रुचिका और श्रेया दोनों बचपन की सखियां थीं। बचपन में दोनों एक साथ पढ़े खेले खाना पीना एक दूसरे के घर आना जाना दोनों के बीच में एक परिवार जैसा संबंध था। वक्त बीता दोनों का विवाह कुछ अंतराल में हो गया। श्रेया का विवाह अपने ही शहर में हुआ। परन्तु रूचिका विवाह कर दूसरे शहर चली गई। दोनों अपनी अपनी गृहस्थी में उलझ गईं दोनों के बच्चों की पढ़ाई लिखाई उनके पालन पोषण के कारण मायके आना जाना कम हो गया तो एक दूसरे से मिलना जुलना भी नहीं हो पाता था। साल दर साल गुजरते गए।
एक दिन श्रेया को रूचिका का मोबाइल नंबर मिल गया उसकी खुशी की कोई सीमा न रही। उसे लगा कि अब वह अपने बचपन की सखी से बात कर पाएगी। दोनों के बीच बातचीत हुई दोनों ने बचपन की यादें ताजा की और एक दूसरे से मिलने का वादा किया। दोनों फेसबुक पर भी मित्र बन गए। श्रेया कभी कभार रूचिका को फोन करती थी।
परन्तु रूचिका की तरफ से उसे कभी फोन नहीं आया। एक बार जब श्रेया ने काफी समय तक रूचिका को फेसबुक पर एक्टिव नहीं देखा तो उसे चिंता हुई कि वो ठीक है या नहीं उसने उसे फोन किया रूचिका ने फोन सुना मुश्किल से एक मिनट बात करने के बाद कहा कि मैं तुझसे बाद में बात करूंगी यह कह कर फ़ोन रख दिया। फिर उसका फोन नहीं आया। श्रेया सोचती रही कि वो शायद बिजी होगी।
एक दिन उसे पता चल गया कि रूचिका कह रही थी कि यार श्रेया तो फोन पर ही चिपक जाती है बोर करती है।
श्रेया ये सुनकर शर्मिंदा हो गई। उसने मुश्किल से रूचिका को दो चार बार फोन किया था।वो भी रूचिका ने जल्दी से फोन ये कह कर रख दिया था कि चल मैं तुझसे बाद में बात करती हूं। अब उसे समझ में आ रहा था कि रूचिका की दुनिया ही बदल गई थी उसके नए दोस्त बन चुके थे। उसके इन नए दोस्तों में श्रेया कहीं नहीं थी। श्रेया को ऐसा लगा कि जैसे उसका दिल किसी ने बाहर निकाल कर फेंक दिया हो।
श्रेया सोचने लगी कि मैं मूर्खों की तरह बचपन की दोस्ती का राग छेड़कर एक अमरबेल को पकड़ने की कोशिश कर रही थी। जिसका अस्तित्व जमीन पर नहीं होता।
उसने भी अपनी बचपन दोस्त के प्रति अपने प्रेम को बदल लिया।
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चुपचाप बिना बताए उसने बचपन की दोस्ती को दिल के सुरक्षित बक्से में बंद कर लिया था जिसका काम अब खत्म हो चुका था।
क्योंकि बचपन निर्दोष और मासूम होता है। पर इस आधुनिक दुनिया में मासूमियत की कोई आवश्यकता नहीं है और न ही उन बेवकूफ लोगों की जरूरत है जो बिना सोचे-समझे दोस्ती हो या रिश्तेदारी गले से लगा कर बैठ जाते हैं ये देखे बिना कि सामने वाले को उनकी जरूरत है या नहीं। आज उसने एक सबक सीख लिया था।
© रचना कंडवाल