पिया का घर अपना लगे – संगीता त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi

आखिर कनक की खोज पूरी हो गई, महिका उसे पहली नजर में पसंद आ गई।सबसे बड़ी बात शादी उसी शहर में तय हुई जहाँ कनक रहती थी।बेटे कनिष्क ने भी अपनी पसंदगी की मुहर लगा दी। नियत समय पर कनिष्क और महिका की शादी हो गई। कनक ने बड़े अरमानों से बहू की आरती कर गृहप्रवेश कराया।

शादी के बाद कनिष्क और महिका घूमने चले गये। कनक भी शादी की थकान मिटाने और घर को ठीक -ठाक करने में लगी थी। अब जो भी मिलने आता यही कहता अब तो तुम्हारे आराम के दिन आ गये,घर सँभालने को बहू आ गई। अब आराम ही आराम हैं।सुन -सुन कर कनक को भी लगता बस अब महिका घर संभाले,

वो तो अब अपनी लाइफ एन्जॉय करेंगी। महिका और कनिष्क भी घूम कर आ गये, शादी की हलचल समाप्त हो जीवन अपने ट्रैक पर आ गया। कनिष्क ने ऑफिस ज्वाइन कर लिया पर महिका की छुट्टी अभी बाकी थी।महिका लोकल मायका होने से अक्सर मायके जाती रहती थी। जब भी कोई मेहमान आने की खबर आती, महिका अपने मायके चली जाती।

कनक रोज सवेरे उठ कर रसोई के कामों के लिये महिका का इंतजार करती पर महिका कमरे से बाहर तभी निकलती जब कनिष्क ऑफिस के लिये निकल रहा होता। कनिष्क के ऑफिस जाते ही महिका अपना नाश्ता और चाय ले कमरे में चली जाती, नाश्ते के साथ ही फोन पर अपनी मम्मी से बात करती रहती।इधर कनक ना महिका को कुछ कह पाती ना महिका ही कनक की मदद करने के लिये सोचती।

कुछ समय बाद महिका ने भी ऑफिस ज्वाइन कर लिया। कनक की जिंदगी और कामों में कोई बदलाव नहीं आया। पहले वो पति राजेश और बेटी कनिका और बेटा कनिष्क का लंच पैक करती थी अब एक लंच का एक टिफ़िन महिका का बढ़ गया। शनिवार -इतवार सब साथ नाश्ता करते थे,

पर महिका अपने कमरे में ही अपना नाश्ता ले जाती थी। कई बार कनक उसे साथ बैठ कर नाश्ता करने को बोलती पर महिका कान ही ना देती। ससुराल में वो इस तरह रहती मानों पेइंग गेस्ट हो।

दिवाली पास आ रही थी, कनक घर की साफ -सफाई में जुटी थी। तभी मोबाइल की घंटी बजी देखा महिका की मम्मी का कॉल था। शाम को उन्होंने सब को खाने पर बुलाया। सब की रजामंदी ले कनक ने हाँ कर दी।महिका ऑफिस से सीधा अपने मायके चली गई थी।शाम को सब लोग महिका के घर पहुंचे, तो आश्चर्य चकित थे, हमेशा अपने कमरे में घुसी रहने वाली महिका, रसोई में अपनी मम्मी की मदद करा रही थी। ससुराल में तो वो हमेशा कोई ना कोई बहाना करके रसोई में नहीं आती। घर में झगड़ा ना हो इसलिये कनक भी चुप रह जाती।

खाने के बाद सब ड्राइंग रूम में बैठे गप्पे मार रहे थे, कनक ने समधन से घर के सजावट की तारीफ की -ड्राइंग रूम तो बहुत सुन्दर सजाया हैं। “अरे ये सब तो महिका ही सजाती हैं, मै तो मार्केट जा नहीं पाती हूँ, मुझे जो जरूरत होती,महिका ही सब ऑनलाइन मांगवाती हैं, अब देखिये ना ये कारपेट इतना महँगा हैं, मैंने महिका को मना किया था फिर भी मंगवा दी “महिका की मम्मी सुजाता जी ने कहा। कनक चुप हो गई,उसे कुछ दिन पहले ली बात याद आ गई, कनक ड्राइंग रूम के लिये यही कारपेट खरीदना चाह रही थी

कनिष्क ने कहा वो ऑनलाइन मंगवा देगा पर व्यस्तता के चलते नहीं मंगवा पाया उसने महिका को बोला। महिका ने तुरंत हामी भर दी पर कारपेट का दाम देख, आज तक नहीं मंगवाया। सब के सामने वो कनक को बोलती -मम्मा आपको जो भी मँगवाना हो मुझे बोलिये, पर जब कनक कहती तो हाँ बोल कर भी नहीं मंगवाती।हार कर कनक खुद ही बाजार जा सामान ले आती।महिका ने इस घर को अपना मान ही नहीं पा रही थी।ससुराल में उस पर कोई बंदिश नहीं थी

ना ही कोई रोक -टोक था, फिर भी जाने क्यों महिका अजनबी सी बनी रहती।कनिष्क कई बार समझाता भी हैं थोड़ी -बहुत मम्मी की हेल्प कर दो तो उनको भी अच्छा लगेगा।”आखिर ये घर तुम्हारा भी हैं “पर महिका माने तब ना।

