बा तडंगा व्यक्ति दिखाई दिया। बडे बडे बाल लाल आखे शरीर पर नाममात्र के भी कपडे नहीं थे। पूरा शरीर चोटों से भरा था। जैसे कहीं एक्सीडेंट हुआ हो या किसी से गंभीर लडाई हुई हो। घाव इतने गहरे थे कि उनमें कीडे पड रहे थे।
कई लोग उसके पास बढे लेकिन वह उनको डरा के भगा देता था। गांव में रहने वाले अक्का उसकी ओर बढे तो उन्हे भी उसने बाकी की तरह डराया। लेकिन अक्का ने एक मोटी से छडी उठाई और उसकी ओर बढे। शरीर पर कपडे नहीं थे और गाडी भी घर की ही थी तो यह तो तय था कि उसके पास कोई हथियार नहीं है।
किन्तु उसके लुटेरे होने की संभावना भी खारिज नहीं की जा सकती थी। सबसे पहले उसे कपडे पहनाने का मुहिम जारी हुआ। दो जोडे कपडे फाडने के बाद उसे फिर जबरदस्ती धमकी से कपडे पहनाये गये। क्योंकि वहां पर हर तरह के लोग थे और उसे बिना कपडों के नहीं रखा जा सकता था।
चूंकि वह अक्का से थोडा डरने लगा तो अक्का ने उसका दायित्व लिया और उसे अपने घर ले कर आ गये। उससे बात करने की कोषिष की तो वह पुन्नु के अलावा कुछ नहीं बोल रहा था। हर सवाल के जवाब मे वह पुन्नु बोलता था। अक्का ने सबसे पहले डाक्टर को बुलाया कि उसका इलाज हो जाये उसके घावों के मरहम पट्टी करने के लिये डेटाल से धोया उस व्यक्ति को गहरे घावों में डेटाल से कोई असर नहीं हो रहा था। डाक्टर ने उनपर मरहम पट्टी की और चले गये।
रात हो चली थी अब उसे सामान्स व्यक्ति की तरह ही खाना दिया गया उसने खाना ले लिया। खाना ले जाने वाला व्यक्ति वहीं खडा हो गया कि वह खाना खा ले तो हटे । उसने उस व्यक्ति को मारा कि और जोर जोर से शोर करने लगा कि वह वहां से जाये। आखिर अक्का को ही उसे खाना खिलाना पडा।
उसकी भाषा हाव भाव से समझ नहीं आ रहा था कि उसका पेट भरा है या नही। क्योंकि एक सामान्य आदमी जितना खाता है उतना खाना तो उसने खा लिया था इसलिये बर्तन हटा लिये गये। वह अन्जान व्यक्ति था इसलिये उसके सोने की व्यवस्था इस तरह की गई थी चैकीदारों और घरवालों को उसकी आहट मिलती रहे।
चने का मौसम था पूरे में चना सूखने के लिये फैला हुआ था उसे रात में किसी पहर भूख लगी तो उसने वह कच्चा चना खाना शुरू कर दिया जैसे ही लोगों को आहट लगी उस तक गये तो वह दुबक कर सोने का नाटक करने लगा लोगों को लगा शायद कोई चूहा या और कुछ हो लेकिन तब तक उसने काफी कच्चा चना खा लिया था।
जिससे थोडी ही देर में उसके पेट में दर्द शुरू हो गया। सुबह होते होते देखा गया तो उसने उस जगह को काफी गन्दा कर दिया था। इससे सभी को अन्दाजा हो गया कि वह भूखा था और उसने कच्चा चना खाया था। चूंकि अक्का ने उसका दायित्व अपने उपर लिया था तो अब छोटे छोटे फुलके की जगह हलवाई के यहां से उसका खाना बनवाने लगे।
समस्या अभी भी खत्म नहीं हुई थी क्योंकि उसके घाव ठीक होने का नाम नहीं ले रहे थे उन पर किसी भी तरह की दवाओं का असर नहीं हो रहा था। एक दिन उसने देखा अक्का जानवरों के बांधने वाली जगह को फिनायल डाल कर घुलवा रहे हैं उसे लगा यह दूध है वह उसको उठा कर पीने की कोषिष करने ही वाला था बाकी लोग उससे डरते थे तो अक्का को आवाज दी अक्का कुछ बोलने की जगह दौडते हुये आये और बाल्टी पर हाथ मारा जिससे कि वह फिॅनायल के पानी को न पी सके।
इससे वह फिनायल को तो पी नहीं पाया लेकिन फिनायल का पानी उसपर गिरने से वह पूरा भीग गया। जिससे उसको उसके घावों में थोडी टीस लगी लेकिन इस हादसे से जहां वह बच गया फिनायल ने उसके घावों पर असर किया उनमें पडे कीडे गिरने लगे। उसके बाद सामान्य उपचार से वह ठीक हो गया।
अक्का के घर रहते हुये उसे तीन चार माह हो चुके थे। लेकिन उसके सिर्फ पुन्नु बोलेने की वजह से उसका नाम ही पुन्नु पड गया था। हर कोई उसे पुन्नु बुलाता था। और बहुत मेहनत करके कभी कभी अक्का बोल लेता था। उसकी हरकतों से अब तक सब जान गये थे कि वह सामान्य नहीं था। फिर भी उसके जीने के हक के लिये अक्का ने अपना दायित्व निभाते हुये अपने घर के बाहर एक छोटी कोठरी में रख लिया क्योंकि नये लोगो के सामने वह अक्सर गुस्से से भर जाता था चीजे पटकने लगता था।
बेहतर खान पान और रहन सहन से उसका स्वास्थ्य तो सुधर गया था लेकिन वह सिर्फ अक्का के साथ ही रहता वह खाना देते तो खाता वरना भूखा रहता। इस तरह से लगभग चार सालों तक वह अक्का की परछाई बन गया था। अक्का के शाम में घर वापसी के समय वह घर के रास्ते में उनका इन्तेजार करता।
ठंड के दिन थे बहुत तेज बारिष हो रही थी पुन्नु अपनी परिचित जगह पर अक्का का इन्तेजार कर रहा था। अक्का कहीं बाहर गये हुये वापसी में उनकी ट्रेन सोलह घंटे से भी ज्यादा देरी से आई सुबह के धुंधलके में अक्का को एक परछाई सी लगी अक्का ने दूर से आवाज दी पुन्नु जब कोई जवाब नहीं आया तो पास जाकर जैसे ही उस परछाई पर हाथ लगाया वह ठंडा शरीर वही ढेर हो गया।
अक्का ने पुन्नु का अन्तिम संस्कार किया लेकिन जब भी ट्रेन देर से आती है अक्का पुन्नु को याद करते है। इस तरह से अक्का और पुन्नु दोनो ने अपना अपना दायित्व निभाया।
डा. इरफाना बेगम
नई दिल्ली-110025