विधा-लघुकथा
प्रियंका ब्याह के बाद पग फेरे के लिए आई थी।आते ही ससुराल के लिए की गई घोषणा से सभी लोग परेशान हो गए और पशोपेश में थे उसकी समझाइश के लिए।
प्रियंका का ब्याह संयुक्त परिवार में हुआ था जो उसके लिए एक नया अनुभव था।इतने सदस्यों के साथ रहना उसे एक मुसीबत से कम नहीं लग रहा था।उसके पति निहाल पूरे दो महीने की छुट्टी पर आए थे।
पीहर आते ही प्रियंका ने कहा ,अब वह दो महीने बाद ही निहाल के साथ नोयडा जाएगी।
आखिर माँ से विमर्श करके पापा ने समझाने का बीड़ा उठाया।
ठीक है ,हम आपके ससुरजी से बात कर लेते हैं।आप दो महीने बाद चले जाना लेकिन कल को नोयडा में किसी प्रकार की हारी -बीमारी में तुम्हें मदद की ज़रूरत पड़ी तो हम तो इंदौर से नहीं आ पाएँगे। माँ का और मेरा जॉब है ।इतनी छुट्टियां मिलेंगी नहीं!
और उन लोगों से कुछ अपेक्षा मत रखना क्योंकि तुम्हें उन लोगों के साथ नहीं रहना है।
पापा साथ ही साथ प्रियंका के चेहरे पर आते जाते भावों को पढ़ रहे थे।
लोहा गर्म देख कर माँ भी आ गईं ,बेटा ,अपने तो अपने ही हैं उनका साथ सुख बढ़ाता है ,दुख घटाता है।तुम्हारी दादी नहीं होने से मैंने अकेले बहुत संघर्ष किया है।
पापा ने एक और मोहरा चलते हुए उसी की भाषा में समझाने की कोशिश करते हुए कहा ,बेटा ,
रिश्तों में प्राइस टैग नहीं लगे होते किन्तु जब हम उन्हें खो देते हैं तब हमें उनकी किस्मत समझ आती है। आगे तुम्हारी मर्ज़ी!
‘ मुझे आज शाम को अपने घर जाना है।’
प्रियंका ने कहा।
ज्योति अप्रतिम