ये फगुनिया,कब आई ससुराल से –बालचन ने टहोका मारते हुए पूछा…
फगुनिया कुछ नहीं बोली बस डबडबाई आँखों से बालचन की तरफ देखती रही।
ये फगुनिया–ई तोहार आँख में आँसू…का हो गया, कऊनो बात हो गई का ससुराल में।इस बार सहानुभूति पाकर फगुनिया फूट पड़ी और बोली –साल भर में एक बार हम आते हैं ससुराल से बड़ी आस लगाए कि ई सावन जगेसरा फौज से छुट्टी लेकर घर आएगा, और चमकऊवा ‘प्यारा भैया’ वाला राखी जे हम छाँट कर लाते हैं, ओकर कलाई में बांधेंगे,पर हमार ई सपना कभी पूरा नहीं होता । इनको भी अपन डिपटी से जल्दी छुट्टी नहीं मिलती जे हम मान मनुहार करके जगेसरा के पास जाके राखी बाँध दें।
उसकी बात सुन बलचनवा भी उदास हो उठा फिर कुछ सोच कर बोला–रूक, हम कुछ जोगाड़ लगाते हैं, कऊना जगह पोस्टिंग है अभी जगेसरा के।
उम्मीद की किरण पा फगुनिया थोड़ा खुश हुई और बोली–वोही ऊ दढ़ीजरा कश्मीर में। तू लेके चलेगा का हमरा के । बड़ी मेहरबानी होगी हमका पर।
ऐसा काहे बोलती है फगुनिया–हम तुम्हार नाम अपन जुबान पर कभी न लायेंगे,पर तुमरी खुशी ही मेरी खुशी है।एक बहिन को भाई से मिलाने से भी बड़ा पुण्य के काम कऊनो है का,बाबूजी हमरा पर एतना विश्वास करते हैं,आज ही हाथ गोड़ जोड़ कर,विनती कर मनाय लेंगे हम,तुमको ले जाने के वास्ते।
तब त हम आज ही जाके जगेसरा खातिर सबसे बढ़िया वाला राखी,अक्षत, रोली सब खरीद लाते हैं, बच्चों की तरह खुश हो फगुनिया बोली और बलचनवा की ओर देख मुसका उठी।
तू का सोचती है फगुनिया–बियाह हो गया तुम्हार त का हमरा प्रेम तुमसे कम हो गया। ई कबहूँ कम न होगा। हमार साँसे के साथ जायेगा ई। भूल गई का, बचपने से तुम्हार सुख दुख हमार रहा है।
ई कोई भूलने की चीज है,प्रेम न भूलता कुछ। ऊ त सब रिश्ता से ऊपर है, एकर कऊनो जोड़ नाहीं। बियाहे हो जाना ही प्रेम के परिणति नही है बालचन। एकरा पवित्रता से निभाते रहना प्रेम है–देखते नही, कृष्णा और राधा के प्रेम को,साथ न होकर भी हर पल दोनों साथ हैं,तभी तो कोई भाई के कलाई राखी पर सूनी नहीं रहती, कृष्ण कऊनो न कऊनो रूप में आके भाई बहिन को ई पावन पर्व में मिला ही देते हैं जैसे तुम मेरे कृष्णा…कह उसकी आँखें छलछला उठी।
वीणा
झुमरी तिलैया