अलार्म के बजते ही सोनाली की नींद खुल गई । उसे लगा कि पाँच मिनट और सो जाती हूँ फिर लगा कि नहीं एक मिनट देरी की तो सारे काम पीछे हो जाएँगे और ऑफिस के लिए लेट हो जाऊँगी सोचकर अलसाए हुए शरीर को लेकर बाथरूम की तरफ़ फ्रेश होने के लिए बढ़ी ।
रसोई में पहुँचने के पहले वह एक बार बच्चों के कमरे में झाँक कर देखती है । सोनाली की दो बेटियाँ हैं दोनों बच्चियाँ आगे की पढ़ाई करने के लिए दूसरे शहर चली गई थी । वहाँ उस कमरे में अब सास ससुर रहते हैं परंतु मालूम नहीं क्यों उसे बच्चों का कमरा ही कह देती है ।
उसने देखा कि सास ससुर उठ गए थे और अपने ब्लेंकेट घड़ी कर रहे थे । सोनाली को देखते ही सास ने कहा कि इतनी जल्दी उठ गई सोनू मैं आ ही रही हूँ ना सारा काम अकेली अपने सर पर लेकर करती है सासु माँ यह भी कोई काम है कहते हुए वह जल्दी से रसोई में पहुँचकर दूध गरम करने के लिए रखती है और पानी गरम करके दो गिलासों में भरकर उसमें नींबू और शहद डालकर डाइनिंग टेबल पर सास ससुर के लिए रखती है ।
उसे पीकर वे दोनों वाकिंग पर चले जाते हैं चालीस मिनट की वाकिंग कर लेते हैं ।
यह आदत सोनाली ने ही उनसे करवाया था । पहले तो वे वॉक पर जाना पसंद नहीं करते थे । लेकिन अब उनकी आदत हो गई है बिना कुछ कहे वे रोज वॉक पर चले जाते थे । वहाँ से आते ही सोनाली उन दोनों को चाय बनाकर देती है । चाय पीकर सासु माँ उसकी मदद करा देतीं हैं ।
दस बजते ही पति पत्नी दोनों को ऑफिस के लिए निकलना पड़ता है ।
अपनी सास को देख सोनाली सोचती है कि वह बहुत ही खुशनसीब है जो उसे इतनी अच्छी सास मिली है ।
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उसे याद है इसके लिए उसे कितना संघर्ष करना पड़ा था । वह नई नवेली दुल्हन बनकर इस घर में आई थी । अपने घर में पढ़ाई परीक्षा इसी में वह डूबी रहती थी । अभी उसकी पढ़ाई पूरी हुई थी कि नहीं उसकी शादी करा दी गई थी यह कहते हुए कि बहुत अच्छा रिश्ता है चार बहनों के बीच अकेला लड़का है । उसकी बहनें अभी छोटी हैं और पढ़ रहीं हैं ।
मैंने डरते हुए उस घर में पैर रखा था । मैं ज़्यादा बात नहीं करती थी । सुबह साढ़े छह बजे से पहले नहीं उठती थी । कभी जल्दी उठने की कोशिश करती थी तो सर में दर्द हो जाता था ।
मुझे मायके में ज़्यादा काम करने की आदत नहीं थी । माँ ने घर में सबको काम करने की आदत की थी इसलिए हम सब मिलकर काम कर लेते थे । यहाँ ऐसा नहीं था ।
दो नंनंद हैं जो कॉलेज में पढ़ रही थी तीसरी हाई स्कूल में थी आख़िरी ननंद आठवीं कक्षा में थी । सभी बड़ी ही थी परंतु खाने के बाद अपनी प्लेट भी नहीं उठाया करतीं थीं । बाथरूम में नहाकर कपड़े वहीं छोड़कर आ जातीं थीं ।
मेरे आने के पहले क्या करतीं थीं मुझे नहीं पता है । हाँ सास को लगता है कि घर का सारा काम बहू ही करे ।
ससुराल है इसलिए बिना कुछ कहे चार दिनों तक सारा काम किया परंतु पाँचवें दिन पूरे शरीर में दर्द होकर बुख़ार आ गया था ।
इसलिए उसे घर की परिस्थिति के बारे में पति शिवाजी को बताना ही पड़ा । आज तक उन्होंने कभी घर पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया था । आज उन्हें घर की परिस्थितियों के बारे में पता चला था ।
उन्होंने अपनी बहनों को डाँटा और कहा कि आप लोग अपने काम खुद नहीं करेंगी तो कैसे चलेगा । माँ बीच में बोलने लगी तो कहा कि माँ आप अभी बीच में मत बोलिए ।
