नरेश जी और सुमेधा जी अपने कमरे में बैठे हुए एक दूसरे के साथ पुरानी यादों को ताजा कर रहे थे कि अचानक से छोटे बेटे गौरव ने दरवाजे पर दस्तक देकर अंदर झांका और कहा ” पापा चाय चलेगी क्या..?” नरेश जी थोड़ा अचंभित हुए और मन में सोचा कि बेटा चाय पूछने आया है भई सूरज कहां से निकला
पर फिर कुछ सोचकर मुस्कुराए और बोले “जरूर पियेंगे भई दिल भी कर रहा है कुछ गरम-गरम पीने का।” “तो फिर बाहर आईए धूप भी सेंकते हैं और चाय भी पीते हैं।” गौरव ने कहा और चला गया। सर्दी का मौसम था कुनकुनी धूप खिली हुई थी और दोनों का दिल भी चाह रहा था कि थोड़ी देर धूप में बैठे कि अचानक से ऐसा न्यौता मिला
तो दोनों तैयार हो गए। नरेश जी ने पत्नी के तरफ देखा वह आंखों में प्रश्न लिए पति की तरफ देख रही थी । पति को अपनी ओर तकते देखकर बोली “आज उल्टी गंगा कैसे बहने लगी..?” “अरे चलो बाहर उल्टी गंगा तभी बहती है जब कुछ मतलब होता है। अंदाजा तो बहुत दिनों से हो रहा था कि चारों बहू बेटों में कुछ खिचड़ी पक रही है और क्या पक रही है
इसका भी मुझे पता था पर मैं भी इंतजार में था कि अभी तेल देखो और तेल की धार देखो । मौका आ गया है बस तुम देखते जाओ मैं बोलूंगा और तुम सुनना जहां लगे वहां पर जरूर बोलना मैं तुम्हारे साथ हूं फिक्र मत करो आज कुछ तो नतीजा निकलेगा ही चलो…” कहते हुए उन्होंने अपनी छड़ी उठाई
और पत्नी की तरफ हाथ बढ़ाया पत्नी हाथ थाम कर उठी और बोली “आप चलो मैं जरा वॉशरूम होकर आती हूं।” “ठीक है” कह कर नरेश जी बाहर निकल गए सुमेधा जी जब तक बाहर आई चाय और पकौड़ों के साथ सभी उनका इंतजार कर रहे थे सौरभ, बड़े बेटे ने उठकर उन्हें अपनी कुर्सी पर बिठाया और दूसरी कुर्सी खींचकर बैठ गया
सभी चाय और पकौड़ों का आनंद लेने लगे और एक दूसरे को इशारे भी करने लगे कि बात शुरू करो। नरेश जी तटस्थ भव से चाय के चुस्कियां लेते रहे और कनखियों से जायजा भी लेते रहे । तभी गौरव ने बात शुरू की और बोला “पापा ऐसा है आज बच्चे हैं नहीं हमारी नव्या नानी के घर गई है और भैया के बच्चे भी स्कूल के साथ पिकनिक कर गए हैं
तो सोचा आज थोड़ा खुल कर बात हो जाएगी।” “हां ठीक है… बोलो क्या बात करनी है?” नरेश जी ने कहा । “पापा हम सब अलग रहना चाहते हैं हम दोनों ने एक-एक फ्लोर फाइनल किया है उसकी आधी पेमेंट कर चुके हैं बाकी पेमेंट 3 महीने बाद करनी है तो मकान की रजिस्ट्री हमारे नाम हो जाएगी अब हम लोग चाहते हैं कि आप हम दोनों को हमारा हिस्सा दे दे
तो हमारा बाहर ही बाहर से काम हो जाएगा । आप अपनी और मम्मी की चिंता मत करिए एक मेरे पास रहेगा और दूसरा बड़े भैया के पास तीन-चार महीने के बाद आप लोग चेंज कर लेना हमारे लिए भी ठीक रहेगा और आपको भी अच्छा लगेगा । क्यों भैया…?” उसने बड़े भाई की तरफ देखकर कहा और भाई ने सहमति में सिर हिला दिया।
नरेश जी ने हुंकार भरी और फिर कहा “यही कुछ या कुछ और भी कहना है…?” “वो क्या है पापा, मम्मी के पास कुछ गहने भी हैं और कुछ सोने की गिन्नियां भी हैं तो उसका भी बंटवारा कर दें अब मम्मी ने तो कहीं जाना है नहीं, बेशक आप अपने पास रखिए पर बांट दीजिए कि किसको क्या मिलेगा तो फिर बाद में दिक्कत नहीं होगी”
बड़ी बहू रिचा ने बहती गंगा में हाथ धोने का प्रयास किया और विजयी भाव से अपनी देवरानी स्मिता की ओर देखा । नरेश जी ने चाय का प्याला मेज पर रखा और फिर कुर्सी पर आराम से बैठ गए। एक गहरी नजर से सबको देखा और फिर प्रश्न पूछा “पहले तो ये बताओ कि ये फ्लोर कब लिए, उसकी पेमेंट कहां से की और हमें बताने की जरूरत भी नहीं समझी?”
