पारिजात और प्राजक्ता, कॉलेज में सिर्फ नाम का एक ही अर्थ होने की वजह से ही तो बस जान पहचान हुई थी दोनों की और फिर धीरे धीरे गहरी दोस्ती।
जहां पारिजात सौम्य, समझदार,शांत और संतुलित था वहीं प्राजक्ता चंचल, शौख, बातूनी और खुशमिजाज। पर कभी प्यार मोहब्बत जैसा कुछ नहीं हुआ बस सोहबत ही थी एक दूसरे की। कॉलेज भी खत्म हुआ, दोनों नौकरी कर अपनी अपनी दुनिया में मस्त हो गए।
पर कहते हैं न, जोड़ियां ऊपर से बनकर आती हैं, तो किसी जान पहचान वाले ने दोनों के माता पिता को रिश्ता बताया, और परिवार को जंच गया। जहां प्राजक्ता को लग रहा था कि वो दोनों एक दूसरे के लिए सही नहीं हैं, बहुत अलग हैं एक दूसरे से, वहीं पारिजात एकदम चुप, के जो होगा ठीक ही होना। संजोग था दोनों का तो शादी भी हो गई और कृष्ण के प्रिय प्रेम के प्रतीक वृक्ष रूपी पति- पत्नी हो गए।
प्राजक्ता ने महसूस किया कि घर में भी पारिजात उतना ही चुप, सरल, संत, न कभी कोई गहरी आसक्ति,न प्रेम का प्रदर्शन, न कभी तारीफ़ करता , न बुराई। कहने को बहुत ख्याल रखता पर जीवन में कोई उत्साह सा महसूस नहीं करती प्राजक्ता, घर में भी बस सास ससुर और वो दोनों, बहुत परम्परागत सा माहौल।कभी कभी प्राजक्ता को लगता की वो बस घर बाहर की जिम्मेदारियां या ऑफिस का काम और जरूरत भर के रात के रिश्ते के लिए रह गई है। घर में सास बहू के बीच कोई बात भी हो जाती, तब भी पारिजात बस चुपचाप सुन लेता। प्राजक्ता बताती तब भी हां- नहीं तक का भी जवाब नहीं, प्राजक्ता को लगता दीवार से बात कर रही है।
समय बीतता गया दोनों का एक बेटा भी हो गया, अब जिम्मेदारियां बढ़ गई और प्राजक्ता की ख़ीझ भी। अब ऊब गई थी वो इस जीवन से। बाहर से सबको लगता दोनों अच्छा कमाते हैं, पारिजात में कोई ऐब नहीं, एक बेटा है और क्या चाहिए ज़िंदगी में। पर प्राजक्ता के अंदर का खालीपन बढ़ता जा रहा था, दोनों के बीच कभी न कोई नोंझोंक न मान मनौव्वल।
इस कहानी को भी पढ़ें:
घर का माहौल ही उसे घुटन भरा लगता जहां प्रेम की अभिव्यक्ति किसी भी रिश्ते में थी ही नहीं।कुछ अच्छा या बुरा कभी कहा ही नहीं जाता, उसे लगता बस मौन को ही समझने में जीवन निकल जाएगा। अब हंसती खिलखिलाती प्राजक्ता भी मौन हो गई और उसके मौन होते ही हर घर के हर रिश्ते में संवादहीनता दिन ब दिन बढ़ती ही जा रही थी।
कृष्ण जो प्रेम के प्रतीक हैं, के प्रिय फूलों की प्रेम की बेला सूख रही थी। इसी दौरान रक्षाबंधन के त्यौहार पर करीबी रिश्तेदार आए हुए थे, सास बहू में कोई कहासुनी हुई। वैसे भी प्राजक्ता महसूस करती थी कि घर में सास की ही चलती थी पर वो खुद के जीवन में इतनी व्यस्त थी कि इसे ज्यादा तवज्जो ही न देती थी। उस दिन बात बढ़ते बढ़ते दोनों के बीच तेज़ आवाजें आने लगी। सास ने सबके सामने बेज़्जत्ती महसूस कर रोना धोना, मरने की धमकी दी, बेटा मातृ प्रेम से वशीभूत हो सब रिश्तेदारों के सामने प्राजक्ता को बोला चुप करो तुम, और मारने के लिए हाथ उठाता दिखा।
आज प्राजक्ता टूट गई , वो अंतिम कील चुभ गई उसे।प्राजक्ता थक चुकी थी, इस बोझ के रिश्ते से, जिसमें रुपया पैसा, सम्मान था पर कभी प्रेम की अभिव्यक्ति नहीं।आज उसके ये सम्मान का भ्रम भी टूट गया। दोनों के बीच एक हफ्ते की चुप्पी रही, रिश्तेदारों द्वारा प्राजक्ता को समझाने बुझाने की नाकामयाब कोशिश भी हुई पर पारिजात अब भी चुप ही था।
आज प्राजक्ता के माता पिता उसे लेने आ रहे थे। प्राजक्ता भी फैसला कर चुकी थी अब इस रिश्ते से आज़ाद होने की, जानती थी सफर मुश्किल होगा पर अब उसे ख़ुद को तलाशना था। बेटे के साथ सामान भी बंध चुका था, प्राजक्ता जानती थी पारिजात रो रहा होगा अंदर से ।पर कब तक उसकी मां बनकर उसे संभालते हुए ख़ुद टूटूंगी, यही सोचकर तैयार थी।
तभी पारिजात ने पीछे से करीब आकर कहा ,”मुझे माफ़ कर दो, प्राजक्ता। मुझे तुम पर इस तरह सबके सामने चिल्लाना या ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए था,पर इसकी इतनी बड़ी सजा मत दो कि जीवन के रंग ही फीके हो जाएं। मेरे जीवन के रंग तुम्हीं से हैं।मैं तुम्हारे और मुन्ना के बग़ैर नहीं जी पाऊंगा। मैं कोशिश करूंगा प्यार जताने की और नहीं करूं तो तुम याद दिला देना” यह कहकर हरसिंगार का गजरा उसके बालों में लगा, वह गले लग गया प्राजक्ता के।
प्राजक्ता के लिए भी तो इतना ही काफी था बस पिंघलने के लिए और एक माफी और प्रेम की प्रदर्शन ने हमेशा के लिए रिश्ते को बिगड़ने से पहले की बचा लिया। फ़िर से एक हो गए राधा कृष्ण के प्रिय हरसिंगार “पारिजात- प्राजक्ता” प्रेम का प्रतीक बनकर।
ऋतु यादव
रेवाड़ी (हरियाणा)
#एक माफी ने रिश्ते को बिगड़ने से पहले ही बचा लिया