अपनी खाई हुई थालियों को सिंक में धोना , उतारे हुए कपड़ों को धोकर सुखाना यह काम भी वे नहीं करेंगी तो कैसे चलेगा । आप भी अकेले कैसे करेंगी इतने काम इसलिए एक कामवाली बाई को रख लीजिए ।
उस समय तो उन्होंने कुछ नहीं कहा परंतु बाद में कहने लगी कि बीबी आई तो कामवाली को रखने के लिए कह रहा है । पहले तो कभी सोचा नहीं था।
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शिवाजी सुबह नौ बजे ऑफिस जाता तो रात को सात बजे वापस आता था । सोनाली ने सोचा घर के काम के बाद भी बहुत सा समय बच जाता है तो ख़ाली बैठने के बदले में ग्रूप वन की परीक्षाओं की तैयारी कर लेती हूँ । इसके लिए वह पढ़ने लगी थी । इतवार के दिन दोनों मिलकर कभी मंदिर या सिनेमा देखने चले जाते थे ।
यह बात सास ससुर को खटकने लगी थी तो एक रविवार को दोनों ने शिवाजी को अपने पास बिठाकर कहने लगे देख बेटा तेरी बीबी को कामधाम कुछ नहीं आता है ।
जब देखो तब पुस्तक लेकर बैठी रहती है ऊपर से तुम दोनों छुट्टी मिलते ही घूमने के लिए निकल जाते हो । अरे घर में जवान लड़कियों के रहते यह सब अच्छा लगता है क्या ? तुम उससे कह दो हमारे घर में यह सब नहीं चलेगा रहना है तो रहे अन्यथा अपने घर चले जाएँ ।
सास ससुर दोनों ने मेरी बहुत सारी शिकायतें शिवाजी से की और कहा कि तुम ही उसे उनके घर छोड़ कर आ जाओ ।
शिवाजी को समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूँ । सोनाली बंद दरवाज़े के बाहर खड़ी थी ।
उसने दरवाज़ा खोला और अंदर आते हुए कहा कि आप दोनों मुझे माफ करें मैं इस तरह अंदर आ गई हूँ । मुझे जो भी कहना है वह तो कहकर जाऊँगी । मैंने आप लोगों की बातें सुनी हैं मुझे काम नहीं आता है इसलिए मायके में छोड़कर आने के लिए बेटे से कह रहे हैं ।
आप यह भूल रहे हैं कि मैं इस घर में बहू बनकर आई हूँ ना कि कामवाली बाई । घर का पूरा काम एक के ऊपर ही थोपने से कैसे चलेगा सबको हाथ बँटाना चाहिए और एक बात यह घर मेरा भी है । मैं ग्रूपवन की परीक्षा के लिए तैयारी कर रही हूँ । हमारे ऊपर चार ननंदों की शादियाँ करने की ज़िम्मेदारी है तो मुझे भी नौकरी करनी पड़ेगी ।
अब रही बात हम दोनों के मंदिर सिनेमा देखने जाने की तो आप दोनों नहीं जाते हैं क्या? कल ननंदों की शादियाँ होंगी तो वे लोग घूमने नहीं जाएँगे । इसलिए कहे देती हूँ मुझ पर हुकुम चलाने की कोशिश मत कीजिए इस घर में मेरा भी हक है । कहते हुए सोनाली उस कमरे से बाहर निकल गई। उस दिन के बाद सोनाली को बातें कहना बंद हो गया था ।
हाँ उन्हें अब भी शिकायत रहती थी कि नौकरी कर रही है परंतु एक पैसा घर में नहीं देती है। जब मैंने अपनी ननंदों की शादी का खर्चा अकेले ही उठाया था तो उनकी सारी शिकायतें दूर हो गई थी ।
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मैं ऑफिस चली जाती थी तो वे मेरे बच्चों की देखभाल कर लेती थी । इसलिए कहते हैं ना कि ज़रूरत पड़ने पर अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाना भी ज़रूरी है ।
सोनाली यह सोचते हुए ही चाय बना रही थी कि सास ससुर अपने मार्निंग वॉक से वापस आ गए थे ।
