Moral Stories in Hindi : गाड़ी के चलते ही सविताजी की आंखे धुंधला सी गईं उन्होंने घबरा कर आंखों को पोंछा लेकिन आंखे थी कि फिर फिर भर जाती थीं और फिर उन्हें समझ आया कि उनकी आंखे आंसुओं से भरी जा रही थी अब ये आंसू सुख के थे या पश्चाताप के उन्हें ही समझ नहीं आ रहा था।
तभी पास में बैठी धरा ने प्यार से पूछा ” क्या हुआ आंटी..कहीं दर्द हो रहा है क्या?” सविताजी के पति, पवन जी, ने पीछे मुड़कर देखा । समझ गए आंसू क्यों बह रहे हैं, आखिर बरसों का साथ था। तीनों अभी अभी “आसरा”‘ से बाहर निकल कर धरा के घर की तरफ जा रहे थे जिसे धरा ने “सोपान” नाम दिया था। वही धरा जिसे सविता जी ने कभी अपनी बहू बनाने से इंकार कर दिया था क्योंकि उन्हें वो धरा कभी पसंद ही नहीं थी जो उनके बेटे आकाश की दुनिया थी।
उन्हें हमेशा लगता था कि ये धरा उन्हें उनके बेटे से ही दूर कर देगी क्योंकि वो उसकी पसंद जो है। आकाश और धरा स्कूल से लेकर कालेज तक साथ साथ पढ़े । बाद में मास्टर्स करने के लिए दोनों ने अलग राह चुनी पर उनके प्यार की राह हमेशा एक ही रही। उनके सब दोस्त उन्हें ‘हंसो का जोड़ा’ कहा करते थे और जानते भी थे कि दोनों एक हो ही जाएंगे पर किस्मत … वो किसने देखी कब क्या करवट ले..।
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सविताजी को कभी भी मंजूर ना था कि आकाश और धरा एक हों। वो हमेशा से ही ऊंचे ख्वाब देखती थी जिसमे एक था ..आकाश की शादी ऊंचे घराने में हो किसी सुंदर सी लड़की के साथ जिसकी रंगत गोरी हो और धरा इन दोनों पैमानों पर कहीं भी नहीं ठहरती थी। आकाश ने बहुत मनाने की कोशिश की पर सविता जी ने तुरुप का पत्ता फेंका सुसाइड का। पवनजी ने भी बहुत समझाया पर उन्हें ना मानना था ना मानी। और धरा ने अपने कदम वापिस उठा लिए और आकाश को भी मना लिया ।
आकाश की शादी मां की मर्ज़ी से खूब धूमधाम से हुई और धरा…उसने शादी ना करने का ही फैसला ले लिया और अपनी नौकरी और घर में अपने आप को व्यस्त कर लिया। पांच साल बीत चुके थे । आकाश की पत्नी ने अब रंग दिखाना शुरू किया। पति को लेकर अलग हो गई और डरा धमका कर घर भी अपने नाम से करवा लिया । सविता जी के दुर्दिन शुरू हो चुके थे। और एक दिन बिजली गिरी जब पता चला कि बहू ने मकान बेच दिया और अब दोनों बुजुर्ग दंपति बेघर हो चुके थे।
आकाश ने बिल्कुल चुप्पी धारण कर ली थी निसर्ग हो चुका था वो.. शायद वो अपने आप को सज़ा दे रहा था या फिर अपनी मां को… कहना मुश्किल था। धरा नौकरी में तरक्की की सीढ़ियां चढ़ रही थी कंपनी ने तीन साल के लिए एक प्रोजेक्ट पर जर्मनी भेज दिया पर आज भी ज़िन्दगी में एक खालीपन था जो कभी भर ही नहीं पाया ।
वो आकाश को कभी भूल ही नहीं पाई। उसने प्रेम किया था आकाश से.. दिल की गहराईयों से, किसी और व्यक्ति की कल्पना ही नहीं कर सकती थी अपनी ज़िन्दगी में । बस आकाश को ही अपनी हथेलियों में समेटना चाहती थी…पर नासमझ थी भला आकाश कब किस की मुट्ठी में आया ? प्रोजेक्ट पूरा कर के जब वापिस अपने देश पहुंची तो पुरानी यादों ने फिर सिर उठाया दिल नहीं माना तो एक दिन आकाश के पुराने घर पहुंच गई और जो पता चला वो होश उड़ाने के लिए काफी था।
और बहुत कोशिश करने के बाद पता चला कि आकाश के मम्मी पापा “आसरा वृद्धाश्रम” में अपने दिन गुजार रहे हैं और आज वो उन्हीं को अपने साथ अपने घर “सोपान” की तरफ बढ़ रही थी । उनको आसरा देने के लिए एक नए सोपान की तरफ कदम बढ़ा रही थी, आकाश ना सही उसकी ज़िंदगी के दो तारे ही काफी थे ज़िन्दगी में रोशनी लाने के लिए। और सविता जी सोच रहीं थीं कि शायद ज़िन्दगी में उन्होंने कोई अच्छा कर्म तो ज़रूर किया होगा जो उन्हें जीवन की इस अवस्था में धरा का साथ मिला ।
शिप्पी नारंग