प्रायश्चित – सरोज देवेश्वर : Moral Stories in Hindi

आज बेटी पराई हो जाएगी. ये सोचकर सुधा कुछ उदास सी हो गई. वो दिल का टुकड़ा जिसे रात रात भर जागकर पाला. कितनी कमजोर थी. डॉक्टर ने भी उसके पैदा होने  पर कोई  संतोषजनक उत्तर नहीं दिया था. फिर भी उसनेआशा नहीं छोड़ी थी. डॉक्टर्स की दी हिदायतों का अक्षरशः पालन  किया. वसुधा के पालन पोषण में दोनों  इतने व्यस्त हुए कि उन्होंने दूसरे बच्चे के बारे में कभी सोच ही नहीं. देखते ही देखते सुधा की वसुधा एक ज़हीन  खूबसूरत बेटी आज विवाह के लिए तैयार ख़डी थी.

लडके वालों ने तो उसे और उसकी क्वालिफिकेशन को देखकर ही पसंद कर  लिया था. सुधा के दिमाग़ में चलचित्र कि भांति सारे दृश्य चल रहे थे कि पति विमल ने उसके कंधे पर हाथ रखा. उसने चौककर मुड़कर देखा उसकी आँखें  आंसुओं से भरीथी. विमल पत्नी की  मनःस्थिति   समझ रहा था. अपनी भावनाओं को दबाकर उसने बारात आने की सूचना दी और बारात के स्वागत के लिए सुधा का हाथ पकड़कर तेजी से स्वागत गेट की तरफ बढ़ गया.  मिलनी की रस्म शुरू हुई. न जाने क्यों सुधा का दिल बड़ी तेजी से धड़क रहा रहा था. मिलनी की रस्मों में महिलाओं की दखलंदाजी नहीं हो पाती. वे सब सुधा से मिलने में व्यस्त हो गई. अब सभी स्टेज की तरफ बढ़े .

                       दूल्हा स्टेज पर अl गया. कुछ ही मिनटों  में सहेलियां वसुधा को लेकर स्टेज पर पहुंच गयी. अब चारों तरफ से हंसी मजाक और कैमरों की चमक आपने शबाब पर थी. वातावरण अत्यंत जीवंत हो उठा था. जयमाला की रस्म शुरू होते ही वसुधा की सहेलियां और दूल्हे के मित्रों में छेड़खानी चुहलबाज़ी के बीच जय माला सम्पन्न हुई.

                   एक एककर सभी स्टेज पर आशीर्वाद, शुभकामनायें देकर फोटो खिंचवा रहे थे. एकाएक सुधा की नज़र स्टेज के किनारे खड़े व्यक्ति पर पड़ी. उसे पहचानने में उसे ज्यादा वक़्त नहीं लगा. उसे तो वह हज़ारों में भी पहचान लेगी समय ने चाहे उसके चेहरे पर अपनी छाप छोड़ी हो पर वो भूल नहीं सकती. ऎसा नहीं कि  उसके पति विमल में कोई कमी थी किन्तु किरीट को देखकर उसके दिल में एक हूक उठी.

              विमल उसके बगल में आकर स्टेज पर चलने का आग्रह करने लगा. मोहतरमा इस नाचीज़ के साथ एक फोटो खिचवाने का कष्ट कर हमें धन्य करें. विमल सुधा को उदास देखकर  अक्सर मज़ाक कर देता और सुधा के चेहरे पर मुस्कान आ जाती. दोनों दोनों स्टेज पर पहुंचे. साथ ही समधी और समधन भी.

                  उन्होंने स्टेज के किनारे खड़े उस व्यक्ति यानि  किरीट को इशारे से बुलाया. सुधा का कलेजा मुँह को आ गया. शंकाओ से घिरी सुधा को लगा कहीं ये विमल को पिछली बातें तो नहीं बता देगा! मिलनी के वक़्त विमल और किरीट की मुलाक़ात हो चुकी थी दोनोंको  घुलमिलकर बातें करते देख  सुधा को कुछ राहत मिली.

                 अमेरिका  में सैटल था तब किरीट कुछ समय के लिए भारत आया था और घर वालों के दवाब में आकर सगाई की रस्म के लिए तैयार हो गया. सभी के कहने पर लड़की सुन्दर,  सुशील,  पढ़ीलिखी और संस्कारी है. परन्तु सगाई के वक़्त सुधा की सादगी देख, उससे पहले कि  सगाई की रस्म हो सुधा से कुछ देर बात करने की इच्छा जाहिर की और रस्म शुरू होने से पहले ही किरीट ने अपना निर्णय सुना दिया. उसके घर वाले

नाराज ही नहीं शर्मिंदा भी हुए. किंतु किरीट की अपनी सोच थी. वह  तथाकथित  मॉर्डन जीवन साथी की तलाश में था सुधा से बातें करने के बाद उसने धारणा बना ली कि वह पाश्चात्य सभ्यता के अनुरूप नहीं चल पाएगी.

                   रिश्ता तो टूटा साथ ही सुधा के माता, पिता भी भीतर से टूट से गए. किरीट से रिश्ता जोड़ने  के लिए उन्होंने पांच महीने का लम्बा इन्तजार किया था. इतने समय में वो सुधा का पहला प्यार बन चुका था, किन्तु किरीट ने चंद मिनटों में सारे सपने चकनाचूर कर दिए थे.