चाय पीकर सासु माँ सब्ज़ी काटते हुए मुझे बता रही थी कि अपनी पड़ोसन गायत्री की बहू भी वाकिंग के लिए आई थी कह रही थी कि उसकी और सास की बिल्कुल नहीं पट रही है । अलग जाकर रहेंगे कहने पर पति उसकी बातों पर ध्यान नहीं दे रहा है । सोनाली ने कहा उसका पति ऐसा क्यों कर रहा है ।
सास ने कहा कि क्या कह रही है सोनाली बेटा बूढ़े माता-पिता को ऐसे कैसे छोड़कर जाएगा कौन उनकी देखभाल करेगा ।
सोनाली- यही बात वो बूढ़े माता-पिता भी तो सोच सकते हैं माँ बहू भी तो बेटी के समान ही है । इस उम्र में इस तरह से अपनी बात मनवाने की जिद करेंगे तो कैसे चलेगा ।
गलती दोनों की है माँ उनके मामले में हम क्या कर सकते हैं ।
पड़ोसी हैं बेटा हम ऐसे चुप कैसे रह सकते हैं । मैंने उन्हें शाम को अपने घर बुलाया है देखते हैं हम कुछ कर सकते हैं ।
सोनाली शाम को ऑफिस से घर पहुँची तो बरामदे में ससुर और पड़ोस के अंकल बैठे हुए थे अंदर गायत्री आंटी और उनकी बहू बैठी हुई थी । उसे देखते ही सास ने कहा कि आ गई बेटा फ्रेश होकर आजा चाय तैयार है। सबके चाय पीने के बाद मेरी सास ने कहा कि हाँ तो आप दोनों बताइए कि आप लोगों को एक दूसरे से क्या परेशानी है ।
बहू ने कहना शुरू किया कि क्या बोलूँ आंटी जबसे शादी करके आई हूँ इन्होंने नाक में दम कर रखा है जो भी काम करती हूँ इन्हें पसंद नहीं आता है । जैसे बस उसमें नुस्क निकालना ही इनका काम है। इसलिए मैंने काम करना ही बंद कर दिया है ।
नुस्क की क्या बात करेंगे निकालती हूँ क्यों ना निकालूँ एक काम ढंग से नहीं करती है मायके में इसे कुछ सिखाया ही नहीं है ।
यह देखिए मेरे मायके में लोगों को क्यों कहना जैसे इन्हें सब कुछ आता है ।
सोनाली ने कहा कि आप दोनों आपस में एक दूसरे को दोष देना बंद कीजिए और समस्या बताइए ।
बहू होकर वह खा पीकर बैठेगी और मैं उसके लिए काम करूँ उसकी नौकरानी नहीं हूँ । वह नौकरानी नहीं है तो मैं भी कोई नौकरानी बनकर इनके घर नहीं आई हूँ ।
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सास बहू दोनों डेढ़ घंटे के बाद भी ऐसे ही लड रहे थे । मेरी सास ने कहा कि ठीक है हमने आप लोगों की बातें सुनी हैं अगर आपकी मर्ज़ी है आप सुनना चाहते हैं तो हम कहेंगे और हमारी बात भी सुन लीजिए। दोनों ने उनकी तरफ़ देखा तो सावित्री जी ने कहा कि आप लोगों के सामने दो रास्ते हैं । पहली यह है कि दस दिन तक तुम्हारी सास कुछ भी कहे तो अपनी माँ समझ कर चुप रहना वैसे ही तुमसे कुछ गलती हो जाए तो गायत्री तुम्हें अपनी बेटी समझ कर चुप रहेंगी ।
आप दोनों इसे परीक्षा समझिए और आगे बढ़िए ।
दूसरी बात गायत्री जी आपको बेटा चाहिए और आपकी बहू को पति दोनों एक-दूसरे को छोड़कर नहीं रह सकते हैं । इसलिए आपके घर के ऊपर का जो पोर्शन जिसे आपने किराए पर दिया है वहाँ बहू बेटे को भेजकर नीचे के पोर्शन में आप रहिए क्योंकि दूरियाँ ही नज़दीकियाँ बनती हैं ।
मेरे ख़याल से आप पहले वाले नुस्ख़े को पहले अपनाइए बात बन गई तो बहुत अच्छा है क्यों सासु माँ मैं सही कह रही हूँ ना सोनाली ने सावित्री से पूछा ।
सावित्री कहती है तुमने ठीक कहा सोनाली हमारे पीढ़ियों में दोस्ती होनी चाहिए ना कि अंतर बढ़ना चाहिए । देखते हैं कि इन दस दिनों में वे दोस्त बनते हैं या अंतर बढ़ाते हैं।
हम भी आशा करते हैं कि पीढ़ियों के अंतर को मिटाकर रिश्तों में बढ़ती दूरियों को कम कर लें ।
के कामेश्वरी
रिश्तों में बढ़ती दूरियाँ