कनक थोड़ी उदास हो गई वो महिका को बेटी मानती हैं हमेशा उसके बर्थडे और मैरिज एनिवर्सरी पर उपहार देती,पर महिका उसे माँ नहीं मान पाई। उसके अवचेतन में सास का खराब रूप ही था। कनक जी की उदासी महिका के पापा भाँप गये। उस दिन तो उन्होंने कुछ नहीं कहा पर एक दिन जब महिका ऑफिस से सीधा वही आई तो उन्होंने पूछ लिया -महिका अपनी मम्मीजी को बताई हो तुम यहाँ आई हो “

“कैसी बात करते हैं जी, महिका अपने घर ही आई हैं, इसमें पूछने की क्या बात “सुजाता जी ने कहा, और अपनी बहू से चाय लाने को बोला।

“पर सुजाता, बहू तो अपनी माँ के घर यानि अपने घर गई हैं “

“अपनी माँ के घर गई और मुझे बताया भी नहीं, आने दो आज क्लास लेती हूँ, लोकल मायका का मतलब ये थोड़ी नहीं कि जब देखो मायके में पड़ी रहे और तो और हमेशा कोई ना कोई कीमती उपहार ले कर जाती हैं “सुजाता ने गुस्से से कहा।

“अभी तो तुमने महिका को कहा था कि ये उसका घर हैं तो सास को बताने कि जरूरत नहीं, पर जब बात अपनी बहू की आई तो नियम कैसे बदल गये, महिका जब मन चाहे आ सकती तो वो भी अपने घर बिना बताये और जब मन करें जा सकती हैं, और महिका महंगे उपहार लाती हैं तब तुम्हे बुरा नहीं लगता, वैसे बहू के घर वालों को बुरा क्यों लगेगा “।

“वैसे महिका, एक बात बताओ, क्या तुम्हारी सासु माँ तुमको डांटती हैं या प्रताड़ित करती हैं “

“नहीं पापा, वैसा कुछ भी नहीं, बस मै उनके करीब नहीं हो पाती हूँ “

“तुमने कभी करीब जाने की कोशिश की बेटा, तुम उस घर में गई हो, जगह तुम्हे बनानी हैं, वो तुम्हारा भी घर हैं.यहाँ तो तुम्हारे रिश्ते बने हैं पर वहाँ तुम्हे बनाने पड़ेगे तभी तुम सबको अपना मान पाओगी।यहाँ तो तुम्हारी भाभी हमेशा तुम्हारी माँ के करीब रहने की कोशिश करती, उनकी जरूरतों पर ध्यान देती, जबकि तुम्हारी मम्मी उसे हमेशा डांटती रहती,सोचो अगर वो भी तुम्हारी सोच रखती तो आज तुम भी यहाँ ना आ पाती।हम लोग भाग्यशाली हैं जो हमें समझदार बहू मिली “पिता की बातों में सच्चाई थी.।

महिका और सुजाता जी दोनों ने एक दूसरे को देखा। महिका बैग उठा बोली -पापा आप ठीक कह रहे, मुझसे गलती हो गई, हाँ वो घर अब मेरा भी हैं, कोशिश करुँगी की वहाँ मम्मी जी को या परिवार के किसी सदस्य को मेरी वजह से तकलीफ ना हो “कह बाहर निकल गई। सुजाता जी बोली -मै बेटी के मोह में सही -गलत का फर्क भूल गई थी। आपने समय पर मेरी ऑंखें खोल दी।

महिका घर पहुंची तो सब उसका इंतजार कर रहे थे। महिका ने बड़े से बंडल को कनक के पास रखते बोली -मम्मी आप का कारपेट में ले आई और अपने परिवार के सभी सदस्यों के लिये दिवाली के लिये नये कपड़े भी “।

महिका में आये इस सुखद बदलाव ने परिवार में सिर्फ खुशियाँ ही नहीं लाई बल्कि कनिष्क की नजरों में महिका का मान भी बढ़ गया।पिता की सारगर्भित बात सुन महिका को रिश्तों की अहमियत समझ में आ गई। अब उसके सास -ससुर भी अपने को भाग्यशाली समझेंगे जैसे उसके पिता अपने को समझते हैं, क्योंकि अब महिका को पिया का घर अपना लगने लगा।

सखियाँ आप क्या कहती हो, महिका की मम्मी ठीक कर रही थी या उसके पापा ने सही समझाया। अक्सर एक लड़की के सामने बचपन से ससुराल और सास -ननद की भयावह तस्वीर खींच दी जाती। सास -ननद बुरी होती हैं और ससुराल में रहना जेल में रहने के बराबर होता हैं। जबकि ऐसा नहीं हैं, बुरा तो कोई भी रिश्ता हो सकता हैं।

हाँ अपनी तरफ से कोशिश करें रिश्ता बनाने की ना कि तोड़ने की।मायके में आपके रिश्ते बने होते हैं पर ससुराल में बनाने पड़ते हैं। कुछ लोग बना लेते पर कुछ लोग कोशिश ना कर सबको बुरा -भला कहते हैं। मायके में भी तो माँ -पिता डांटते थे या वहाँ भी कहीं जाते समय आप बता कर जाते थे, फिर ससुराल में यही बात बुरी क्यों हो जाती, क्योंकि हम उसे अपना घर नहीं समझ पाते।

संगीता त्रिपाठी

VM

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