” वो क्या है पापा सोचा जब सब कुछ फाइनल हो जाएगा तो आपको बता देंगे। आपने कोई मना थोड़ी ही न करना था, इसीलिए नहीं बताया।” गौरव ने बेशर्मी से कहा। “हम्मम…” कहते हुए नरेश जी ने चाय का कप मेज पर रख दिया फिर कहा “अब ये बताओ कौन से हिस्से की बात कर रहे हो….इस मकान के…?”
“जी पापा, इसको बेच देते हैं और आप हम दोनों को आधा आधा हिस्सा दे दो। आप दोनों को गौरव ने बताया न कि कोई प्रॉब्लम नहीं होगी हम दोनों के पास आप लोग रहोगे।” सौरभ ने कहा। “और संगीता, तुम्हारी बहन का हिस्सा…?” सुमेधा जी की आवाज आई। स्मिता ने एकदम तुनक कर कहा ” बेटियों को किस बात का हिस्सा…?”
और सुमेधा जी ने तुरंत प्रतिक्रिया दी “अच्छा हमने तो सुना है कि तुमने अपने भाइयों पर केस किया है जायदाद में अपना हिस्सा पाने के लिए। तुम भी तो बेटी हो उस घर की फिर मायके से किस बात का हिस्सा…?” और स्मिता की जुबान पर जैसे ताला लग गया। नरेश जी ने अब कमान अपने हाथ में ली और कहा…”मुझे बहुत ताज्जुब हो रहा है
कि तुम लोग अपना हिस्सा मांग रहे हो । किस बात का हिस्सा ? इस मकान की एक एक ईंट मैने लगवाई है। इस घर के मासिक खर्चों में तुम लोगों की कितनी भागीदारी है…? पूरे घर का खर्च हम उठाते हैं, सारे बिल की पेमेंट हम करते हैं, मैड, ड्राइवर और कुक की मासिक सैलरी हम देते हैं। भूल गए तुम लोग कि संगीता की शादी के समय मैने कहा था
कि तुम दोनों कितनी कितनी हेल्प कर सकते हो तो दोनों ने क्या जवाब दिया था कि पापा हमारे तो हाथ तंग हैं, हमारे अपने ही खर्चे ही इतने हैं कि सैलरी ही पूरी नहीं पड़ती तो कहां से दें, हां 10-20 हजार जरूर दे सकते हैं जैसे मुझ पर एहसान कर रहे हो जबकि तुम चारों साल में दो बार 15-15 दिन के लिए घूमने जाते रहे हो।
मकान की रेनोवेशन पर एक पैसा तुम दोनों ने नहीं दिया जबकि कहा भी तुम लोगों ने था रेनोवेट करवाने के लिए। अब एक एक फ्लोर ले लिया हमे कानोंकान खबर नहीं होने दी। तुम क्या समझते हो हमे पता नहीं है । बाप हूं तुम्हारा इतनी तो आँखें और कान खुली रखता हूं। पता है बरखुरदार जब तुम लोग पेमेंट करने गए थे तो मुझे पता था
कि किस बिल्डर से कितने का लिया है। कहो तो पूरी डिटेल्स दूं तुम्हे…? वो तो ऊपर वाले का शुक्राना है कि हम दोनों की अच्छी खासी पेंशन आती है तो चिंता की कोई बात नहीं। तुम्हारे बच्चों की देखभाल का, पढ़ाने का, उन्हें शाम को पार्क में ले जाने की जिम्मेदारी हमारी, तुम लोगों को कहीं बाहर जाना हो
तो बच्चे हमारे पास छोड़कर आराम से चले जाते हो हमने कभी भी कुछ नहीं कहा कि कोई बात नहीं अभी घूमने फिरने के दिन हैं और हम भी बैठे हैं पर तुम लोगों ने कभी सोचा कि मम्मी पापा की भी उम्र हो गई है मैं 77 का और तुम्हारी मां 74 की हो गई है हमें भी चेंज की जरूरत होगी, हमारा भी कभी मन होता होगा बाहर जाने का पर नहीं तुम चारों आत्मकेंद्रित हो चुके हो
