पोते का सुख – सीमा वर्मा

‘ माँ ,अब आपने यह क्या मसला उठाया हुआ है ? ‘

‘ क्या हुआ बेटे ? सुबह-सुबह ही तू इतना उखड़ा हुआ क्यों है ? ‘

— चौंक उठी कल्पना 

‘ तो बात बेटे तक पहुँच चुकी है ‘

कल शाम ही की तो बात है।

जब कॉलोनी के पार्क में अपनी सहेली वृंदा को उसकी प्यारी सी पोती के साथ

देख कर कल्पना का मन भी मचल गया था।

कित्ते प्यार से वो नन्हीं सी गुड़िया उसकी बांहें थाम कर गले से लिपटी अपनी तोतली आवाज में उन्हें ,

‘ दादी – दादी … बुला रही थी ‘

उनकी आंखें भर गयी थीं।

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बस उसने घर लौट कर बहू से अपनी पुरानी इच्छा कह डाली।

बदले में ,

बहू द्वारा आज सुबह से ही किचन में बर्तन पटकने का राज अब जा कर खुला है।

वे मुस्कुरा पड़ीं… तभी बेटे की आवाज कान में आई

‘ उफ्फ… माँ अब आप ऐसे रिऐक्ट तो मत ही करिए जैसे कुछ मालूम नहीं है’

‘ ऐसे किस तरह जानूँगी बेटे तुम्हारे दिल की बात ? ‘

‘ देखिए माँ, मैं और नीमा आपकी बहू हम दोनों ही बालिग ,समझदार और जॉब में हैं ,

हैं ना ? ‘

‘बिल्कुल! सही है बेटे ‘

‘फिर आपकी यह जिद कि साथ खेलने को बच्चे चाहिए अच्छी लगती है क्या ? माँ यह रोज की टोका-टाकी सुनकर हम बोर हो गये हैं।

‘ दिस इज एनफ़’ अब आप हमें अपनी जिंदगी जीने दे बस ‘

— कल्पना कुछ सोचती हुई बोली।

‘ बेटा, पिछले तीन सालों से यही तो कर रही हूँ और कितनी राह देखूँ ?

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क्या इसलिए ही अपने सब शौक मार तुम्हें पढ़ा-लिखा कर तुम्हारी पसंद की वर्किंग लड़की से शादी की थी ‘ ।

‘ ताकि तुमलोग अपने ऑफिस में बिजी़ रहो और हम घर की दीवारें और टी वी देख कर दिन गुजारा करें ‘

‘सही है बेटे ,

‘ एनफ़ इज एनफ़ ऐन्ड नो मोर नाऊ ‘

आखिर और कितना इंतजार करें हम दादा -दादी बनने का ? ‘

हमें भी अधिकार है पोते-पोती खिलाने का ‘

साफ-साफ कह रही हूँ ,

‘ अब या तो हमें दादा-दादी बनाओ या अदालत में हमारी अपील का सामना करने को तैयार रहो ‘

रोष से भरी हुई कल्पना बोल उठी।

उसकी आंखों के सामने वृंदा की पोती ‘गुड्डी’

का प्यारा नटखट सलोना चेहरा अभी भी नाच रहा है ।

       सीमा वर्मा /नोएडा

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