                     सुधा अपनी हताशा को अपने जीवन पर हावी नहीं होने दिया. माता पिता के मायूस चेहरे देख उसने ठान लिया अब इस घर में मनहूसियत का एक भी कतरा नहीं रहने देगी. हालांकि किरीट के शब्दों ने उसके दिल को लहूलुहान कर दिया था.

                      पढ़ने में हमेशा अव्वल रहने वाली सुधा से लेक्चरर भी बहुत सी अपेक्षाएं रखते थे. उसने जी जान से एम फिल. फिर पी. एच. डी  की. कुछ किताबें भी लिखी  आज उसे किरीट पर क्रोध नहीं आ रहा था बल्कि उसने उसे मन ही मन धन्यवाद दिया उसकी नकारत्मकता ने सुधा के जीवन में सकारात्मकता भर दी थी. 

          विमल से मुलाक़ात उसकी कालेज में ही हुई थी अपनी बहन के दाखिले के सिलसिले में आया था. कॉरिडोर में सुधा से टकराया. हाथ में पकड़े सारे रजिस्टर गिर गए उन्हें उठाने में मदद क्या की मानो  ईश्वर ने ये उन्हें मिलाने का संयोग बनाया. पहली मुलाक़ात में विमल ने उसे इतना सहज कर दिया कि सुधाकी  अक्सर विमल  से भेंट हो जाती वो उसकी तरफ खिचती चली गई. विमल उसे पसंद करने लगा था. उसने एक दिन   बिना लाग – लपेट के सुधा के सामने शादी का प्रस्ताव रखा. जिसे सुधा ने मन ही मन स्वीकार करते हुए मम्मी पापा से मिलने को कहा. इस प्रकार दोनों परिवारों में बिना दान दहेज के विवाह संम्पन्न हुआ.

                  अभी  सुधा अपने ख्यालों से बाहर ही न निकली थी कि   विमल ने  उसका हाथ पकडकर किरीट के सामने खड़ा कर दिया और मुस्कुराते हुए परिचय दिया समधीजी ये मेरी होनहार श्रीमतीजी यानि आपकी समधन है.सुधा ने नमस्ते की और कुछ असमंजस में रही कि किरीट संमधी  कैसे हुआ ! खैर फोटो खिचवा कर वो तेजी से स्टेज से नीचे उतर गई उसकी सांस धौकनी कि तरह चल रही थी.

                    लोग खाना ख़ाकर जा चुके थे. फेरो को अभी कुछ समय बचा था वो अपने पति के पास आकर बैठ गई. कुछ दूरी पर किरीट को अकेले बैठे देख सोचने लगी कैसी होगी इसकी मॉर्डन बीवी और बच्चे. फेरे शुरू होने वाले थे पंडित आ चुके थे. विमल के बुलाने पर उसकी तंद्रा भंग हुई. दोनों पति पत्नी ने जल छोड़कर कन्यादान किया. हंसी मजाक चलता रहा. सप्तपदी के साथ बेटी बंधती जा रही थी और मायके के बंधन से मुक्त हो एक नई दुनिया  में उड़ान भरने कि तैयारी कर रही थी. जननी का दिल  बैठा जा रहा था.

                  सुधा भारी मन से एक तरफ ख़डी थी उसकी आँखों के कोर आंसुओं से भरे हुए थे. अचानक किरीट उसके सामने हाथ जोड़कर शालीनता से खड़ा था. बोला सुधा जी इन  कीमती आंसुओं को इस तरह मत बिखरने दीजिये. आपकी बेटी अब मेरी बेटी हुई. आज मेरे दिल का बोझ कुछ कम हुआ. मेरे बेटे ने अनजाने मेंमेरे पाप का  प्रायश्चित कर दिया.

                आज सुधा किरीट का एक दूसरा रूप देख रही थी.  उसने सुधा से केवल माफ़ी ही नहीं मांगी बल्कि अपने जीवन का मानो कच्चा चिट्ठा खोल दिया. कैसे उसकी पत्नी इस छोटे से बेटे को छोड़ कर किसी अंग्रेज मित्र के साथ चलीगई. वो पहले ही माँ नहीं बनना  चाहती थी. बेटे को लेभारत आकर अपने भाई भाभी जो बे औलाद थे सौपकर चले गया उन्होंने ही इसे पाला.

                पत्नी कि उपेक्षा ने मुझे तोड़ कर रख दिया था उन दिनों मेरे द्वारा किया गया आपका अपमान कचोटता था. शायद मुझे उसी पाप की  सजा मिली थी. किरीट कि आँखों में चेहरे पर पश्चाताप कि रेखाएं देखी पड़ी जा सकती थी. सुधा बहुत कुछ कहना चाह रही थी परन्तु उसके मुख से शब्द ही बाहर नहीं आ रहे थे.

             कुछ दूरी पर खड़ा विमल सब सुन चुका था उसकी आँखों में आँसू थे. उसे किरीट से हमदर्दी सी हुई. माहौल कि उदासी तोड़ने के लिए वो तेजी से दोनों के बीच आकर खड़ा हो गया. बोझिल वातावरण को दूर करने के लिए जोर से हँसते हुए बोला श्रीमती जी बेटी के विदाई का समय हो गया.

                   मुस्कुराने कि नाकाम कोशिश करते हुए उसने किरीट की  तरफ देखा और विमल के संग  बेटी को  विदा कराने चल पड़ी.  

                      सरोज देवेश्वर

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