बस मैं और मेरे बच्चे इसके आगे तुम लोग की लकीर खत्म हो जाती है। ये घर मेरी अपनी मेहनत से बना है मैने अपने ऑफिस से, दोस्तों से, तुम्हारे नानाजी की सहायता से बनवाया है तुम लोगों ने आज तक एक भी पैसा नहीं लगाया इस पर तो तुम्हारा हिस्सा कहां से आ गया और तुम लोगों ने बुढ़ापे में ही हमें बाँट दिया
वो भी बिना हमारी मर्जी जाने। तो ऐसा है बेटा मैने ये घर अपने सिर पर लाद कर तो ले जाना नहीं है पर जब तक सांस ले रहे हैं हम तब तक तो इस घर पर नजर डालना नहीं। मैने अपनी वसीयत बनवा ली है मेरे बाद ये घर तुम्हारी मां का होगा और उसके बाद इसके तीन हिस्से होंगे संगीता का भी हिस्सा है वो भी हमारी औलाद है
और उसमें ये भी लिखवाया है कि तुम्हारी मां ये घर बेच नहीं सकती क्योंकि मैं तुम्हे भी जानता हूं और तुम्हारी मां को भी.. कहीं पैसों के लिए तुम अपनी मां को ही मूर्ख बना दो समझ रहे हो न emotionally fool” सुमेधा जी ने बात का सिरा अपने हाथ में लिया और कहा “मुझे ताज्जुब होता है ये सोचकर कि जिन्हें हम अपने घर लाते हैं
अपनी बहू बना कर वो पूरे घर की मालकिन हो जाती है और उसी घर की बेटी का अधिकार ही खत्म हो जाता है। तुम्हीं बताओ रिचा और स्मिता तुमने आज तक संगीता को दिया क्या है ? दो साल हो गए न उसकी शादी को एक सूट तो कभी दिया नहीं अब उसका हिस्सा देने में भी तुम्हे ऐतराज है । क्यों वो हमारी औलाद नहीं है या लड़की है
तो बाप की जायदाद पर उसका हक नहीं है पर तुम्हारा पूरा हक है ? राखी और भाई दूज भी हम देते हैं क्योंकि तुम लोगों की जेब से तो कुछ निकलना है नहीं।” “और हां एक बात और…. आज जब बात उठ ही गई है तो मैं भी कह रहा हूं कि तीन महीने के बाद जब तुम लोगों की फाइनल पेमेंट हो जाए तो अपने अपने घरों में शिफ्ट हो जाना
मैं ऊपर का पोर्शन किराए पर चढ़ा दूंगा फिर हम दोनों की पेंशन और किराए से हम दोनों आराम से, अपनी मर्जी से बुढ़ापे का आनंद लेंगे। जब तक हम दोनों साथ हैं है जी लें एक के जाने के बाद तो पता ही है
कि कैसे जीना पड़ेगा।” बात समाप्त करते ही नरेश जी ने उठते हुए कहा “चलो सुमी पार्क चलते है” कहते हुए उन्होने पत्नी की तरफ हाथ बढ़ाया। गेट की तरफ बढ़ते हुए कुछ क्षण थमे फिर पलट कर कहा
“मैं तुम्हे बददुआ नहीं दे रहा हूं पर इतना जरूर कहूंगा जब तुम हमारी उम्र पर पहुंचोगे तो पता चलेगा कि औलाद की बदलती नजर, बदलता रवैया कितना तकलीफदेय होता है।” पीछे चारों को आवाक छोड़ते हुए नरेश जी सपत्नी बाहर की तरफ चल दिए।
शिप्पी नारंग
06/01/2025